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सर्वदलीय बैठक से एकजुटता का संदेश

locationनई दिल्लीPublished: Jun 21, 2020 05:14:04 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

चीन की हरकत के बाद हुई सर्वदलीय बैठक से निकली एकजुटता और चीन से हर स्तर पर निपटने के संकल्प ने देश का माहौल ज्यादा सकारात्मक बनाया है।

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अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार , सामयिक विषयों पर लेखन

किसी भी लोकतांत्रिक देश में फैसला तो सरकार ही करती है, लेकिन ऐसे समय में पूरे देश को विश्वास में लेना और एकजुट करना आवश्यक होता है। यह लोकतांत्रिकता का मान्य सिद्धांत तो है ही, इससे दुश्मनों को भी संदेश मिलता है कि पूरा देश उनके खिलाफ एकजुट हो चुका है। ऐसे संदेशों का विश्व पटल पर भी व्यापक असर होता है। अगर देश एकजुट है तो हमारे मित्र और हमसे सहानुभूति रखने वाले देश भी मुखर होकर आगे आते हैं। इस मायने में नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा चीन के मामले पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक निस्संदेह, महत्वपूर्ण मानी जाएगी। हालांकि भारत ऐसा देश है जहां किसी मुद्दे पर सर्वसम्मति कायम करना अब कठिन हो गया है। कई राजनीतिक दलों के नेता रक्षा और विदेश नीति पर भी आंतरिक राजनीतिक लाभ-हानि की दृष्टि से बयान देते हैं और इससे देश का माहौल बिगड़ता है।
चीनी सैनिकों की धोखेबाजी, असभ्य व बर्बर हरकत पर अत्यंत ही सोच-समझकर बयान देने तथा संयत रुख अपनाने की आवश्यकता है। सरकार से प्रश्न करने तथा जानकारी मांगने में कोई समस्या नहीं है। यह होना ही चाहिए लेकिन हमने देखा है कि किस तरह कुछ पार्टियों ने अपने बयानों से चीन की बजाय अपनी ही सरकार और सेना को कठघरे में खड़ा करने की नादानी की। किंतु दूसरी ओर यह तथ्य निश्चित रुप से हमें राहत देता है कि ज्यादातर दलों ने न केवल अपने बयानों में संयम बरता, बल्कि सर्वदलीय बैठक में अनावश्यक प्रश्न उठाने वाले नेताओं को भी सीख दी।

सच कहा जाए तो सर्वदलीय बैठक इस मायने में एक मील का पत्थर माना जाएगा क्योंकि राजनीतिक दलों के नेताओं ने आपसी मतभेद भुलाकर खुलकर एकजुट होने का संदेश दिया। सर्वदलीय बैठक में 20 दल शामिल हुए थे। इनमें तीन दलों कांग्रेस, माकपा एवं भाकपा को छोड़ दें तो किसी ने एक शब्द नकारात्मक नहीं बोला। सबका स्वर यही था कि हमें चीन को हर स्तर पर जवाब देना है तथा इसमें आपस में किसी तरह का मतभेद प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए। माकपा एवं भाकपा ने चीन की निंदा की जगह सरकार को ही आगाह किया कि अमेरिका की कोशिश हमें अपने पाले में लाना है जिसमें फंसना नहीं है। विडम्बना देखिए कि जिस चीन ने स्वयं पंचशील को 1962 में सैन्य आक्रमण के बूटों से रौंद दिया उसकी भी चर्चा भाकपा के महासचिव डी राजा ने की।

इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि भारत के कम्युनिस्ट अभी भी नहीं समझ रहे कि देश का मानस कितना बदल चुका है। लेकिन इससे कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ा क्योंकि प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री एवं विदेश मंत्री ने अवश्य शांति से इन्हें सुना, दूसरे नेताओं ने ही सीख दी कि इस तरह की बात नहीं की जानी चाहिए। सोनिया गांधी ने सरकार को घेरते हुए कहा कि इस बैठक को काफी पहले होना चाहिए था। अगर पांच मई को चीन ने घुसपैठ की तो पहले क्यों नहीं बैठक बुलाई गई? मोदी सरकार बताए कि चीन के सैनिकों ने घुसपैठ कब की? सरकार को इस बारे में कब पता चला? उनके प्रश्नों में यह भी शामिल था कि क्या सरकार के पास सैटेलाइट इमेज नहीं थी? इन असामान्य गतिविधियों के बारे में कोई इंटेलीजेंस रिपोर्ट नहीं मिली थी? उन्होंने माउंटेन स्ट्राइक कोर की मौजूदा स्थिति पर भी सवाल किए? अंत में उन्होंने कहा कि देश यह भरोसा चाहता है कि सीमा पर पहले जैसे हालात स्थापित हो जाएंगे।
कांग्रेस ने पहले दिन से जो तेवर अपनाया था उसमें इसकी उम्मीद पहले से थी कि सोनिया गांधी हमलावर होंगी। ऐसी बैठकों में मूल चार स्तरों की बातें होतीं हैं। सबसे पहले सरकार तथ्यों के साथ पूरी घटना की सच्चाई से नेताओं को अवगत कराती है। दूसरे, सरकार ने क्या-क्या किया और क्या करने की सोच रही है यह बताती है। तीसरे, राजनीतिक दलों को प्रश्न पूछने और राय देने का पूरा मौका दिया जाता है। और चौथे, सबकी सुनने के बाद प्रधानमंत्री या जो भी मंत्री बैठक की अध्यक्षता करते हैं वे अपनी बातों में सारे सुझावों और प्रश्नों को समाहित करते या उनमें से अवांछितों की अनदेखी करते हुए सबको आश्वस्त करते हैं।

चूंकि मामला वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी देश की सीमा तथा अपने जवानों की आहुति का था इसलिए स्वाभाविक ही सबसे पहले बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गलवान घाटी में जो कुछ हुआ उसका पूरा विवरण दिया, वहां भारत और चीन किन स्थितियों में हैं, हमारा रक्षा प्रबंधन क्या है, कैसा है आदि से अवगत कराया। विदेश मंत्री ने उसके घटना के पूर्व और बाद की चीन सहित भारत की सारी कूटनीतिक गतिविधियों से अवगत कराया। साथ ही पूरी स्थिति पर एक विस्तृत प्रेजेंटेशन भी दिया गया। इस प्रेजेंटेशन में हर वो पहलू शामिल था जिसे लेकर सबके मन में प्रश्न उठ रहे थे। इसमें उपग्रह से लिए गए चित्र भी शामिल थे जिसमें बताया गया कि किस तरह चीन ने अपनी ओर गलवान घाटी में सैन्य लामबंदी की और उसकी पूरी सूचना होते हुए हमने क्या जवाबी तैयारी की थी। अंत में प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा उसे पूरे देश ने सुना।

एकाध पार्टियां भले अब भी अवांछित बयानवाजी करें, सर्वदलीय बैठक का वातावरण बिल्कुल अलग था। इतनी जिम्मेवारी से नेतागण बर्ताव करेंगे इसकी उम्मीद कम ही लोगों को रही होगी। जो ममता बनर्जी सरकार पर हमला करने का कोई अवसर नहीं छोड़ती उनके वक्तव्य पर नजर डालिए- ‘सर्वदलीय बैठक देश के लिए अच्छा संदेश है। इससे यह जाहिर होता है कि हम अपने जवानों के साथ हैं और एक हैं। तृणमूल मजबूती से सरकार के साथ खड़ी है। दूसरसंचान रेलवे और एविएशन में चीन को दखल नहीं देने देंगे। हमें कुछ समस्याएं आएंगी, पर हम चीनियों को नहीं घुसने देंगे।…. चीन में कोई लोकतंत्र नहीं है। वे वह कर सकते हैं, जैसा महसूस करते हैं। दूसरी तरफ हम सबको साथ मिलकर काम करना है। भारत जीतेगा, चीन हारेगा। एकता से बात करें, एकता की बात करें, एकता से ही काम करें।…’ ममता ने बिना नाम लिए सोनिया गांधी को भी संकेत किया कि यह समय इस तरह का सवाल उठाने का नहीं एकता प्रदर्शित करने का है। क्या हम आप कल्पना कर सकते थे कि ममता का ऐसा तेवर हो सकता था? यह एक उदाहरण हमें बताता है कि हम चाहे राजनीतिक दलों की जितनी आलोचना करें, राष्ट्रीय संकट या चुनौतियों के अवसर पर वे पूरी जिम्मेवारी का परिचय देंगे।

शिवेसना भाजपा के खिलाफ पिछले कुछ समय से कैसा तेवर अपनाती है यह छिपा नहीं है। शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक प्रश्न सरकार पर नहीं उठाए। उन्होंने कहा कि भारत शांति चाहता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कमजोर हैं। चीन का चरित्र ही धोखा देना रहा है। भारत मजबूत है, मजबूर नहीं। हमारी सरकार के पास ताकत है कि वह आंखें निकाल कर हाथ में दे देगी। राकांपा के शरद पवार विपक्ष के सबसे अनुभवी नेताओं में है। उन्होंने अनावश्यक बयानवाजी करने वाले नेताओं को सीख देते हुए कहा कि हमें इस संवेदनशील मुद्दे का सम्मान करना चाहिए। सैनिक हथियार ले गए थे या फिर नहीं, यह फैसला अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत किया गया है। वे रक्षा मंत्री रहे हैं। उन्हें चीन के साथ संबंधों का सच मालूम है। साफ है कि यह राहुल गांधी की बयानवाजी का जवाब था। बीजू जनता दल की तरफ से पिनाकी मिश्रा सर्वदलीय बैठक में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि हमारे नेता नवीन पटनायक जी का यह संदेश कहा कि इस मौके पर कोई भी राजनीतिक दल आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति नहीं करे। पूरे देश की एक आवाज होनी चाहिए। सरकार जो भी फैसला करेगी, हमारी पार्टी उनके साथ है। यहां सारे नेताओं के बयानों को उद्धृत करना संभव नहीं है। ये उदाहरण पर्याप्त हैं कि सर्वदलीय बैठक का पूरा माहौल कैसा रहा। केवल राजग के साथी नीतीश कुमार, अन्नाद्रमुक, अकालीदल और पूर्वोत्त्तर के नेता ही नहीं, तेलांगना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव, आंध्र के जगनमोहन रेड्डी, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, डीएमके स्टालिन…सभी ने चीन के विरुद्ध सरकार पर पूरा विश्वास होने की बात कहते हुए साफ कहा कि हम बिल्कुल एकजुट हैं और रहेंगे।

इस तरह सर्वदलीय बैठक से निकली एकजुटता और चीन से हर स्तर पर निपटने के संकल्प ने देश का माहौल ज्यादा सकारात्मक बनाया है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह कहकर कि सेना को सीमा पर चीन से निपटने की पूरी छूट है, हमारे जवान चीनी सैनिकों को टोकते हैं, रोकते हैं और यह होता रहेगा, जिस तरह का आधारभूत संरचना हमने उन क्षेत्रों में निर्मित किया है और जो बची हुई है उसे हर हाल में पूरा करेंगे…चीन को सीधा दिया है कि भारत उनका हर स्तर पर सामना करने के लिए तैयार है। दुनिया को भी संदेश चला गया है कि भारत अब एकजुट होकर चीन के साथ सैन्य, कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चा पर निपटने के लिए खड़ा हो चुका है। साथ ही देश को भी आश्वासन मिला है कि एर्क इंच भूमि और एक भी पोस्ट न चीन के हाथ में गया है न जाएगा। हम शांति के नाम पर ठगा सा रहने वाले नहीं है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्ल्पेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208

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