scriptहे ‘नाथ’ सन्त! | Nath Panth Traditions and Yogi Adityanath | Patrika News
ओपिनियन

हे ‘नाथ’ सन्त!

योगी आदित्यनाथ ‘नाथ’ सम्प्रदाय के महन्त हैं, जिसमें योगी मच्छेन्द्रनाथ, जलंधरनाथ, गोरखनाथ जैसे ऋषि तुल्य गुरु हुए हैं

Aug 15, 2017 / 09:56 am

Gulab Kothari

Yogi Adityanath Order to Grand Janamashtami

योगी आदित्यनाथ ने दिया भव्य जनमाष्टमी मनाने का आदेश

योगी आदित्यनाथ ‘नाथ’ सम्प्रदाय के महन्त हैं, जिसमें योगी मच्छेन्द्रनाथ, जलंधरनाथ, गोरखनाथ जैसे ऋषि तुल्य गुरु हुए हैं। यह सम्प्रदाय अखाड़ों के रूप में फैला हुआ है और रजवाड़ों के समय में शहरी सुरक्षा व्यवस्था के लिए जाना जाता था। आध्यात्मिक क्षेत्र की विशिष्ट परम्पराओं के लिए भी यह सम्प्रदाय जाना जाता है। आज योगी आदित्यनाथ राजनीतिक अखाड़े में उतर चुके हैं। राजनीति किसी मर्यादा एवं संवेदना से सम्बन्ध नहीं रखती। यह बात गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में ४८ घंटों में हुई ३० बच्चों की मौत से प्रमाणित हो गया। योगी के मुख से क्षमा याचना और धार्मिक मर्यादा से जुड़े दो शब्द भी नहीं निकल पाए। ऑक्सीजन की समाप्ति की चेतावनी दरकिनार हो गई। किसी को योगी की नाराजगी का डर नहीं था क्या?
योगी सरकार ने पहले मृतक बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम करवाने से क्यों मना कर दिया? क्या यह कार्य धर्म विरुद्ध था? क्या किसी निजी अस्पताल को ऐसी ही दुर्घटना पर माफ कर दिया जाता? मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का निलम्बन क्यों किया, क्या उसे बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए था।
दो शर्मनाक व्यवहार के उदाहरण योगी के धार्मिक आचरण को सीधा कलंकित करते हैं। वैसे तो सम्पूर्ण दुर्घटना ही सरकार पर कलंक है। उस पर स्वास्थ्य मंत्री का बयान दुर्घटना का मुंह चिढ़ा रहा है। वाह रे राजनीति! ‘अगस्त में मौत का आंकड़ा बढ़ जाता है। बच्चों की मौत उस समय में नहीं हुई, जब ऑक्सीजन समाप्ति का अलार्म बज रहा था। छह घंटे के बाद हुई।’ यह निर्लज्जता, निर्दयता और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कही जाएगी। इस पर योगी का महन्ती मौन?
सबसे दर्दनाक और अमानवीय कार्रवाई जो धार्मिक छाते के नीचे हुई वह थी डॉ. कफील खान को पद से हटा देने की। यह वार्ड के प्रभारी थे जिन्होंने इतने बच्चों की मृत्यु के बाद अन्य अस्पतालों से ऑक्सीजन सिलेण्डर मंगाए थे ताकि आगे बच्चों को मौत के मुंह से बचाया जा सके। ऐसे प्रयासों के लिए तो सरकार को उन्हें पारितोषिक देना चाहिए था। यहां भी राजनीति ही संस्कारों पर भारी पड़ गई। और यह सब कुछ धार्मिक चोगे के रहते।
योगी को एक तथ्य पर अवश्य विचार करना चाहिए कि यदि गोरखनाथ यह सब देख रहे होंगे तो क्या मन में आ रहा होगा उनके? क्या उनके उत्तराधिकारियों का भी ऐसा आचरण उन्हें स्वीकार होगा? राजनीति पर सम्प्रदाय हावी रहे तो उत्तम, सम्प्रदाय पर राजनीति हावी हो गई तो गद्दी ही कलंकित हो जाएगी। इस सबका समाधान यह है कि वे, वो करें जो उनका दिल कहे। किसी और को उनके विचारों को प्रभावित करने की छूट नहीं होनी चाहिए। और यदि वर्तमान भूमिका में उन्हें दिल की सुनना असंभव लगे तो गद्दी किसी और को सौंप खुद पूरी तरह राजनीति में उतर जाना चाहिए। वर्ना दो घोड़ों की सवारी हमेशा जान को जोखिम में बनाए रख सकती है।

Home / Prime / Opinion / हे ‘नाथ’ सन्त!

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो