हमें देखा है कि बादलों के फटने और अतिवर्षा से जल निकासी के मार्ग तटबंध तोड़कर बहते हैं। बाढ़ के हालात बनते हैं। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से आवासीय भूमि कम होती जा रही है और इसके विपरीत पेयजल की कमी से वैश्विक रुप से लोगो के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है । विश्व की बड़ी आबादी के लिये पीने के स्वच्छ पानी तक की कमी है।
वैज्ञानिक संकट समाधान के लिये अनुसंधान कर रहे हैं । विशेषज्ञ बताते हैं कि जल आपदा से बचने हेतु हमें अपने आचरण बदलने चाहिये , जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिए। किन्तु वास्तव में हम किस दिशा की ओर अग्रसर हैं ?
भारतीय पौराणिक आख्यानों तथा मानव की पानी को लेकर ऐतिहासिक अवधारणाओ के आधार पर वर्तमान संदर्भ में वैश्विक जल समस्या तथा पानी को लेकर आज हो रहे अनुसंधान व ज्ञान को समाहित करते हुये पानी के प्रति जन मानस में सही समझ विकसित करने की जरुरत है। पानी को लेकर सुव्यवस्थित इंफ्रास्ट्रकचर बांध , नहरें , पीने के पानी व सिंचाई के पानी की आपूर्ति की व्यवस्थायें ,वर्षा जल की शहरों से निकासी पर बहुत काम करने की जरूरत है .
जल में जीवन सृजित करने की क्षमता होती है. यह विनाश भी कर सकता है . पानी समस्त मानवता को जोड़ता है , यह हम सब के लिये महत्वपूर्ण तत्व है . पानी की अत्यधिक कमी या अधिकता दोनो के ही परिणाम घातक होते हैं .
प्रायः धर्मो में पानी का प्रतीकात्मक वर्णन है , अनेक पौराणिक आख्यानो में जीवन दायी धवल वर्षा जल व अथाह गहरे पानी को शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है .जीवन में दैनिक उपयोग हेतु प्रयुक्त पानी या इसकी संरचना से परे पानी को लेकर अनेकानेक कल्पित विवेचनायें हैं .
सृष्टि का प्रारंभ ही अपार अथाह जलराशि की परिकल्पना है ।ब्रह्माण्ड की संरचना और जीवन का आधार भूत तत्व पानी ही है . जल में ही जीवन के अभ्युदय की वैज्ञानिक संभावनायें भी हैं । यही नहीं सृजन के विपरीत सृष्टि के महाविनाश की परिकल्पना भी महासागरीय जल प्लावन प्रलय की ही ।
पानी जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।सारी सभ्यताएं नैसर्गिक जल स्रोतो के तटो पर ही विकसित हुई । बढ़ती आबादी के दबाव में , तथा ओद्योगिकीकरण से पानी की मांग बढ़ती ही जा रही है । इसलिये भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है और परिणाम स्वरूप जमीन के अंदर पानी के स्तर में लगातार गिरावट होती जा रही है ।नदियों पर हर संभावित प्राकृतिक स्थल पर बांध बनाये गये हैं ।बांधो की ऊंचाई को लेकर अनेक जन आंदोलन हमने देखे हैं . बांधों के दुष्परिणाम भी हुए। जंगल डूब में आते चले गये और गांवो का विस्थापन हुआ।. अब समय आ गया है कि जलाशयो , वाटर बाडीज , शहरो के पास नदियो को ऊंचा नही गहरा किया जाये। पानी के संरक्षण के हर सम्भव प्रयास करें। पानी की इसी सार्व भौमिक भूमिका को समझना समझाना और इस पर समवेत प्रयास समय की आवश्यकता है।