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एमबीए : अब वो बात कहां?

Published: Apr 28, 2016 11:33:00 pm

किसी अच्छी एमबीए या इंजीनियरिंग डिग्री के लिए अच्छे संस्थान चाहिए। उन
संस्थानों में अच्छी फैकल्टी चाहिए। भारत में आईआईएम और चंद सरकारी
संस्थानों को छोड़ दें तो अभी ज्यादातर

Opinion news

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टी. मोहनदास पाई पूर्व सीएफओ, इंफोसिस
किसी अच्छी एमबीए या इंजीनियरिंग डिग्री के लिए अच्छे संस्थान चाहिए। उन संस्थानों में अच्छी फैकल्टी चाहिए। भारत में आईआईएम और चंद सरकारी संस्थानों को छोड़ दें तो अभी ज्यादातर प्रबंधन और इंजीनियरिंग कॉलेज कमजोर फैकल्टी और खराब इंफ्रास्ट्रक्चर से ही चलाए जा रहे हैं। इन कॉलेजों में छात्रों को कम अंकों पर ही प्रवेश मिल जाता है। आज हालत यह है कि बीए पास कोर्स की तरह एमबीए और इंजीनियरिंग के कोर्स हो गए हैं। इनके गुणवत्तापरक न होने से इन डिग्रियों को हासिल करने वाले छात्र भी नौकरी लायक नहीं बन पाते।

गुणवत्ता ही समाधान है
कमजोर छात्रों को भी निम्न स्तर के कॉलेजों में डिग्री मिल जाती है पर फिर वे बेरोजगारी ही बढ़ाते हैं। इन कोर्सेज के अच्छे कॉलेज तो आज भी आगे जा रहे हैं। वहीं कमजोर संस्थान बंद हो रहे हैं। एमबीए-इंजीनियरिंग के सैंकड़ो कॉलेज बंद हुए हैं। मेरे खयाल में यह अच्छी स्थिति है। केवल गुणवत्तापरक संस्थान ही रहने चाहिए।

निम्न स्तर वाले बी-स्कूल खुलने के पीछे हमारे सांसद-मंत्री भी जिम्मेदार हैं। वे अपने इलाकों में एमबीए, इंजीनियरिंग कॉलेज चाहते हैं। राजनीतिक दबाव बनाकर कॉलेज खुलवा देते हैं। सरकार के पास अच्छे संस्थान खोलने के लिए फंड है नहीं और वे इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी को तरसते हैं। एक अच्छा संस्थान बनाने और फिर उसे चलाने के लिए निवेश करना होता है। इंफ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी, प्रैक्टिकल एजुकेशन पर फोकस करना होता है।

जो सरकारें करती नहीं हैं। इसके अलावा एक बड़ी दिक्कत यह है कि शिक्षण की ओर प्रतिभावान छात्र रुख नहीं करते हैं। एमबीए, इंजीनियरिंग कॉलेज में अच्छे शिक्षक नौकरी नहीं करना चाहते हैं। अच्छे अंकों वाले, प्रतिभावान छात्र एमएनसी में नौकरी तलाशते हैं। शिक्षा में यह क्षेत्र मांग-आपूर्ति पर ही टिका है।

गुणवत्ता वाले संस्थान में मानक शिक्षा मिलेगी तो अच्छे छात्र तैयार होंगे। कंपनियां अच्छे पैकेज पर नौकरी देंगी। इसलिए जरूरी है कि सरकार को हमारे मौजूदा उत्कृष्ट संस्थानों की ‘कैपेसिटी बिल्डिंग’ की इजाजत देनी चाहिए। वे उन्हें पर्याप्त फंड दें। इसके अभाव में नेता या उनके रिश्तेदारों के निजी कालेज चलते हैं। उनमें वे बगैर गुणवत्तापरक शिक्षा दिए मुनाफा कमाते हैं। अगर बाजार में ऐसे छात्र आएंगे, जिनका शैक्षिक स्तर अच्छा नहीं है तो उन्हें वेतन कौन देगा? इसलिए भारत में आईआईएम जैसे ब्रांड वाले संस्थानों में हर साल ज्यादा छात्रों को प्रवेश देने की पहल करनी होगी।

कमजोर फैकल्टी
कैम्पस प्लेसमेंट गिरने के दो बड़े कारण- कमजोर आर्थिक वृद्धि और शिक्षण प्रणाली का कमजोर स्तर जिम्मेदार हैं। इन्हीं एमबीए स्कूलों से 2008 में 54 फीसदी छात्रों का प्लेसमेंट हो रहा था। एसोचैम की रिपोर्ट में छात्रों की बेरोजगारी का बड़ा कारण घटिया इंफ्रास्ट्रक्चर, कमजोर फैकल्टी, खराब गुणवत्ता बताया है। प्रैक्टिकल के अभाव में कोर्स कंटेट का भी कोई मतलब नहीं रह जाता।

भटकते डिग्री वाले, फिर भी सीटें बढ़ीं

पांच साल में इन स्कूलों ने डिग्रीधारी बेरोजगारों की फौज खड़ी कर दी। फिर भी इन्होंने सीटें बढ़ा दीं। ये स्कूल छात्रों से लाखों रु. वसूलते हैं और छात्र चंद हजार पाने को तरस रहे हैं। 2011-12 में 3,60,000 सीटें थीं जो 2015-16 में बढ़कर 5,20,000 हो गईं। नौकरी के लिए कॉलेज की जवाबदेही ही नहीं है।

पढ़ाई 5 लाख की, नौकरी 8 हजार की
दो साल के एमबीए कोर्स के लिए बिजनेस स्कूल औसतन प्रति छात्र 3-5 लाख रुपये वसूलते हैं। डिग्री हासिल करने वाले छात्रों की औसतन सैलेरी 8-10 हजार रुपये है। रिपोर्ट में आईआईएम/ आईआईटी ब्रांड की शैक्षणिक गुणवत्ता में कमजोरी को भी उठाया गया है। प्रतिभावान छात्रों के शिक्षण में न आने पर भी जोर दिया है।

इंजीनियरिंग कर ली पर तकनीक में फेल
एमबीए जैसा ही हाल कमोबेश इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी सामने आया है। हर साल करीब 15 लाख छात्र भारत में इंजीनियरिंग करते हैं। पर 30 फीसदी बेरोजगार ही रह जाते हैं। इनमें तकनीकी ज्ञान का अभाव होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के हिसाब से इंजीनियरिंग करने वाले तादाद कहीं ज्यादा है। अकेले आईटी क्षेत्र ही करीब 75 फीसदी छात्रों को नौकरी देता है। इंजीनियरिंग करने वाले 97 फीसदी छात्र आईटी और कोर इंजीनियङ्क्षरग में नौकरी पाना चाहते हैं। पर केवल 18.43 फीसदी छात्र ही आईटी के लिए और 7.59 फीसदी कोर इंजीनियरिंग में नौकरी के काबिल होते हैं।


45% तक कैम्पस प्लेसमेंट गिर गया बिजनेस स्कूलों में पिछले दो साल 2014-16 के बीच।

07 % छात्रों को ही रोजगार मिल पाता है, शीर्ष 20 बिजनेस स्कूलों के अलावा, बाकी बिजनेस स्कूलों सेे एमबीए डिग्री हासिल करने पर। यानी 93 फीसदी एमबीए हैं बेरोजगार

5500 बिजनेस स्कूल हैं भारत में।

220 बी-स्कूल पिछले दो साल में दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूरु, अहमदाबाद, लखनऊ, हैदराबाद, देहरादून जैसे बड़े शहरों में बंद हो चुके हैं।

120 बी-स्कूल इस साल बंद होने की कगार पर हैं।

10% एमबीए छात्रों को, शीर्ष 20 बी-स्कूलों के अलावा, बाकी स्कूलों से डिग्री लेने पर रोजगार मिल रहा था 2008 में।

बिजनेस स्कूलों में आज हालत खराब है। आलम यह है कि वहां प्रवेश पाने वाले छात्रों से कहीं ज्यादा सीटें हैं। सीटें खाली रहती हैं। यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि इन मैनेजमेंट स्कूलों से एमबीए डिग्रीधारी छात्रों का प्लेसमेंट रिकॉर्ड बहुत ही कमजोर रहा है। डी एस रावत, सेक्रेटरी जनरल, एसोचैम


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