scriptमायथोलॉजी: राम कुल की प्रतिष्ठा के पीछे हैं परिवार की स्त्रियां | Mythology: The women of the family are behind the reputation of Ram | Patrika News

मायथोलॉजी: राम कुल की प्रतिष्ठा के पीछे हैं परिवार की स्त्रियां

locationनई दिल्लीPublished: Sep 23, 2020 03:06:40 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

आख्यान: किसी गृहस्थ व्यक्ति के महान होने में उसके पूरे परिवार के सद्गुणों का योगदान होता है। जब पूरे परिवार के सत्कर्म इकट्ठे होते हैं, तो व्यक्ति देवत्व को प्राप्त करता है। श्रीराम के साथ भी यही हुआ था।

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रामनगर की रामलीला स्थगित

भारतीय इतिहास में ‘राम कुल’ को सदा-सदा के लिए प्रतिष्ठित करने में उस परिवार की स्त्रियों का भी बहुत बड़ा योगदान है। महाराज दशरथ की चारों पुत्रवधुओं के सम्बंध में सोचें तो श्रद्धा से स्वत: शीश झुक जाता है। अपने कुल की प्रतिष्ठा के लिए क्या नहीं किया, बिदेह पुत्रियों ने। उतना समर्पण, उतना त्याग शायद ही और कोई कर सके। कहते हैं, घर घरनी का होता है। घर की प्रतिष्ठा स्त्रियों के व्यवहार से ही तय होती है। पुरुष घर के बाहर रह कर जीवन की चुनौतियों से युद्ध करता है, तो स्त्रियां घर के भीतर की असामान्य परिस्थितियों में तपस्या करती हैं। और तब जा के बनता है वह घर, जिसे मन्दिर कहा जा सके।
महाराज दशरथ के परिवार में भी यही हुआ। लक्ष्मण अपने अनुज धर्म का पालन करते हुए चौदह वर्ष वन के संकटों से जूझते रहे, तो उर्मिला भी चौदह वर्ष पति-वियोग सहते हुए परिवार के प्रति समर्पित रहीं। महात्मा भरत अपने प्रण को निभाने के लिए राजमहल छोड़ कर नगर के बाहर कुटिया में रहे, तो मांडवी महल में रह कर भी तपस्विनी सी ही जीती रहीं। महाराज दशरथ की मृत्यु दो पुत्रों के वनवास और तीसरे के स्वनिष्कासन के बाद वह उर्मिला और मांडवी जैसी देवियों की तपस्या ही थी कि एक पूरी तरह टूट चुका घर भी टूटा नहीं। चौदह वर्ष बाद जब राम लक्ष्मण लौटे तो अयोध्या उन्हें वैसी ही मिली जैसी वे छोड़ कर गए थे।

कैकेयी की एक भूल के कारण ही अयोध्या के राजकुल पर जिस तरह का संकट आया था, क्या उसके बाद सामान्य परिवार में कैकेयी जैसी स्त्री जी सकती थी? क्या सामान्य स्त्रियां अपने परिवार में ऐसी किसी स्त्री का सम्मान करेंगी? नहीं। पर उस कुल की स्त्रियों ने कभी कैकेयी को प्रताडि़त नहीं किया, कभी उन्हें भला-बुरा नहीं कहा। कैकेयी को किसी ने दोषी नहीं कहा, न पुत्रवधुओं ने, न ही कौशल्या या सुमित्रा ने। यह मर्यादा पुरुषोत्तम के परिवार की स्त्रियों की मर्यादा थी। यह कर्तव्य निर्वहन का आदर्श है। विश्व इतिहास में ऐसा उदाहरण और कोई नहीं।

किसी गृहस्थ व्यक्ति के महान होने में उसके पूरे परिवार के सद्गुणों का योगदान होता है। जब पूरे परिवार के सत्कर्म इकट्ठे होते हैं, तो व्यक्ति देवत्व को प्राप्त करता है। भगवान श्रीराम के साथ भी यही हुआ था।
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