यही कारण है कि संवेदनशील कृतियों की संख्या अभी सीमित हैं। फॉर्मूला फिल्म-सीरियल लगातार नकारे जा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि निवेश पर कमाई के औसत में बड़ी फिल्में विफल रही हैं। असम की रीमा दास की कम बजट की ‘विलेज रॉकस्टार्स’ का ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्म उद्योग का प्रतिनिधित्व दर्शाता है कि क्रिएटिविटी की देश में कोई कमी नहीं है। दूसरी ओर, अत्यधिक कमाई की श्रेणी में हॉलीवुड की अंग्रेजी फिल्मों की संख्या बढ़ी है और ‘एवेंजर्स: इन्फिनिटी वार्स’, ‘जुरासिक वल्र्ड: फॉलन किंगडम’ और ‘मिशन इपॉसिबल’ ने अपने हिंदी संस्करणों से कस्बों के दर्शकों को भी आकर्षित किया है। इंटरनेट सुविधा सुलभ होने से अब वेब सीरीज मनोरंजन का नया और सशक्त माध्यम बनकर उभर रहा है। इसी कारण विदेशी कथानकों और जीवन शैली से प्रेरित ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘फ्लेम्स’, ‘मिर्जापुर’, ‘इनसाइड एज’ और ‘ब्रीद’ दर्शकों का ध्यान खींचने में सफल रही हैं।
हालांकि यहां सेंसरशिप का अभाव बड़ा मसला है। टीवी पर ‘कुमकुम भाग्य’, ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’, ‘कुल्फीकुमार बाजेवाला’, ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’, ‘कृष्णा चली लंदन’ या ‘भाबीजी घर पर हैं’ आदि के बावजूद कथानक में नवीनता का अभाव ही कारण कहा जाएगा कि ज्यादा टीआरपी रेटिंग रियलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ और ‘इंडियन आइडल’ ने अर्जित की। इस वर्ष भी सर्वाधिक लोकप्रिय फुटबाल का विश्व कप प्रसारण ही रहा, जिसे लगभग आधी दुनिया के लोगों ने देखा।
सोनम कपूर-आनंद आहूजा, रणवीर सिंह-दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा-निक जोनस की भव्य शादियां भी साल के खास आयोजन रहे। उम्मीद है आने वाले साल में भी रचनात्मक लोगों की सृजनशीलता अभिनय की दुनिया में कला की संस्कृति को जीवित रखेगी।