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NASA: अंतरिक्ष में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी

locationजयपुरPublished: Mar 22, 2019 03:07:47 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

59वां अभियान दल अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर पहुंच चुका है, जिसमें कुल छह अंतरिक्षयात्री हैं। इनमें दो महिला अंतरिक्षयात्री हैं। अभियान दल 22 मार्च, 29 मार्च और 8 अप्रैल को तीन स्पेस-वॉक करेगा। 29 मार्च वाला स्पेस-वॉक पूर्णतया महिलाओं द्वारा होगा जिनके नाम हैं, ऐनी मैकक्लेन और क्रिस्टीना कोश।

women in space

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पीयूष पाण्डेय, विज्ञान लेखक

नासा के अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन का नाम आपने अवश्य सुना होगा। इसे 1998 में शुरू कर टुकड़ों में अंतरिक्ष में जोड़ा गया। पहले इसमें नासा की स्पेस शटल द्वारा अंतरिक्षयात्रियों को ले जाया गया और लम्बे प्रवास के बाद फिर दूसरे दल से उन्हें बदलकर पृथ्वी पर लाया जाता था। स्पेस शटल कार्यक्रम वर्ष 2011 में समाप्त हो गया। उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में मानवों और उपकरणों को ले जाने और वापस लाने का कार्य रूसी अंतरिक्षयान सोयुज द्वारा किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में तैरती 73 मीटरङ्ग108 मीटरङ्ग20 मीटर आकार की विशाल प्रयोगशाला है जिसमें मानव लम्बे समय तक रहकर गुरुत्वहीनता अथवा यों कहें कि अल्प-गुरुत्वीय परिवेश में तरह-तरह के प्रयोग करते हैं। यह पृथ्वी की सतह से औसतन 405 किमी. की ऊंचाई पर रहती है।

यह प्रयोगशाला हर 93 मिनट में पृथ्वी की एक प्रदक्षिणा पूरी करती है और इस प्रकार एक दिन में साढ़े पंद्रह चक्कर लगाती है। इसे ऐसा करते हुए अब 20 वर्ष से भी अधिक समय बीत चुका है और इनमें से अ_ारह वर्षों में मानव इसमें रहा। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन कार्यक्रम पांच अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक संयुक्त परियोजना है द्ग नासा (यूएस), रोस्कोसमोस (रूस), जेएक्सएए (जापान), ईएसए (यूरोप), और सीएसए (कनाडा)।

अब तक, 18 देशों के 236 लोग कई बार अंतरिक्ष स्टेशन का दौरा कर चुके हैं। अमरीका से 149, रूस से 47, नौ जापानी, आठ कनाडाई, पांच इतालवी, चार फ्रांसीसी, तीन जर्मन, और बेल्जियम, ब्राजील, डेनमार्क, ग्रेट ब्रिटेन, कजाकिस्तान, मलेशिया, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, स्पेन और स्वीडन से एक-एक अंतरिक्षयात्री इस पर जा चुके हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की मरम्मत करने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को बार-बार इसके बाहर आकर अंतरिक्ष में चल-फिर कर (स्पेस-वॉक कर) कार्य करना पड़ता है।

अंतरिक्ष में जाना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत सम्मान वाला अद्भुत अवसर होता है। इसके लिए लंबे प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। यान संचालन, उपकरणों द्वारा विभिन्न प्रयोग करना और प्रेक्षण लेना जैसे जटिल तकनीकी लक्ष्यों के अतिरिक्त शून्य गुरुत्व की अवस्था में रहने का प्रशिक्षण भी आवश्यक होता है। साधारण दैनिक कार्य भी अंतरिक्ष में बहुत चुनौतीपूर्ण होते हैं। जब मनुष्य अंतरिक्ष में जाते हैं, तो भारहीनता के कारण शरीर के द्रव पूरे शरीर में सब ओर समान रूप से वितरित होने लगते हैं। इसके चलते पैदा होने वाली स्थितियां भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होती हैं। अंतरिक्ष में आप एक गिलास को होठों पर लगाकर पानी पीने की कल्पना भी नहीं कर सकते। भारहीनता की अवस्था में गिलास का पानी एक गोल गेंद का आकार लेकर किसी भी दिशा में चल पड़ेगा, जो किसी यंत्र से टकराकर उसे क्षति भी पहुंचा सकता है, पर यदि इससे पूर्व ही आपने उसे अपने होठों से लगा लिया तो वह पूरे चेहरे पर फैल जाएगा।

इस समय 59वां अभियान दल स्टेशन पर पहुंच चुका है जिसमें कुल छह अंतरिक्षयात्री हैं, जिनमें दो रूस के और बाकी चार नासा के हैं, और इन चार में दो महिला अंतरिक्षयात्री हैं। यह अभियान दल तीन स्पेस-वॉक करेगा जो इस वर्ष 22 मार्च, 29 मार्च और 8 अप्रैल को होने हैं। 29 मार्च वाला स्पेस-वॉक पूर्णतया महिलाओं द्वारा होगा जिनके नाम हैं, ऐनी मैकक्लेन और क्रिस्टीना कोश।

अमरीका में वर्ष 1987 से मार्च के महीने को ‘राष्ट्रीय महिलाओं का महीना’ के रूप में मनाया जाता है। इस अवधि में अमरीकी महिलाओं के राष्ट्र निर्माण में अतुलनीय योगदान को याद किया और सराहा जाता है। अभी हाल में नासा के प्रशासक जिम ब्रिडेनस्टाइन ने एक प्रेसवार्ता में बताया कि नासा में महिलाएं प्रमुख भूमिका निभा रही हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि भविष्य के नासा के समानव मंगल अभियान द्वारा मंगल की जमीन पर पैर रखने वाला प्रथम व्यक्ति एक अमरीकी महिला हो।

इस बीच नासा का ध्यान एक बार फिर चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर है। भविष्य में दोनों पिंडों के लिए कई अभियान प्रस्तावित हैं। 20 जुलाई 1969 के ऐतिहासिक दिन को कौन भूल सकता है जब नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चन्द्रमा की सतह पर अपने कदम रखे थे? उस घटना को आगामी जुलाई में पचास वर्ष पूरे हो जाएंगे। नासा के लिए इसे पुन: याद करना गौरव का विषय है। नील आर्मस्ट्रॉन्ग के बाद उस अभियान अपोलो-11 में एडविन एल्ड्रिन ने चन्द्रमा पर कदम रखा था और उसके बाद अन्य अपोलो अभियानों द्वारा इन दो को मिलाकर सन् 1972 तक कुल 12 मानव चन्द्रमा पर चले-फिरे थे। कुछ ने वहां चंद्र बग्घी भी चलाई थी, चन्द्रमा के पत्थरों और मिट्टी के नमूने यहां-वहां से एकत्र कर परीक्षण करने के लिए पृथ्वी पर लाए थे। उसके बाद से अब तक नासा ने या किसी भी अन्य देश की स्पेस एजेंसी ने मानवों को चंद्र पर उतारने के बारे में नहीं सोचा। अब एक बार फिर नासा चन्द्रमा पर समानव अभियान भेजने की तैयारी में है। अभी इसकी पूरी रूपरेखा सामने नहीं आई है, परन्तु कार्य शुरू हो चुका है।

(लेखक, नेहरू प्लैनेटेरियम, मुंबई के निदेशक पद से सेवानिवृत्त।)

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