चीन के वुहान शहर से निकला कोरोना वायरस पूरे विश्व पर काल की भांति मंडरा रहा है। परेशानी इस बात से सबसे ज्यादा हो रही कि इस वायरस के गुण-धर्म और व्यवहार को लेकर पहले कोई अध्ययन नहीं है तो बचाव के उपायों में भी कोई सौ प्रतिशत खरा नहीं उतर रहा। हर उपाय और इलाज यही देख कर किया जा रहा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी चपेट से बचें या चपेट में आ भी गए तो अधिकतम जानें बचाई जा सकें। ऐसे ही बचाव के उस उपाय पर आज सवालिया निशान उठ गया है जिसने सबसे पहले और सबसे ज्यादा धूम मचाई थी । एन-95 अमोघ कवच के रूप में सामने आया था जिसका 2019 में मार्किट साइज वैश्विक तौर पर 610 मिलयन डॉलर का था परन्तु 2025 में अनुमानित 1650 मिलयन डॉलर हो गया। अर्थात 6 सालों में दोगुने से भी ज्यादा का विस्तार!
स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक ने एन-95 पर नई एडवाइजरी लाकर सनसनी फैला दी है। राज्यों के स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिवों को लिखे पत्र में कहा गया है कि एन-95 मास्क वायरस के फैलाव को रोकने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। इस मास्क को आम जनता द्वारा उपयोग में नहीं लाने पर ज़ोर दिया गया है। इस प्रकार के फिल्टर वाले मास्क का उपयोग सिर्फ स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ही जरूरी और उचित है। पत्र में बताया गया है कि इन फिल्टर्स से साँस लेते समय वायरस के भीतर आने का मौका बढ़ जाता है।
यही वही मास्क है जिसके नाम पर चीन ने अमेरिका और रूस जैसे महाशक्तियों को भी ठग लिया था। चीन ने भारत समेत कई देशों में उपयोग किये हुए या खराब मास्क भेजकर अपनी जग-हंसाई तो कराई थी। पर यह सिद्ध हो गया था की सबसे तेज़ी से भय का बाज़ार ही फलता-फूलता है।
भारत जैसे देश में तो ऐसा भय अपनी बाहें बड़े आराम से फैलाता है जहां अफवाह तंत्र भी काफी मजबूत है। कुछ महीनों पहले जब कोरोना की त्रासदी अभी ठीक से मन में घर भी नहीं की थी कि बचाव के उपाय बाज़ार और व्हाट्सएप्प पर पाँव पसारने लगे थे। और बचाव के उपाय में जो सबसे तेज़ आगे-आगे दौड़ रहा था वह था मास्क, वह भी एन-95 मास्क। जिसे देखो वह इस मास्क को येन-केन प्रकारेण खरीदने की होड़ में था। हालांकि एक्सपर्ट बार-बार सलाह दे रहे थे कि इस प्रकार के मास्क की जरूरत आम आदमी को नहीं है। प्रधानमंत्री जी ने स्वयं गमछा से मुँह नाक ढ़कने की न सिर्फ सलाह दी बल्कि स्वयं भी गमछा का उपयोग करते ही दिखे। परन्तु शायद हम सबके मन में यह घर कर चुका है कि उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए जो फैंटसाइज करे या महंगी-स्टाइलिश हो।
शायद इसी वजह से सरकार के बार-बार अपील और डॉक्टरों के सलाह के बावजूद हम लोग इसके खरीद और उपयोग को नहीं रोक पाए। धीरे-धीरे जब इस महामारी का विस्तार अनियंत्रित रूप में होने लगा फिर तो एन-95 को ही सबसे बड़ा रक्षक समझ लिया गया। इस मास्क की कीमतें आसमान छूने लगी। बस किसी भी दाम पर लोग इसे खरीदना चाहते थे।
अब जब सरकार ने वायरस से बचाव में इस मास्क को विफल मान रही है तब शायद हम बाकी मास्कों या उपायों की तरफ निगाह दौड़ाये। स्वास्थ्य मंत्रालय ने घर में सूती कपड़े से बने मास्क के उपयोग पर बल दिया है। इसको हर उपयोग के बाद गरम पानी में नमक डालकर धोने की सलाह भी दी गई है।
बेहतरी इसी में है कि हम सरकार के सुझाये नियमों का पालन करें और सर्जिकल मास्कों के उपयोग से पूरी तरह बचे। इस तरह के मास्क स्वास्थ्य मंत्रालय की साइट्स पर भी उपलब्ध हैं।
हमें इस बात से सबक लेने की जरूरत है कि हर बार महंगी चीज ही सही नहीं होती। अगर कोई विषय का जानकार विषय सम्बंधित राय दे तो उसे मानने में ही भलाई है। ऐसे गंभीर मुद्दों पर व्हाट्सएप्प पर आए संदेशों पर भी भरोसा करने से बचना चाहिए। इस मास्क को एक कवच के रूप में लोगों के मन में बैठाने में सोशल मीडिया का भी हाथ था। सरकारें बार-बार चेतावनी देती रही है कि ऐसे संदेशों की सच्चाई संदेह के कटघरे में रहती है। परन्तु आम जनता मानती नहीं।
हमें कोरोना संकट में किसी भी भेड़-चाल से बचना चाहिए। कहीं ऐसा न हो ज़रा सी लापरवाही या अति आत्म-विश्वास हमारा अहित न कर दे। राज्य या केंद्र सरकारों की दृष्टि विहंगम है। इस कोरोना से बचाव या उपाय पर उनके पास हमसे ज्यादा रिपोर्ट्स और सूचनाएं हैं। अतः समय की यही मांग है कि हम साधारण सूती मास्कों का उपयोग करें। किसी भी साबुन या लिकविड सोप से हाथ बार-बार धोये। यहाँ भी किसी पर्टिकुलर ब्रांड या सिर्फ सेनेटाइजर के पीछे न भागे। सही कदम सरकारें उठा ही रही हैं। हमें भी उनका साथ देकर स्वयं को सुरक्षित रखना है।
यह माहमारी आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाएगी। बझ हमारा ध्यान इस बात पर होना चाहिये कि इसके मारक प्रभावों से हम यथा सम्भव बचे रहे। इसके अन्य दुष्प्रभावों पर भी काबू रहे। कम से कम अफवाहों या बाज़ार के प्रभाव में आकर हम कोई भी गलत प्रैक्टिस न अपनाये।