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कुपोषण उन्मूलन में मिलेट्स कर सकते हैं हमारी मदद

Published: May 26, 2023 09:40:08 pm

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Patrika Desk

भारत ने अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष को जनांदोलन बनाने के संदर्भ में राष्ट्रीय पोषण अभियान के तहत पंचायत समितियों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा वर्करों और एएनएम नर्सों के साथ मिलकर कुपोषण उन्मूलन की योजना बनाई है। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण अभियान 2023 के अंतर्गत 1 सितंबर से लेकर 30 सितंबर तक विशेष पोषण माह मनाया जाएगा। कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी योजनाओं को क्रियान्वित किया जाना स्वाभाविक है।

कुपोषण उन्मूलन में मिलेट्स कर सकते हैं हमारी मदद
कुपोषण उन्मूलन में मिलेट्स कर सकते हैं हमारी मदद
डॉ. विनोद यादव
शिक्षाविद् और इतिहासकार

कुपोषण भारत की गंभीरतम समस्याओं में से एक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार देश में कुपोषण संबंधित आंकड़े काफी चिंताजनक हैं। एक समाचार एजेंसी ने पिछले वर्ष महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से आरटीआइ द्वारा देश के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुपोषित बच्चों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही, तो पता चला कि देश भर में 33 लाख, 23 हजार, 322 बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज्यादा यानी 17,76,902 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा झारखंड, महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में कुपोषण की वर्तमान दर 42.3 फीसदी है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि प्रांत के 90 प्रतिशत बच्चों को सही से पोषण नहीं मिल पा रहा है। इसकी वजह से बच्चे बौनेपन के शिकार हो रहे हैं। अन्य आंकड़ों के अनुसार झारखंड में 37.9 फीसदी ऐसी युवतियां हैं, जिनका विवाह 14-15 वर्ष की उम्र में ही हो जाता है। यानी बाल विवाह राज्य के लिए अभिशाप बना हुआ है, समाजशास्त्रियों की राय में बाल विवाह बच्चों के कुपोषण का बड़ा कारण बताया जा रहा है।
महाराष्ट्र में कुपोषित बच्चों की संख्या 6.16 लाख दर्ज की गई है। इसमें 4,75,824 बच्चे बेहद कुपोषित हैं, और 1,57,984 बच्चे अल्प-कुपोषित की श्रेणी में हैं। बिहार में 4,75,824 बच्चे कुपोषित हैं, जबकि गुजरात में 3.20 लाख बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं। दूसरे राज्यों मेंं भी हालत ठीक नहीं हैं। जैसे आंध्र प्रदेश में 2,67,228 बच्चे और तेलंगाना में 1,52,524 बच्चे कुपोषित हैं। कर्नाटक में 2,49,463 बच्चे कुपोषित हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश में 1.86 लाख, तमिलनाडु में 1.78 लाख, और असम में 1.76 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। गौरतलब है कि भारत के प्रस्ताव और प्रयासों के फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को 'अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्षÓ घोषित किया है। डब्ल्यूएचओ की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक भारत का हर चौथा बच्चा कुपोषित है। इस संदर्भ में भारत में मिलेट्स की जागरूकता को लेकर चलाया जा रहा अभियान बच्चों के अलावा बड़ों में भी आयरन और जिंक सहित अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति करके कुपोषण की समस्या को दूर करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। मिलेट्स की श्रेणी में बाजरा, रागी, बैरी, झंगोरा, कुटकी जैसे आते हैं। इन खाद्यान्नों में खासतौर पर मोटे अनाज- ज्वार, बाजरा और रागी को श्री अन्न के तौर पर नई पहचान मिली है। श्री अन्न फाइबर का अच्छा स्रोत माने जाता है। इसमें तुलनात्मक रूप से मिनरल्स, विटामिन आदि तमाम पोषक तत्त्व कहीं ज्यादा होते हैं।
दरअसल, भारत के लिए मिलेट्स की जागरूकता को लेकर चलाए जा रहे अभियान के कई मायने हैं। इसका महत्त्व इस बात से समझा जा सकता है कि हार्वर्ड टीएच चेन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की ओर से नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 तक भारत के लोगों में आयरन और जिंक की कमी विकराल रूप धारण कर सकती है। आज भी देश की तकरीबन 50 फीसदी जनसंख्या में आयरन की कमी महसूस की जाती है। इसकी गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि इनमें 61 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं हैं। जाहिर है इससे मां के साथ ही नवजात का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है, जो जानलेवा भी साबित हो जाता है।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष को जनांदोलन बनाने के संदर्भ में राष्ट्रीय पोषण अभियान के तहत पंचायत समितियों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा वर्करों और एएनएम नर्सों के साथ मिलकर कुपोषण उन्मूलन की योजना बनाई है। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण अभियान 2023 के अंतर्गत 1 सितंबर से लेकर 30 सितंबर तक विशेष पोषण माह मनाया जाएगा। कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी योजनाओं को क्रियान्वित किया जाना स्वाभाविक है।
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