इस बात में कोई दोराय नहीं कि विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने बेहद अच्छा कार्य किया और उनके काम की प्रशंसा भी हुई। लेकिन, उनके साथ विदेश सचिव एस. जयशंकार के प्रशासनिक सहयोग को भी खूब सराहना मिली। वे राजस्थान के नटवर सिंह के बाद ऐसे दूसरे विदेश मंत्री हैं जो विदेश विभाग में नौकरशाह के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। यदि आज भारत के संबंध चीन, अमरीका, रूस, फ्रांस आदि के साथ सुधरे हैं, तो इसका बड़ा श्रेय एस. जयशंकर को ही जाता है। चीन मामलों को लेकर वे प्रधानमंत्री मोदी के विश्वासपात्र रहे हैं और शायद इसीलिए उन्हें आउट ऑफ टर्न कोटे से चुना गया है। बात करें आर्थिक मंत्रालय की, तो मुझे याद नहीं इंदिरा गांदी के अतिरिक्त किसी अन्य महिला के पास यह विभाग रहा होगा। निर्मला सीतारमण को कई अन्य विभागों के अलावा रक्षा मंत्रालय का जिम्मा संभालने का अच्छा अनुभव है। महिला होने के नाते उन्हें महिलाओं से जुड़ी समस्याओं की जानकारी है। अब उनके सामने चुनौती होगी कि देश सामाजिक और आर्थिक तौर पर सक्षम बने। उनका लक्ष्य भाजपा की सोच को आगे बढ़ाते हुए देश को 2022 तक आर्थिक स्वराज दिलाना होगा।
राजनाथ सिंह देश के गृहमंत्री रह चुके हैं और पिछले कार्यकाल में उन्होंने सौंपे गए कार्य को न केवल सफलतापूर्वक निभाया बल्कि उन्होंने अपनी छवि बेदाग बनाए रखी। उनके सामने इस बार रक्षा मंत्री के तौर पर सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी होगी। पिछली सरकार पर रफाल विमान की खरीद में घोटाले के आरोप लगे लेकिन वे सिद्ध नहीं हो सके। इससे पूर्व यूपीए कार्यकाल में देश के रक्षा मंत्री बेदाग ही रहे शायद इसका बड़ा कारण यह भी रहा कि पूर्व में रक्षा सामग्री की खरीद ही नहीं हुई। राजनाथ सिंह से देश को यही उम्मीद है कि उनकी अगुवाई में देश में अपेक्षित रक्षा सामग्री की खरीद भी होगी और मंत्रालय सुरक्षित हाथों में रहेगा।
सड़क परिवहन मंत्रालय का जिम्मा पहले भी अनुभवी नितिन गडकरी के पास था और इस बार भी उन्हें ही सौंपा गया है। देश का विकास बिना सडक़ों के नहीं हो सकता है। लंबे समय तक धारणा रही कि देश में सडक़ बनाने का काम एक धंधा बनकर रह गया। लेकिन, जिस तरह से देश आगे बढ़ रहा है, देश में मजबूत और बेहतर गुणवत्ता वाली सडक़ें पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिली हैं। बेहतर गुणवत्ता से अर्थ है कि सड़कों पर गड्ढे न हों और वह कम से कम 40-50 वर्षों तक तो ठीक-ठाक रहे। अब गडकरी के सड़क परविहन मंत्री रहते हुए यह काम और तेजी से आगे बढ़ेगा।
पूर्व में मंत्रिमंडल में उत्तर भारत का बोलबाला रहा करता था लेकिन इस बार पश्चिम और मध्य क्षेत्र की महत्ता को भी समझा गया है। गुजरात से अमित शाह चौंकाने वाला नाम हैं जिन्हें गृह मंत्रालय का भार सौंपा गया है। शाह को भाजपा के मुख्य मुद्दे जैसे अयोध्या में राममंदिर बनवाने, अनुच्छेद 370 हटाने, असम में नागरिकता कानून आदि को लागू करने के प्रयास करने होंगे। राज्यों के साथ तालमेल के अलावा आंतरिक सुरक्षा के लिए उन्हें नक्सल समस्या से निपटना होगा।
राजस्थान पानी की समस्या को अच्छी तरह से समझता है और शायद इसीलिए जलशक्ति का जिम्मा गजेंद्र सिंह शेखावत को दिया गया है। इसी तरह मध्य प्रदेश के नरेंद्र सिंह तोमर को कृषि मंत्रालय सौंपा गया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी से हराकर लोकसभा में पहुंचने वाली इस तेज-तर्रार नेता स्मृति ईरानी को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का भार सौंपा गया है। निश्चित ही उनसे महिला समस्याओं से प्रभावी तरीके से निपटने की अपेक्षा है। उन्हें कपड़ा मंत्रालय भी सौंपा गया है। रमेश पोखरियाल निशंक बेहद अनुभवी हैं। वह खुद शिक्षक रह चुके हैं और शिक्षा क्षेत्र की अच्छाई-बुराई से वाकिफ भी हैं। उनके सामने मानव संसाधन विकास मंत्री के तौर पर भाजपा की नई शिक्षा नीति को लागू करवाने की चुनौती होगी। यह दूरगामी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाला है।
पिछली मोदी सरकार ने देश के 50 करोड़ लोगों को आयुष्मान भारत का तोहफा दिया। अब इसे लागू करवाना राज्यों के स्तर पर काफी बड़ी चुनौती है। हर्षवर्धन पहले भी स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल चुके हैं और उन्होंने देश में पोलियो को जड़ से मिटाने के अभियान में जबर्दस्त भूमिका भी निभाई है। शायद प्रधानमंत्री मोदी ने यही सोचकर उन्हें स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है। संभव है पिछले कार्यकाल में किसी मंत्री का कार्य प्रदर्शन कमजोर या औसत रहा हो, पर राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का कार्य प्रदर्शन शानदार रहा। उन्हें मंत्रिमंडल में इस बार न लेना चौंकाने वाला रहा। हो सकता है कि संगठन स्तर पर उनका उपयोग किया जाए।
मेरा शुरू से मानना रहा है कि मजबूत और पूर्ण बहुमत वाली सरकार के तानाशाही रवैया अख्तियार करने की आशंका तो रहती है लेकिन देश के लोकतंत्र में ऐसा हो पाना न तो सरल है और न ही अच्छा। पूर्ण बहुमत की सरकार अपनी नीतियों को ठीक से लागू कर पाती है और गठबंधन की मजबूरी वाली सरकारों की तरह पूर्ण बहुमत की सरकार में कम से कम ब्लैकमेलिंग नहीं होती। जदयू के सांसदों को मंत्रिमंडल में अधिक स्थान देने की जिद कुछ इसी किस्म की थी। भाजपा, गठबंधन के सहयोगी दलों को साथ लेकर तो चल रही है लेकिन सहयोगी दल उसकी मजबूरी नहीं है। यह अच्छा संकेत है। विश्व में भी इससे अच्छा संदेश जाता है कि इस सरकार में फैसले जल्द किए जा सकेंगे क्योंकि भारत में अब मजबूत सरकार है।