भागचंद का भाग कभी नहीं खुला और अशोक रोते रहा। सुखीलाल पत्नी अमृता देवी के कटु वचन सुन कर दुखी रहे
नाम को लेकर हम बड़े चक्कर में रहते हैंं। शेक्सपियर कहते हैं कि नाम में क्या रखा है? गुलाब को किसी भी नाम से पुकारो, उसमें खुशबू और सौंंदर्य तो रहेगा ही। लेकिन हरेक आदमी इस तरह नहींं सोचता। नए मां-बापों के लिए आजकल नामों की भारी कमी किल्लत हैं। वे अपने नौनिहालों का ऐसा नाम रखना चाहते हैं जो आज तक किसी ने न रखा हो। ऐसा नाम ढूंढ़ने के लिए कई तो महीनों तक डिक्सनरी खोले बैठे रहते हैं पर नाम नहीं ढूंढ पाते।
ऐसा नहीं कि प्राचीन काल में यह समस्या नहीं थी। बेचारे अंग्रेज तो नामों की कमी से इतने बेहाल थे कि उन्हें अपने कई राजाओं को चाल्र्स और एडवर्ड से काम चलाना पड़ा। आजकल तो बाजार में नामों की किताब तक मिल जाती है पर उसे देखने से पता चलता है कि सारे नाम लगभग बासी हो चुके हैं। कई नाम और काम में इतना अंतर होता है कि वे कबीर की उलटबांसी लगते हैं जिन्हें सुनकर हांसी आने लगती है। चौराहे पर जो इंसान भीख मांगता है उसका नाम ‘लक्ष्मीचंद’ है।
एक बार हमें अपने नाटक का चंदा मांगने सेठ भीखामल के दरवाजे पर जाना पड़ा। हीरालाल को हमने कोयले की दलाली करते सुना तो आशा राम निखालिश निराशावादी निकले। हैरत तो तब हुई जब शांति स्वरूप को पुलिस पर पत्थर फेंकते देखा। एक बार हम अपने मित्र शेरसिंह के साथ जा रहे थे, तभी कुत्ता भौंका और वे सिर पर पैर रख कर भागे। एक बार बालकराम ब्रह्मचारी से मुलाकात हुई और हमने दांतों तले अंगुलियां दबा ली जब पता चला कि उनके बारह बच्चे हैंं। प्रीतम सिंह को जिन्दगी भर प्रीत न मिली और वे ताउम्र कुंआरे ही रहे।
आश्चर्य का पहाड़ तो तब टूटा जब सर्दी में दिगम्बर सिंह को कई गूदड़़ेे ओढ़े ेदेखा। बेचारे हवेलीराम किराए के घर में पैदा हुए और किराया चुकाते-चुकाते मर गए। भागचंद का भाग कभी नहीं खुला और अशोक को रोते ही देखा। सुखीलाल सदा पत्नी अमृता देवी के कटु वचन सुन कर दुखी रहे। नेता फूलचंद कद्दू जैसे मोटे थे। बेचारी गंगा और गोमती सुबह जल्दी उठ कर पब्लिक नल पर नहाती हैंं। प्रेमचंद में प्रेम का नामो निशान भी नहीं मिला।
रामचंद्र की पत्नी राधा निकली और कृष्ण कुमार की सीता। विजय कुमार कभी चुनाव नहींं जीत पाए। छोटू पड़ोसी की पत्नी लज्जा देवी इतनी जोर से दहाड़ती है कि राहगीरोंं के भी कान खड़े हो जाते हैं। मुरारी ने अपनी प्रेयसी राधा तो क्या अपनी पत्नी रीटा तक से कभी प्रेम से बात नहींं की। आनंद का गुस्सा हमेशा उसकी नाक पर रखा मिलता है। तो साहब नाम के चक्कर में न रहें आदमी की पहचान उसके काम से ही करें।
राही