Patrika Opinion : साइबर बाल यौन शोषण से जुड़े अपराधों से निपटने के लिए अभी संसाधनों की काफी कमी है। सेवा प्रदाताओं से सबूत हासिल कर उन्हें अदालतों में पेश करने की चुनौती भी कम नहीं है। बच्चों की दुनिया के कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल व अन्य स्क्रीन उपकरणों में सिमटते रहने के दौर में जनजागरूकता के बिना ऑनलाइन यौन उत्पीडऩ के खतरे कम होना आसान नहीं।
नई दिल्ली•Nov 18, 2021 / 09:03 am•
Giriraj Sharma
Patrika Opinion : सतर्कता से ही रुकेगा तकनीक का दुरुपयोग
Patrika Opinion : साइबर बाल यौन शोषण का जाल किस कदर फैला हुआ है इसका अंदाजा केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआइ की कार्रवाई से लगाया जा सकता है। सीबीआइ ने जिस अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को जांच के दायरे में लिया है, उसकी पड़ताल के बाद इस संबंध में और खुुलासा होगा। तकनीक के बेजा इस्तेमाल ने बच्चों से जिस तरह से खिलवाड़ करना शुरू किया है वह सामाजिक रूप से बड़ी समस्या का रूप लेकर तो सामने आया ही है, साइबर अपराध से निपटने की बड़ी चुनौती के रूप में भी उभर कर आया है। हैरत की बात यह है कि ऐसे मामलों में कई बार तो यौन शोषण के शिकार हुए बच्चों और उनके अभिभावकों को इसकी भनक तक नहीं लगती कि कोई शातिर दिमाग सोशल मीडिया पर साझा की गई बच्चों की फोटो व वीडियो को अश्लील बनाकर अवैध कमाई का जरिया बनाने में जुटा है।
कोरोनाकाल में लॉकडाउन के दौर मेे बच्चों का अधिकांश समय इंटरनेट पर बीता है। तकनीक के जानकार मानते हैं कि इस दौरान बच्चों के साथ ऑनलाइन यौन शोषण, अश्लील संदेशों के आदान-प्रदान व पोर्नोग्राफी के संपर्क में आने जैसे जोखिमों का सामना स्वाभाविक है। साइबर अपराधी नित नए एप्स का इस्तेमाल कर कानून की आंखों में धूल झोंकने में जुटे हैं। हमारे यहां के बच्चों को लेकर तैयार की गई अश्लील सामग्री का इस्तेमाल दुनिया के दूसरे देशों में कहां-कहां हो रहा है इसका पता लगाना भी जांच एजेंसियों के लिए काफी मुश्किल है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने पिछले एक साल में ही चाइल्ड पोर्नोग्राफी के देश भर में 735 मामले दर्ज होने की जानकारी दी है। सीबीआइ की राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत पन्द्रह राज्यों में की गई कार्रवाई के दौरान हिरासत में लिए गए लोगों से पूछताछ में नेेटवर्क का खुलासा होना बाकी है। पर इतना साफ है कि साइबर बाल यौन शोषण से जुड़े अपराधों से निपटने के लिए अभी संसाधनों की काफी कमी है। सेवा प्रदाताओं से सबूत हासिल कर उन्हें अदालतों में पेश करने की चुनौती भी कम नहीं है। बच्चों की दुनिया के कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल व अन्य स्क्रीन उपकरणों में सिमटते रहने के दौर में जनजागरूकता के बिना ऑनलाइन यौन उत्पीडऩ के खतरे कम होना आसान नहीं।
एक तरफ ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने की चिंता है तो दूसरी तरफ सरकार की ओर से की जाने वाली निगरानी को निजता का हनन बताने की बातें भी कम नहीं होतीं। जाहिर है, दोनों चिंताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसा प्रबंध करना होगा जिससे खास तौर से बच्चों को ऑनलाइन यौन हिंसा का शिकार होने से तो रोका ही जाए, निजता की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े न हों।