पक्की राग-रागिनियों का शौक लड़कपन से रहा है। अम्मा बताती है कि जब हम छोटे थे तब एक जोगी सारंगी लेकर बस्ती में आया। मधुर सारंगी बजाने पर अम्मा ने उसे कटोरा भर आटा डाला। वह गाता-बजाता आगे चला तो हम भी उसके पीछे हो लिए। बस्ती से बाहर अचानक जोगी ने हमें देखा। वह भला आदमी था इसलिए हमें घर पहुंचा गया। आज जैसा “योगी” होता तो अपने कोथले में डाल चल देता। आज इतने साधन होने के बावजूद पुलिस गुमशुदा को नहीं ढूंढ पाती तो उस जमाने की तो बात ही छोडिए। हां तो बात चल रही थी राग गुणकली की। पिछले दिनों एक सेठ की तरफ से निमंत्रण पत्र मिला कि उन्होंने अपने घर में एक संगीत सभा रखी है जिसमें शहर के चुनिंदा संगीत प्रेमियों को पंडित भाटेकर राग गुणकली सुनाएंगे। यहां आपके मन में एक सवाल पैदा जरूर हुआ होगा कि क्या हम इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं जो सेठों की महफिल में याद किए जाएं। जी नहीं।मामूली कलमघसीट को कौन लिफ्ट मारता है? दरअसल नवविवाहिता सेठाणी एक बार एक्टिंग वर्कशाप में आई थी।बहरहाल हम महफिल में पहुंचे तो दंग रह गए। एक से एक छंटैल मौजूद थे। एक नेता जिसे हाल में ही मंत्रिमंडल से निकाला गया था क्योंकि उसका नाम भर्ती घोटाले में था। एक भू-माफिया, जिसका काम दूसरों की जमीनों पर कब्जा करना था। साहित्य और राजनीति के गठजोड़ के लिए बदनाम अकादमी का पूर्व अध्यक्ष।कैसेटें बेच कर करोड़पति बना एक व्यापारी। एक कला समीक्षक जो पिकासो से लेकर मिनिएचर पेंटिंग पर इतना बेसिर-पैर बोलता है कि सुनने वाला देखता रह जाता है।बाकियों को हम नहीं जानते थे। शानदार कांजीवरम् की साड़ी पहने सेठांणी ने झुक कर पांव छुए। उसे देख थुल थुल पति ने भी झुकने का नाटक किया। बहरहाल पहले “टी” हुई और उसके बाद शुरू हुई राग गुणकली। पंडित जी खानदानी गायक थे। उनका घराना पिछले ढाई सौ साल से सिर्फ राग गुणकली ही गाता रहा है। उनकी खासियत राग गुणकली का आलाप था। वे पूरे सवा घंटे तक आलापचारी रहे। वह इतनी सुस्त थी कि वहां उपस्थित सारे श्रोता सो गए। मेजवान सेठ तो बाकायदा तीन ताल में खर्राटे लेकर पंडितजी के आलाप से कॉम्पटिशन करने लगा। कसम से हमें तो उसके खर्राटे सुर-ताल में ज्यादा फिट लगे। बहरहाल जैसे ही आलापचारी खत्म हुई सारे श्रोता ऎसे हड़बड़ा कर जागे जैसे अपना स्टेशन आने पर ट्रेन में सोया पैसेंजर जाग जाता है। कुछ क्षण तो लोग अलसाए और आलस दूर होते ही सबने खड़े होकर खूब तालियां बजाई। तालियों की गड़गड़ाहट सुन सेठ के हरियल लॉन में बंधा लेब्रा भोंकने लगा।सेठाणी को थेंक्यू कहा और बोले- वाह। ऎसी राग गुणकली तो पहली बार सुनी है। दूधो नहाओ पूतो फलो। उसनेे अपने मोट्यार की तरफ ताक कर उदासी से कहा- देखिए क्या होता है? – राही