जांच में साफ हो पाएगा कि अस्पताल इस तरह का खेल कैसे खेल गए, लेकिन अभी यह साफ है कि यदि अस्पताल ने ऑपरेशन किए भी हैं तो बेतहाशा किए हैं और सिर्फ और सिर्फ सरकार से पैसे लेने के लिए किए हैं। इसका यह भी मतलब है कि जिनके ऑपरेशन किए गए हैं, उनमें ज्यादा की बच्चेदानियां निकालने की जरूरत नहीं होगी। समझा जा सकता है कि अस्पताल ने पैसे कूटने के लिए कितनी महिलाओं से उनका महत्वपूर्ण अंग ले लिया और उन्हें जिंदगी भर इसके दुष्परिणाम भोगने के लिए छोड़ दिया।
यह माफियागिरी ही है, जिसके लिए कर्ताधर्ताओं को हमेशा के लिए जेल की सींखचों के पीछे भेज देना चाहिए। सरकार के उन अधिकारियों को भी दंडित करना चाहिए जिन पर इस योजना के सुचारू संचालन की देखरेख का जिम्मा है। उनकी आंख इतनी देर से कैसे खुली, उनसे इसका जवाब लेना चाहिए। थोक के भाव बच्चेदानियां निकालने का उदाहरण एक नजीर मात्र है, यह समझने के लिए कि इन अस्पतालों में पैसे लूटने के लिए क्या-क्या नहीं होता होगा।
कई बड़े और नामी अस्पतालों में रोजाना हजारों लोग ठगे जाते हैं, कभी जांच के नाम पर, कभी दवा और कभी ऑपरेशन के नाम पर। एक बार अस्पताल में घुसे तो लाखों रुपए का बिल फाड़ दिया जाता है। यदि कोई मरीज किसी योजना अथवा बीमा से संबंधित नहीं है तो बिना बिल भुगतान के लाश भी उनके परिजन के हवाले नहीं की जाती है। सरकार को इन सभी पहलुओं को देखकर चिकित्सा को अन्य क्षेत्रों की तरह विसंगतियों से मुक्त करना चाहिए।