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पुराने पापों की स्वीकारोक्ति से ही आगे बढ़ सकता है राष्ट्र

locationनई दिल्लीPublished: Jun 04, 2021 12:44:33 pm

‘सच का सामना कर हमें स्वीकारना होगा कि हमारे पास यह विकल्प नहीं है कि जो हम जानना चाहते हैं, सिर्फ वही जानें…’इतिहास को लेकर बाइडन की टिप्पणी सुनने-समझने लायक

पुराने पापों की स्वीकारोक्ति से ही आगे बढ़ सकता है राष्ट्र

पुराने पापों की स्वीकारोक्ति से ही आगे बढ़ सकता है राष्ट्र

मैक्स बूट, स्तम्भकार

नस्लभेद संबंधी सुर्खियों और बढ़ती चर्चाओं के बीच अमरीका की रिपब्लिकन पार्टी अतीत से विमुख होना चाहती है। इसीलिए रिपब्लिकन संघीय, राज्यीय और स्थानीय स्तर पर स्कूलों में ‘अमरीकी इतिहास में नस्लवाद की व्यापक भूमिका’ विषय पढ़ाए जाने पर रोक संबंधी कानून की तैयारी करते रहे। मतलब वे अतीत की ऐसी यादों को भुलाना चाहते हैं, ‘पुनर्निर्माण’ के दौरान नागरिक अधिकारों की रक्षा करने वाले अधिकारी रॉबर्ट ई. ली को हीरो बताने वाली अवधारणा पर लौटना चाहते हैं और यह तथ्य स्थापित करना चाहते हैं कि 1921 की टुल्सा का नरसंहार जैसी घटना कभी घटी ही नहीं थी।

टुल्सा नरसंहार में 300 अफ्रीकी-अमरीकी लोगों को मार डाला गया था और दस हजार को बेसहारा और बेघर करके छोड़ दिया गया था। इसी घटना पर हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडन ने इतिहास को लेकर जो टिप्पणी की, वह सुनने और समझने लायक है। बाइडन के शब्दों में- ‘एक अरसे से इतिहास उस घटना की मूक गवाही दे रहा है, जो यहां घटी थी और अंधकार में दब कर रह गई। परन्तु अगर अतीत चुप है तो इसका मतलब यह नहीं कि घटना घटी ही नहीं। और अंधेरा सिर्फ छिपा सकता है, अतीत को मिटा नहीं सकता। कुछ अन्याय इतने भयावह होते हैं कि उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। केवल सच, न्याय और अतीत में मिले घावों पर मरहम लगाना ही एकमात्र उपाय है। सच का सामना कर हमें स्वीकारना होगा कि हमारे पास यह विकल्प नहीं है कि जो हम जानना चाहते हैं, सिर्फ वही जानें, और वह नहीं, जिसके बारे में जानना चाहिए। महान राष्ट्र अच्छे-बुरे सभी तरह के अतीत को स्वीकार करते हैं। जरूरत है अतीत को मुकम्मल कर राष्ट्र का पुनर्निर्माण किया जाए।’

बाइडन के वक्तव्य का मतलब है कि अतीत की गलतियों को स्वीकार कर अमरीका अपना भविष्य बेहतर बना सकता है। अतीत को मिटाने की कोशिश न्यायसंगत समाज के निर्माण में बाधक है। अन्य देशों में भी ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। जर्मनी ने भी स्वीकारा है कि उसकी औपनिवेशिक ताकतों ने 1904 से 1908 के बीच दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका (मौजूदा नाम्बिया) में हेरेरो और नामा जाति के 75,000 लोगों को मार दिया और कई को शिविरों में धकेल दिया था। बर्लिन उन पीडि़तों के वंशजों के विकास पर एक बिलियन डॉलर खर्च करेगा। फ्रांसीसी प्रधानमंत्री एम्मानुएल मैक्रों नेे भी नेपोलियन की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित करने पर हुए विवाद में घिरने पर 1994 के रवांडा के 8 लाख लोगों के नरसंहार में फ्रांस की भूमिका पर माफी मांगी। इसके विपरीत कुछ राष्ट्राध्यक्ष ऐसे भी हैं जो अतीत को नकारना चाहते हैं, जैसे तुर्की के विदेश मंत्री ने प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन में 15 लाख अमरीकियों के मारे जाने संबंधी बाइडन के बयान पर ट्वीट कर कहा- ‘हमें अपने अतीत पर किसी से कुछ नहीं सीखना है।Ó तुर्की की एर्दोगन सरकार की तरह ही रूस की पुतिन सरकार सोवियत अपराधों की स्मृतियों को भुला देना चाहती है। पुतिन इतिहास के नरसंहार के लिए जिम्मेदार एक हत्यारे जोसफ स्टालिन का बचाव करते आए हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग माओ से-तुंग को हीरो बताने पर तुले हैं। माओ का दर्शन स्कूलों में पढ़ाया जाता है, चित्र चीनी मुद्रा पर अंकित है। जाहिर है एर्दोगन, पुतिन और शी प्रशासन अतीत के इन ‘नायकों के पदचिह्नों पर चलते दिख रहे हैं।

ऐसा तो नहीं कि रिपब्लिकन पार्टी भी अमरीकी इतिहास को पढ़ाए जाने की खिलाफत कर इसी राह पर चल पड़ी है। पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का आह्वान ‘देशभक्ति की शिक्षा’ तानाशाही रवैये को प्रतिध्वनित करती है। जितना ग्रांड ओल्ड पार्टी (जीओपी) नस्लवाद की बुराइयों के बारे में पढ़ाने का विरोध कर रही है, उतना ही इसका नस्लीय चेहरा उजागर हो रहा है।

द वॉशिंगटन पोस्ट

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