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वैश्विक सहयोग में ही निहित है राष्ट्र हित

locationनई दिल्लीPublished: Mar 26, 2021 08:40:58 am

– कोविड का एक साल और मानवता के लिए सबक भाग-4कोविड वर्ष में आपसी सहयोग और उदारता के भी कई उदाहरण सामने आए, लेकिन समस्त उपलब्ध संसाधनों को साझा करने, वैश्विक उत्पादन को सुचारु करने और आपूर्ति के समान वितरण को सुनिश्चित करने के कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए।

वैश्विक सहयोग में ही निहित है राष्ट्र हित

वैश्विक सहयोग में ही निहित है राष्ट्र हित

प्रो. युवाल नोआ हरारी

यदि कोविड-19, 2021 में भी जारी रहा और इसके चलते लाखों लोगों की जानें गईं, या 2030 में इससे भी ज्यादा घातक महामारी ने मानवता को घेर लिया, तो यह न तो अनियंत्रित प्राकृतिक आपदा साबित होगी, न ही ईश्वर का प्रकोप। बल्कि यह सिर्फ मानव की विफलता होगी, अधिक सटीकता के साथ कहा जाए तो राजनीतिक विफलता।

हांलांकि कुछ देशों ने कोरोना के खिलाफ जंग में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन संपूर्ण मानवता की बात की जाए तो महामारी पर काबू पाने की बात हो या वायरस को हराने के लिए एक वैश्विक योजना तैयार करने की, अब तक विफलता ही हाथ लगी है। 2020 के शुरुआती माह ऐसे गुजरे जैसे कि हम किसी दुर्घटना को होते हुए ‘स्लो मोशन’ में देख रहे हों। आधुनिक संचार युग में विश्व के लोगों ने रियल टाइम में इस आपदा को आगे बढ़ते देखा। पहली तस्वीर चीन के वुहान सेे आई, फिर इटली और उसके बाद एक-एक करके अन्य सभी देशों से, लेकिन इस महामारी के विनाश की चपेट में आने से दुनिया को बचाने के लिए कोई वैश्विक नेतृत्व उभर कर सामने नहीं आ सका। संसाधन मौजूद थे, लेकिन राजनीतिक दूरदर्शिता का ज्यादातर अभाव ही देखा गया।

महामारी से निपटने में वैज्ञानिक सफलता और राजनीतिक विफलता का एक कारण यह रहा कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने आपसी सहयोग दिखाया, लेकिन राजनेता प्रतिस्पद्र्धा के चलते ऐसा नहीं कर सके। काफी तनाव और अनिश्चितता के माहौल में काम करते हुए भी वैज्ञानिकों ने विश्व भर में जानकारियां साझा कीं और एक-दूसरे की पड़ताल और अंतर्दृष्टि पर विश्वास जताया। अंतरराष्ट्रीय टीमों ने कई अहम शोध परियोजनाओं को अंजाम दिया। उदाहण के लिए, विश्व भर के नौ संस्थानों (यूके का एक, चीन के तीन और अमरीका के पांच) ने एक अध्ययन किया जिसमें लॉकडाउन उपायों के कारगर होने की बात कही गई। इसके विपरीत, राजनेता वायरस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने और एक वैश्विक नीति बनाने में विफल रहे। अमरीका और चीन ने एक-दूसरे पर जानकारियां छिपाने और गलत सूचनाएं व महामारी को साजिश बताने वाली मनगढ़ंत कहानियां प्रचारित करने, और जानबूझ कर वायरस फैलाने के भी आरोप लगाए। कुछ अन्य देशों ने भी बढ़ती महामारी से संबंधित आंकड़े छुपाए या उन्हें झुठलाया।

वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग की कमी स्वयं में न केवल सूचना युद्ध की वजह बनी, बल्कि दुर्लभ चिकित्सा उपकरणों को लेकर टकराव का भी कारण बनी। हालांकि आपसी सहयोग और उदारता के भी कई उदाहरण सामने आए, लेकिन समस्त उपलब्ध संसाधनों को साझा करने, वैश्विक उत्पादन को सुचारु करने और आपूर्ति के समान वितरण को सुनिश्चित करने के कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। विशेष तौर पर, ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ ने देशों के बीच एक अलग प्रकार की असमानता को जन्म दिया है। एक ओर वे देश हैं जो अपनी समूची आबादी के टीकाकरण में सक्षम हैं, तो दूसरी ओर वे देश जो इसमें सक्षम नहीं हैं। महामारी को लेकर अधिकतर देशों का इस साधारण तथ्य को न समझना दुखद है कि जब तक दुनिया में कहीं भी वायरस का संक्रमण फैलता रहेगा, कोई भी देश सही मायनों में सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता। संभव है कि ब्राजील के किसी दूरदराज के इलाके में कोरोना के किसी नए स्ट्रेन पर वैक्सीन बेअसर रहे। ऐसा कुछ होता है तो यह संक्रमण की नई लहर का सबब बन सकता है। मौजूदा आपात स्थिति में यदि तमाम राष्ट्र आपसी सहयोग के लिए हाथ बढ़ाते हैं जो यह परोपकारिता नहीं होगी, बल्कि राष्ट्र हित सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करना आवश्यक होगा। मानव और रोगाणु की इस जंग में सबसे विकसित राष्ट्र के सबसे समृद्ध लोगों के लिए सबसे कम विकसित राष्ट्र के सबसे गरीब तबके के लोगों की सुरक्षा में उनका व्यक्तिगत हित है। दुनिया के किसी दूरदराज के जंगल में किसी पिछड़े गांव का एक गरीब शख्स किसी चमगादड़ से आए एक नए वायरस से संक्रमित हो जाता है तो कुछ ही दिनों में उस वायरस का असर वॉल स्ट्रीट पर भी देखा जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के रूप में वैश्विक महामारी रोधी तंत्र हालांकि पहले से मौजूद है, लेकिन इसका बजट काफी कम है और उसके पास कोई राजनीतिक शक्ति नहीं है। हमें इसे काफी अधिक फंड और राजनीतिक अधिकार देने चाहिए ताकि यह कुछ स्वार्थी राजनेताओं की मनमर्जी पर निर्भर न रहे। मेरा मानना है कि महत्त्वपूर्ण नीतिगत फैसलों की जिम्मेदारी गैर-निर्वाचित विशेषज्ञों को नहीं सौंपी जानी चाहिए। यह जिम्मा राजनेताओं का ही रहना चाहिए। लेकिन एक स्वतंत्र विश्व स्वास्थ्य अधिकरण होना चाहिए, जिसके अधीन स्वास्थ्य संबंधी तमाम डेटा संग्रहित रहे, जो संभावित खतरों को पहचान सके, चेतावनी जारी करे और अनुसंधान व विकास का मार्ग प्रशस्त करे।

कई लोगों को डर है कि कोविड-19 नई महामारियों की शुरुआत का संकेत है। लेकिन यहां जो सबक सुझाए गए, अगर उन पर अमल कर लिया जाए तो महामारियों की घटनाएं आम तौर पर नहीं घटेंगी। मानव जाति नए रोगाणुओं को नहीं रोक सकती। यह प्राकृतिक विकास प्रक्रिया है जो अरबों वर्षों से जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगी। परन्तु आज मानवता के विकास क्रम में हमने इतना ज्ञान अर्जित कर लिया है और इतने उपकरण विकसित कर लिए हैं जो किसी नए रोगाणु को फैलने और महामारी का रूप लेने से रोकने के लिए जरूरी हैं। यदि कोविड-19, 2021 में भी जारी रहा और इसके चलते लाखों लोगों की जानें गईं, या 2030 में इससे भी ज्यादा घातक महामारी ने मानवता को घेर लिया, तो यह न तो अनियंत्रित प्राकृतिक आपदा साबित होगी, न ही ईश्वर का प्रकोप। बल्कि यह सिर्फ मानव की विफलता होगी, अधिक सटीकता के साथ कहा जाए तो राजनीतिक विफलता।

राजनीतिक पक्षों के लिए सीख-
2020 में क्या हुआ था, इस पर तर्क-वितर्क की गूंज सालों तक सुनाई देती रहेगी। परन्तु सभी राजनीतिक पक्षों को कम से कम तीन सबक तो लेने ही चाहिए।
पहला, हमें अपने डिजिटल बुनियादी ढांचे की सुरक्षा करनी होगी। महामारी के संकट में हमें इसी ने बचाया है, लेकिन जल्द ही यह और भी गंभीर आपदा का कारण बन सकता है।
दूसरा, हर देश को जनस्वास्थ्य तंत्र में अधिक निवेश करना चाहिए। यह जाहिर तो नजर आता है, लेकिन कभी-कभी राजनेता और मतदाता सबसे ज्यादा स्पष्ट नजर आने वाले सबक की ही अनदेखी करने में कामयाब हो जाते हैं।
तीसरा, महामारी की निगरानी और उसे रोकने के लिए हमें एक सशक्त वैश्विक व्यवस्था बनानी ही होगी।

Copyright :copyright: Yuval Noah Harari 2021 / फरवरी 2021 में यह लेख फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित हुआ।

(लेखक प्रो. युवाल नोआ हरारी, बेस्टसेलर्स ‘सैपियंस’, ‘होमो डेस’ और ’21 लेसंस फॉर द ट्वेंटी फस्र्ट सेंचुरी’ के राइटर हैं)

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