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मानसून, अनिश्चितता और तैयारी

locationजयपुरPublished: Jun 06, 2019 03:03:52 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

मानसून का दीर्घकालिक पूर्वानुमान अत्यधिक कठिन होता है। ऐसे में जो सूचनाएं मौसम विभाग या अन्य तंत्र देते हैं, उनके आधार पर क्या-क्या निर्णय लिए जा सकते हैं, इस बारे में एक ठोस प्रणाली विकसित करने और व्यापक प्रबंधन करने की जरूरत है।

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लक्ष्मण सिंह राठौड़, मौसम विज्ञानी

किसानों को यह देखना होगा कि वे ऐसी फसल का चयन करें, जिसे कम पानी की आवश्यकता हो। साथ ही साथ फसल की ऐसी प्रजाति का चयन करें जिसकी बुवाई देरी से की जा सके। सरकारों के लिए यह चुनौती है कि उन प्रजातियों के बीज किसानों को समय पर उपलब्ध कराएं, अन्यथा इस वर्ष कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

मा नसून 2019 अपनी सुस्त शुरुआत के कारण अभी तक श्रीलंका के तट से म्यांमार तक ही सीमित है, जबकि इसे अब तक तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, समूचे उत्तर पूर्वी भारत तथा कर्नाटक एवं तेलंगाना के अधिकांश भागों तक पहुंच जाना चाहिए था। मानसून की धीमी शुरुआत के कारण न केवल किसानों बल्कि सरकारों एवं आम जनों के ऊपर चिंता के बादल मंडरा रहे हैं। आगामी 10 दिनों में सामान्यत: इसे भारत के दो तिहाई भू-भाग पर आ जाना चाहिए, परंतु अभी स्थिति यह है कि इसकी सुस्ती के चलते ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह अभी और पिछड़ेगा।

अगर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा प्रेषित पूर्वानुमान की बात करें तो मानसून के दौरान होने वाली वर्षा के सामान्य रहने की संभावना है। लेकिन मात्रात्मक रूप से यह वर्षा दीर्घावधि औसत (लॉन्ग पीरियड एवरेज या एलपीए) का 96% रहने की संभावना है इसमें 4% की मॉडल त्रुटि हो सकती है। क्षेत्रवार वर्षा के पूर्वानुमान का जिक्र करें तो इसके उत्तर पश्चिम भारत में दीर्घावधि औसत के 94%, मध्य भारत में 100त्न, दक्षिणी प्रायद्वीप में 97% तथा पूर्वोत्तर भारत में 91% रहने की संभावना है। इसमें 8% की मॉडल त्रुटि हो सकती है। हालांकि जुलाई में 95%तथा अगस्त में 99% वर्षा होने की संभावना जताई गई है।

प्रशांत महासागर पर वर्तमान कमजोर अल-नीनो की स्थिति मानसून ऋतु के पूर्वार्ध में जारी रहने की संभावना है। इसके बाद ऋतु के उत्तरार्ध में अल-नीनो के तटस्थ भाव में बदलने की प्रबल संभावनाएं है। अन्य परिस्थितियों के साथ कमजोर अल-नीनो की मौजूदगी कुल मिलाकर यह संकेत देती है कि मानसून के पूर्वार्ध के दौरान यानी जून एवं जुलाई माह में बारिश सामान्य से कम रह सकती है, जबकि उत्तरार्ध में मानसून की बारिश ठीक-ठाक रह सकती है।
हम जानते हैं कि मौसम एवं जलवायु का पूर्वानुमान एक दुष्कर कार्य है क्योंकि यह अनिश्चितता से भरपूर विषय है। खासतौर पर मानसून का दीर्घकालिक पूर्वानुमान अत्यधिक कठिन होता है। ऐसे में जो सूचनाएं मौसम विभाग या अन्य तंत्र देते हैं, उनके आधार पर क्या-क्या निर्णय लिए जा सकते हैं, इस बारे में एक ठोस प्रणाली विकसित किए जाने की जरूरत है। यहां इस बात को भी रेखांकित करने की आवश्यकता है कि मानसून चक्रवात तथा अतिरेक मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान केवल आधिकारिक एजेंसी ही करें अन्यथा आमजन एवं सरकारें भ्रमित हो सकती हैं, जिससे उचित निर्णय लेने में चूक हो जाती है।

उपरोक्त पूर्वानुमान एवं मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रबंधन की तैयारियां करनी होंगी। उदाहरण के तौर पर, किसानों को यह देखना होगा कि वे ऐसी फसल का चयन करें, जिसे कम पानी की आवश्यकता हो। साथ ही साथ फसल की ऐसी प्रजाति का चयन करें जिसकी बुवाई देरी से की जा सके। सरकारों के लिए यह चुनौती है कि उन प्रजातियों के बीज किसानों को समय पर उपलब्ध कराएं, अन्यथा इस वर्ष कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

भारत सरकार को इस स्थिति का भी आकलन अभी से करना होगा कि कमजोर मानसून के चलते किन-किन खाद्यान्नों व जिंसों के कम उत्पादन की आशंका है, ताकि समय रहते आयात के जरिए पूर्ति की जा सके। खाद्य सामग्री का निर्यात सोच-समझ कर करने के साथ जमाखोरी पर भी नजर रखनी होगी। मानसून कमजोर रहने की स्थिति में कुछ क्षेत्रों में सूखा पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। अत: सरकारों को अभी से सूखा प्रबंधन की तैयारियां चाक-चौबंद करनी होंगी। कृषि मंत्रालय द्वारा प्रयुक्त जिलेवार आकस्मिक योजना को समग्र रूप से ध्यान में रखते हुए प्रबंधन करना होगा। स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त संसाधनों एवं वित्त व्यवस्था भी समय रहते करनी होगी। आज भारतवर्ष के जलाशयों में उपलब्ध पानी की मात्रा का आकलन करें, तो पाएंगे कि जलाशय लगभग रिक्तता को छू रहे हैं। ऐसे में जबकि मानसून के पूर्वार्ध में कम बारिश की आशंका जताई गई है, पीने की पानी की कमी, जो अभी से मुखर हो चुकी है, लंबी चलेगी। अत: अच्छे जल प्रबंधन की भी जरूरत है।

इस पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा कि जल वितरण व्यवस्था में कहीं पशु नहीं छूट जाएं, चाहे वे आवारा ही क्यों न हों। इस दिशा में केंद्र सरकार द्वारा जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना अच्छा कदम माना जा सकता है। कृषि एवं जल के अलावा भी कई क्षेत्र हैं, जिन पर कमजोर मानसून का काफी प्रभाव पड़ता है। इनमें उद्योग (खासतौर पर वे उद्योग जो कृषि आधारित हैं), सेवा-क्षेत्र एवं विपणन पर नकारात्मक प्रभाव से संपूर्ण अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है। इसलिए कमजोर मानसून से उत्पन्न स्थितियों के प्रबंधन के लिए समग्र और सुदृढ़ दीर्घावधि नीति की दरकार है।

वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मुहैया करवाने के लिए मनरेगा जैसी योजनाएं प्रभाव में हैं, फिर भी कमजोर मानसून की स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को बेहतर रोजगार प्रदान करने के लिए इन योजनाओं को या तो अधिक लचीला बनाना होगा अथवा नई योजनाएं प्रभाव में लानी होंगी। प्रचलित फसल बीमा योजनाओं को अधिक किसानपरक बनाते हुए कृषि-कार्य में प्रयुक्त होने वाले खाद, बिजली, बीज इत्यादि को सस्ते दामों में उपलब्ध कराने हेतु भी सरकारों को विशेष प्रयास करने चाहिए। मौजूदा दौर में, डांवांडोल घरेलू सकल उत्पाद में वृद्धि का जहां तक सवाल है, केंद्र सरकार के लिए मानसून 2019 एक बड़ी चुनौती है।

(लेखक, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व महानिदेशक। सोसाइटी फॉर रूरल इम्प्रूवमेंट के अध्यक्ष।

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