scriptआत्म-दर्शन: सभी को सुख चाहिए | Mind And Soul: Everyone needs happiness article by Dalai Lama | Patrika News

आत्म-दर्शन: सभी को सुख चाहिए

locationनई दिल्लीPublished: Oct 01, 2020 03:21:03 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

चन्द्रमा को लें, वह दूर से सुंदर लगता है, लेकिन वहां जा कर बसना संभव नहीं है।

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एक बच्चे के रूप में बौद्ध धर्म के अध्ययन के समय मुझे पर्यावरण के प्रति देखभाल का व्यवहार सिखाया गया। हमारी अहिंसा का अभ्यास केवल मनुष्यों पर ही लागू नहीं होता, परन्तु सभी पर लागू होता है, हर वह प्राणी जिसमें चित्त हो। जहां चित्त है, वहां पीड़ा, आनन्द और सुख जैसे भाव भी होते हैं। कोई भी दु:ख नहीं चाहता, पर सभी सुख चाहते हैं।
मेरा विश्वास है कि एक आधारभूत स्तर पर सभी में यह भाव होता है। बौद्ध धर्म के अभ्यास के दौरान हम इस अहिंसा के विचार और हर प्रकार के दु:ख को समाप्त करने के इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि हम किसी को भी बिना सोचे समझे हानि नहीं पहुंचाते। यद्यपि हम यह नहीं मानते कि वृक्षों और पुष्पों का भी चित्त होता है, पर फिर भी हम उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार करते हैं। इस तरह हम मनुष्यों और प्रकृति के प्रति एक ही प्रकार की वैश्विक उत्तरदायित्व की भावना रखते हैं।

धरती की देखभाल में कोई विशिष्टता, कोई पवित्रता जैसी बात नहीं है। यह तो केवल अपने घर की देखरेख जैसा है। हमारे पास इस एक धरती को छोड़ कोई अन्य ग्रह नहीं। यद्यपि यहां बहुत अधिक अशांति और समस्याएं हैं, पर हमारे पास यही एक विकल्प है। हम दूसरे ग्रह नहीं जा सकते। उदाहरण के लिए चन्द्रमा को लें, वह दूर से सुंदर लगता है, लेकिन वहां जा कर बसना संभव नहीं है। इसलिए हमें अपने स्वयं अपने स्थान या घर या ग्रह की देखरेख करनी चाहिए।
मासूम पशुओं, कीटों, चीटियों, मधुमक्खियों आदि की ओर देखकर मेरे मन में उनके प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न होती है। उनका कोई धर्म, कोई संविधान, कोई पुलिस बल नहीं है, परन्तु प्रकृति के अस्तित्व के स्वाभाविक नियमों या प्रकृति के नियमों या प्रणाली को मानते हुए वे समरसता से जीते हैं।
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