पिछले तीन-चार दिन के सियासी घटनाक्रम में कांग्रेस के दो विधायक बी.एस. आनंद सिंह और बी. नागेंद्र एकाएक चर्चा में आ गए हैं। बताते हैं कि ये दोनों नवनिर्वाचित विधायक अपनी ही पार्टी नेताओं के संपर्क में नहीं आ पाए हैं। विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोपों और रिजॉर्ट की राजनीति के बीच कर्नाटक में सत्ता के समीकरणों पर सबकी नजर हैं। जिन दो विधायकों को लापता बताया जा रहा है वे दोनों खनिज संपदा से संपन्न बेल्लारी जिले के हैं। दोनों कभी बेल्लारी में राजनीतिक तौर पर काफी सशक्त पूर्व मंत्री जनार्दन रेड्डी और उनके भाइयों के करीबी माने जाते थे। दोनों अवैध लौह अयस्क खनन मामले में करीब डेढ़ साल तक रेड्डी के साथ जेल में रह चुके हैं।
इस बार रेड्डी बंधुओं की राजनीति में वापसी के बाद से एक बार फिर आनंद और नागेंद्र को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर जारी है। आनंद और नागेंद्र दोनों ही तीसरी बार विधानसभा के लिए चुने गए हैं। दोनों की पृष्ठभूमि भी खनन कारोबार से जुड़ी है। दोनों ने राजनीतिक सफर भाजपा से ही शुरू किया था। दोनों ही पहली बार 2008 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे। आनंद सिंह विजयनगर (होसपेट) और नागेंद्र कुडलिगी से चुने गए हैं। आनंद राज्य के अरबपति विधायकों में से एक हैं। आनंद ने उस वक्त भी भाजपा का साथ नहीं छोड़ा जब रेड्डी बंधुओं के हाशिए पर जाने के बाद श्रीरामुलू ने अलग पार्टी बनाई थी। भाजपा के साथ निष्ठावान बने रहने के चलते ही जगदीश शेट्टर सरकार में आनंद पर्यटन मंत्री भी बने।
कभी रेड्डी बंधुओं के करीबी रहे नागेंद्र का नाम भी लौह अयस्क के अवैध कारोबार, परिवहन और निर्यात मामले से जुड़ा है। बाद में मनमुटाव के कारण रेड्डी बंधुओं से बी.नागेंद्र अलग हो गए। 2013 के चुनाव में नागेंद्र निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरे और जीते भी। इस बार चुनाव से पहले नागेंद्र ने कांगे्रस का दामन थाम लिया। कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे नागेंद्र ने इस बार रायचूर के पूर्व सांसद व श्रीरामुलू के रिश्तेदार सन फकीरप्पा को हराया।
– बेंगलूरु से जीवेंद्र झा