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स्मृतियां केवल सुख को याद रखती हैं

locationजयपुरPublished: Aug 06, 2018 02:41:07 pm

एक अरसे बाद दुःख की तीव्रता कम हो जाती है, लाओत्से कहते हैं कि हम कहते हैं कि जो बीत गया वह सुखद है पर नहीं ! दरअसल वहाँ वो छूट गया जो ‘अ’ के योग से बना था। इसीलिए तो हम कहते हैं कि बचपन सुखद था।

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एक अरसे बाद दुःख की तीव्रता कम हो जाती है, लाओत्से कहते हैं कि हम कहते हैं कि जो बीत गया वह सुखद है पर नहीं ! दरअसल वहाँ वो छूट गया जो ‘अ’ के योग से बना था। इसीलिए तो हम कहते हैं कि बचपन सुखद था।

मैं यहाँ कई दोस्तों से मिली। यहाँ होकर लगा ही नहीं कि यह आभासी जगत् है। मेरे कितने आत्मीय बिना मिले ही सपनों में जाने कितनी बार आ चुके हैं । जाने यह अवचेतन का खेला है, ऊर्जा स्तर का या कुछ और नहीं मालूम, पर यह घटा है, घट रहा है।

घटना, प्रघटना स्मृति में जुड़ती जाती है और यूँ ही जुड़ते जाते हैं कई दोस्तों के नाम भी। इधर कुछ लोग शहर आते हैं तब मिलने में भी झिझक नहीं होती कि अब तक ऊर्जाओं के इस खेल की समझ कुछ-कुछ आ जाती है पर यह जीवन चौंकाता भी है सो जीवन के इशारों को पकड़ना होता है। बात यही कि कभी इन्हें हम पकड़ पाते हैं कभी चूक कर जाते हैं। मनुष्य स्मृतियाँ दुःख को पोंछ देती है। स्मृतियाँ केवल सुख को याद रखती है, एक उम्र तक। एक अरसे बाद दुःख की तीव्रता कम हो जाती है यह इसीलिए कि स्मृति उन घावकारी बिंदुओं को विलोपित कर देती है, वह टीस मस्तिष्क को रुद्ध करती है सो हाल की ओर स्मृति लौटती है।

लाओत्से कहते हैं कि हम कहते हैं कि जो बीत गया वह सुखद है पर नहीं ! दरअसल वहाँ वो छूट गया जो ‘अ’ के योग से बना था। इसीलिए तो हम कहते हैं कि बचपन सुखद था। फिर बताएँ क्यों बच्चे बड़े बनने के लिए लालायित दिखाई देते हैं। लाओत्से कहना चाहते हैं कि हर उम्र के अपने दु:ख हैं , हम किसी वय में इन्हें आगे भविष्य में तलाशते हैं तो कभी पीछे। बल्कि यह आगे और पीछे तो सब भुलावा है , जो है बस इसी और अभी के वक़्त में । इसीलिए हर लम्हें में स्वयं को क़रीब से देखने की बात की गई। बाहर के परिवर्तन से भीतर क्या घट रहा उसे जाँचने की बात की गई। हम सभी विचलित होते हैं बाहर से पर अंतस् में ही वह शक्ति जो संतुलित कर सकती। इसलिए बाहर से दूर हटना ही भीतरी रिक्तता की ओर बढ़ना है।

अंतस् को साधने के लिए रिक्तियाँ आवश्यक होती हैं और ये रिक्तियाँ दोस्त लाते हैं क्योंकि वे आपको दबावमुक्त करते हैं। वे कष्ट नहीं देते । वे होकर भी नहीं हैं और नहीं होकर भी हैं। यही तो उसका होना है। यहाँ एक और बात हम में से कोई पूर्ण नहीं , सभी अधूरे , सभी अपनी-अपनी यात्रा पर , इसलिए ईर्ष्या , झूठ हमें रिक्तता की ओर ख़ालीपन की ओर ले जाते हैं तो मित्रताएँ पूर्णता की ओर ले जाती हैं । पूर्णता भी एक सुखद ख़ालीपन है जहाँ हम होकर भी नहीं।

लाओत्से का ही कहना कि न तो हम एम्पटी हैं न परफ़ेक्ट , हम इन दोनों के बीच में हैं सदा , सभी।

यह रिक्तता और सुकून सभी के जीवन में बरसे …फ़िलहाल मरु प्रदेश में सावन रीता है।

विमलेश शर्मा

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