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जल प्रबंधन की राष्ट्र नीति बने, ईमानदारी से लागू हो

locationनई दिल्लीPublished: Sep 01, 2020 06:26:08 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

‘कमाल का जल प्रबंधन!’ पर प्रतिक्रियाएं

खतरे के निशान से 2 मीटर ऊपर चंबल नदी

खतरे के निशान से 2 मीटर ऊपर चंबल नदी

प्राकृतिक सम्पदाओं से समृद्ध होने के बावजूद बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा में भारत की त्राहि-त्राहि के लिए जल कुप्रबंधन व भ्रष्टाचार को कारण बताते पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के अग्रलेख ‘कमाल का जल प्रबंधन!’ को प्रबुद्ध पाठकों ने हालात की सही तस्वीर बताया है। उन्होंने कहा है कि देश में एक जलनीति बनाई जानी चाहिए और यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसका क्रियान्वयन बिना राजनीति व भ्रष्टाचार के हो पाए। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से

वास्तविकता वाले सवाल
प्राकृतिक रूप से संपन्न भारत में आने वाली आपदाओं पर नौकरशाहों द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना रवैये को लेकर कोठारी ने जो सवाल उठाए हैं, वे देश की वास्तविकता हैं। अफसरशाही जनता के हितों से जुड़े फैसले लेने के बजाय अपना घर भरने में मशगूल है। इन पर नियंत्रण किए बिना देश का समुचित विकास संभव नहीं है।
अशोक कुमार सेठी, सीनियर एडवोकेट, हाईकोर्ट, इंदौर
अपेक्षानुरूप नहीं नौकरशाही
बात कोरोना वायरस की हो या बाढ़ की या फिर देश के विभिन्न राज्यों में टिड्डी के हमले की, हर स्थिति में हमारे देश के नेताओं और नौकरशाहों की भूमिका अपेक्षा अनुरूप नहीं रही है। आपदाओं में भी अवसर तलाश कर जमकर भ्रष्टाचार करने की जानकारियां मीडिया के माध्यम से आमजन तक पहुंचती रहती हैं। बावजूद इसके इनके व्यवहार में बदलाव नहीं आता।
विनय सराफ, सीनियर एडवोकेट, हाईकोर्ट, इंदौर
जलनीति की जरूरत
यह बात सही है भारत में जल का प्रबंधन बहुत ही निम्न स्तरीय है। पानी बांध बनाकर सहेजने की बात करें तो हजारों गांव में लोगों के मकान खेती नष्ट हो जाती है। बांधों में पानी के भराव को लेकर कोई नीति नहीं है। भारत का अधिकांश हिस्सा जलमग्न है तो कहीं पानी की बूंद नहीं है। आज भारत में एक जल नीति की जरूरत है जिससे जल का प्रबंधन सुधारा जाए।
सोमिल शर्मा,ग्वालियर
सरकार और अफसरशाही पर तीखा प्रहार
अग्रलेख में वर्तमान सरकारों और अफसरशाहों पर तीखा प्रहार किया गया है। सच भी तो है, आजादी के बाद से इन प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए हम कर भी क्या पाए हैं। यह अफसरशाहों का जल प्रबंधन ही तो है, जो बारिश में मौत और बर्बादी परोसता है तो गर्मियों में हम बूंद-बूंद को तरस जाते हैं।
हरिविष्णु अवस्थी, साहित्यकार, टीकमगढ़
…इसलिए नहीं निकलता समाधान
देश के नौकरशाहों की भूमिका और कर्तव्यपरायणता को कोठारी ने बखूबी दर्शाया है। जल प्रबंधन और बाढ़ प्रबंधन नौकरशाहों के लिए अपना घर भरने का अवसर है। तभी तो हर साल आने वाली बाढ़ का समाधान नहीं निकला। प्रबंधन के नाम पर हर साल कवायद होती है, लेकिन यह समस्या को खत्म करने के लिए नहीं, बल्कि कमाई के अवसर को बनाए रखने के लिए होती है।
महेंद्र नायक, प्रोफेसर कॉमर्स, छतरपुर
दूरदर्शिता के साथ काम की जरूरत
होशंगाबाद में दो दिन की बारिश में ही शहर डूब गया। अब इस दिशा में दूरदर्शिता की जरूरत है। जल प्रबंधन का यदि सही से इस्तेमाल किया जाए तो यह वरदान साबित हो सकता है। इससे न केवल किसानों को फसल के लिए भरपूर पानी मिलेगा, बल्कि औद्योगिक क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
सुनील यादव, नर्मदा सेना जिलाध्यक्ष, होशंगाबाद

क्रियान्वयन ठीक हो
जनता को लाभ पहुंचाने की बात कहकर हर साल नई-नई सरकारी योजनाएं तो बनाई जा रही हैं, लेकिन इनका क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं हो रहा है। जल प्रबंधन योजनाओं का भी यही हाल है। यही कारण है कि किसी भी योजना का शत प्रतिशत लाभ आम जनता को नहीं मिल पा रहा है।
आशीष शिंदे, अभिभाषक, गुना
बांधों का लाभ कम, नुकसान ज्यादा
डूब में आए गांव, कृषि भूमि, जंगल इन सबका क्षति मूल्य बांधों के लाभ से संभवत: कम होगा। देश के इंजीनियर, ठेकेदारों और नेताओं ने घटिया निर्माण कार्य करवाकर देश को ही चूना लगाया है। नहरों के जल की बर्बादी देखी है। अंधाधुंध नलकूप खनन से भूमिगत जल स्तर घटा है, भूमिगत जल प्रबंधन ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए हैं।
उमेश चौहान, शिक्षाविद, टिमरनी (हरदा)
हर वर्ष एक सा दृश्य, फिर भी बेबस
प्राकृतिक आपदा का बड़ा नुकसान झेलने वाले देश के कई राज्यों में हर साल वर्षाकाल के दौरान एक सा दृश्य नजर आता है। फिर भी देश में आज तक इस प्रलय से नुकसान को कम से कम तक पर रोकने और लोगों को सुरक्षित बचाए रखने के विकल्पों पर काम नहीं किया जा सका है। हमारी एजेंसियां और सरकार इसके लिए जिम्मेदार हैं।
पवन सोमानी, पूर्व पार्षद, रतलाम
आपदा बन सकती है वरदान
कोठारी ने जल की उपयोगिता व प्रबंधन के विषय मे सटीक टिप्पणी की है। जल से जीवन है। यदि दूरदृष्टि, संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ जल प्रबंधन किया जाए तो आज हमारे सामने खड़ी आपदा वरदान में बदल सकती है।
आलोक अग्रवाल, खंडवा
कभी नहीं बनी जल प्रबंधन योजना
इस देश में जल प्रबंधन को लेकर कभी कोई योजना नहीं बनी। हर वर्ष बारिश में एक तरफ बाढ़ की विभीषिका झेलने को लोग मजबूर होते हैं तो वहीं बारिश के बाद पेयजल के संकट से लोग पलायन तक को मजबूर हो जाते हैं। जल प्रबंधन अहम मुद्दा है, जिस पर राष्ट्रीय बहस और राष्ट्रीय नीति बनाने की जरूरत है। इस पर लोगों को जागरूक करने की भी जरूरत है।
विनोद दुबे, भूजलविद, जबलपुर
देश की परिस्थितियों के अनुरूप हो प्रबंधन
हमारे यहां जल के प्रबंधन और छोटे बांध से लेकर के बड़े पुलों के निर्माण में इस्तेमाल पश्चिमी सोच हावी है, जबकि जरूरत इस बात की है देश में भारत की परिस्थितियों के अनुरूप जल प्रबंधन किया जाए ताकि बारिश के जल का व्यवस्थित रूप से संग्रहण हो सके। हमारा भूजल स्तर भी बढ़े।
शशांक श्रीवास्तव, निवर्तमान महापौर, कटनी
कागजी घोड़े दौड़ा रहे है अधिकारी
सरकार और अधिकारी केवल कागजी घोड़े दौड़ा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं। इस बारिश में जहां सिवनी जिले में आने वाला पुल बनते ही टूट गया, वहीं पिछले साल भी शिवपुरी से श्योपुर के बीच में बना करोड़ों रुपए की लागत का पुल पहली बार में ही टूट गया था। बड़ी बात यह है इन मामलों में किसी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती।
दीपेश अग्रवाल, व्यवसायी, शिवपुरी
सरकारी सिस्टम भ्रष्ट
बारिश से आम आदमी को भले ही परेशानी होती है, लेकिन सरकारी सिस्टम की बांछें खिल जाती हैं, क्योंकि वह भ्रष्ट है। वे जानते हैं कि अतिवृष्टि के बाद लोगों के राहत के नाम पर करोड़ों रुपए आएंगे। नए-नए काम शुरू होंगे। सब चीजों से इनका ही फायदा है। आम जनता की असल राहत से किसी को सरोकार नहीं है।
मनोज पांडे, यूनिसेफ प्रतिनिधि, भोपाल
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