हम बहुत सवेरे निकले और रात बहुत देर से लौटे पर वह एक दिन मुझे जर्मनी के जीवन के हर रंग से सराबोर कर गया! उमंग और उल्लास में डूबे लाखों लोग, उम्र की कोई सीमा नहीं। परिवार अपने बड़े-छोटे सदस्यों के साथ वहां दूर-दूर से आए थे। दुनियाभर के पर्यटकों के लिए सालों से यह एक बड़ा आकर्षण है। जहां तक नजर जाए बड़े-बड़े टेंट, अलग-अलग किस्म के झूले, दुकानें, करतब दिखाते कलाकार। दक्षिणी जर्मनी का यह छोर बवेरिया कहलाता है, जहां ग्रामीण लोक वेशभूषा में समूह में नाचते-गाते हैं, खचाखच भरे टेंटों में खाते-पीते हैं। उनका उत्साह ऐसे गूंजता है कि अपनी आवाज भी सुनाई नहीं देती। हजारों लोगों के बैठने के लिए बनाए जाने वाले इन टेंट में स्थान के लिए टिकट लेना होता है। उत्सव का दूसरा मशहूर नाम बीयर फेस्ट है तो स्पष्ट है कि बीयर इस उत्सव का खास पेय है। जैसे हमारे यहां ठंडाई और भांग को होली से जोड़ा जाता है। खाने के लिए भी बहुत कुछ है, पर आलू का सलाद मुझे आज भी याद है।
उत्सव का इतिहास आपको 12 अक्टूबर 1810 तक ले जाता है जब बवेरिया के राजकुमार लुडविग का विवाह हुआ था। उनके स्वागत के लिए आसपास के नागरिकों को शाही जश्न में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया गया था। भव्य परेड भी निकाली गई और हजारों घोड़ों की घुड़दौड़ भी हुई। लोगों को इतना आनंद आया कि राजपरिवार ने अगले साल भी उत्सव मनाने का निर्णय कर लिया। इस तरह यह वार्षिकोत्सव बन गया। कभी नेपोलियन, हिटलर, हैजा तो पिछले साल और इस साल कोरोना उत्सव के आयोजन में व्यवधान साबित हुए। इस साल तो उत्सव को दुबई ले जाए जाने की खबर भी फैली, जिस पर जर्मनी में विरोध प्रदर्शन भी हुए। स्पष्ट किया गया कि दुबई में माहौल जर्मनी वाला होगा और वह सिर्फ अक्टूबर फेस्ट ही कहलाएगा। अब तो भारत में भी कई होटल-रेस्त्रां अक्टूबर फेस्ट मनाते हैं।
एक और दिलचस्प बात यह कि म्यूनिख में इस उत्सव की घोषणा विधिपूर्वक की जाती है। बारह तोपों की सलामी के साथ म्यूनिख के मेयर लकड़ी के उस बड़े ढोल में, जिसमें उत्सव की बीयर भरी रहती है, के नल को लकड़ी के हथौड़े से ठोक कर खोलते हैं और पहला मग भर कर बवेरिया के मिनिस्टर-प्रेजिडेंट को परोसते हैं। आपको आने वाले सालों के अक्टूबर फेस्ट की तारीखें अभी इंटरनेट पर मिल जाएंगी। बस प्रार्थना कीजिए कि कोरोना का साया उत्सवों पर से हट जाए।