कोरोना काल ने पूरी दुनिया के साथ-साथ हमारे देश और समाज के लिए जो संकट पैदा किए हैं, उनमें अर्थव्यवस्था के बैठ जाने से नौकरी छूट जाने और बेरोजगारी के भयानक स्तर पर पहुंच जाने जैसी समस्याएं काफी प्रत्यक्ष हैं। कुछ दिक्कतें ऐसी हैं वक्त बीतने के साथ जिनका पता चलेगा। लेकिन कुछ परेशानियों का हाल तो ऐसा है कि वे लोगों को अंदर ही अंदर खाए जा रही हैं, पर इस बारे में उनसे किसी से कुछ कहते-सुनते नहीं बनता है। कहते-कहते चुप रह जाने का यह संकोच अवसाद जैसी मानसिक दिक्कतों का कैसा विस्फोट कर सकता है, इसका एक अंदाजा सुशांत सिंह राजपूत जैसी हस्तियों की आत्महत्याओं से लग ही चुका है। अगर इन खामोशियों को सुनने, पढ़ने और समझने में और देर की गई तो मुमकिन है कि उनसे हमारा समाज लंबे वक्त तक उबर ना सके।
यह मानते हुए कोरोना के कारण पैदा हुए हालात में बहुत से लोग नौकरी या कैरियर डगमगाने की दशाओं में घोर तनाव और अवसाद का अहसास कर रहे होंगे, ऐसे लोगों को सांत्वना देने की एक पहले कुछ समय पहले बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने की। उसने मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे लोगों की काउंसिलिंग के मकसद से एक हेल्पलाइन- ‘एमपावर’ शुरू की। अप्रैल, 2020 में शुरू किए जाने के एक महीने में इस हेल्पलाइन पर कुछ 45 हजार दस्तकें हुईं (कॉल्स आईँ)। नौकरी जाने से लेकर नशे की लत लग जाने पर मदद मांगने वाली ज्यादातर फोन कॉल्स को देखें तो यह एक सामान्य बात थी। लेकिन इन्हीं में एक असामान्य घटना के तथ्य भी छिपे हुए थे। पता चला कि इसी एक महीने में हेल्पलाइन पर फोन करने वाले 9 हजार लोगों ने कॉल करने के बाद बिना कुछ कहे फोन काट दिया।
यह मानते हुए कोरोना के कारण पैदा हुए हालात में बहुत से लोग नौकरी या कैरियर डगमगाने की दशाओं में घोर तनाव और अवसाद का अहसास कर रहे होंगे, ऐसे लोगों को सांत्वना देने की एक पहले कुछ समय पहले बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने की। उसने मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे लोगों की काउंसिलिंग के मकसद से एक हेल्पलाइन- ‘एमपावर’ शुरू की। अप्रैल, 2020 में शुरू किए जाने के एक महीने में इस हेल्पलाइन पर कुछ 45 हजार दस्तकें हुईं (कॉल्स आईँ)। नौकरी जाने से लेकर नशे की लत लग जाने पर मदद मांगने वाली ज्यादातर फोन कॉल्स को देखें तो यह एक सामान्य बात थी। लेकिन इन्हीं में एक असामान्य घटना के तथ्य भी छिपे हुए थे। पता चला कि इसी एक महीने में हेल्पलाइन पर फोन करने वाले 9 हजार लोगों ने कॉल करने के बाद बिना कुछ कहे फोन काट दिया।
इन हजारों लोगों को आखिर किसका डर था। अगर वे भयभीत थे तो फोन नंबर मिलाने और दूसरी तरफ उसके उठने का इंतजार क्यों। बात साफ है कि ये सारे लोग अपने भीतर चल रहे किसी द्वंद्व में बुरी तरह फंसे हुए थे और चाह रहे थे कि कोई उनके मन की थाह ले और उन्हें उनकी परेशानी से बचा ले। मदद की की मांग के लिए हाथ बढ़ाते-बढ़ाते उसे वापस खींच लेने का उनका यह द्वंद्व काफी कुछ कह रहा है। अगर वक्त रहते खामोश रह जाने वाली पुकारों को सुन लिया जाए तो बहुत मुमकिन है कि डिप्रेशन और इस कारण की जाने वाली आत्महत्याओं का सिलसिला थोड़ा थम जाए।
बृहन्मुंबई महानगरपालिका की हेल्पलाइन जैसा वाकया दो साल पहले बच्चों के उत्पीड़न संबंधी शिकायतों के लिए चालू की गई चाइल्ड हेल्पलाइन- 1098 में मिला था। वर्ष 2018 में यह खुलासा होने पर देश में काफी हंगामा मचा था कि बीते तीन सालों में इस हेल्पलाइन पर मंदद की पुकार के रूप में की गई करोड़ों कॉल्स को सिर्फ इसलिए अनसुना कर दिया गया क्योंकि फोन उठाने पर दूसरी तरफ से हैलो का कोई जवाब तत्काल नहीं मिला।
कॉल आने के कुछ सेंकेंड में ही अगर पीड़ित ने अपनी व्यथा नहीं बताई तो फोन रख दिया गया। चाइल्ड हेल्पलाइन पर उन तीन सालों में भारतीय पुलिस को 1 करोड़ 36 लाख ‘खामोश टेलीफोन कॉल्स’ मिलीं। इन्हें खामोश कॉल कहने का आशय है कि इन पर थाने में घंटी बजी, लेकिन फोन उठाने पर दूसरी तरफ से पंखा चलने या कपड़े सरसराने की आवाजें आती रहीं। फोन के दूसरी तरफ मदद की पुकार करते हुए कोई था जो उधर से कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। वह शायद भयानक डिप्रेशन में था या थी, या उस पर किसी का दबाव था, या फिर उसे फोन करते किसी ने देख लिया था। हालांकि कई मामले में कुछ शरारती लोग पुलिस को तंग करने के लिए भी ऐसे फोन करते हैं, लेकिन ऐसे मामलों के आंकड़े पहले ही हटाए जा चुके थे। इस तरह ऐसी खामोश कॉल्स कुल 3 करोड़ 40 लाख कॉल्स की लगभग एक तिहाई पाई गईं। इन फोन कॉल्स का खुलासा हरलीन वालिया चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन ने किया था जिसके मुताबिक अप्रैल 2015 से मार्च 2018 के बीच चाइल्ड हेल्पलाइऩ नंबर 1098 पर पूरे देश में 3.4 करोड़ फोन कॉल्स मिलीं थीं। ‘एमपावर’ और चाइल्ड हेल्पलाइन पर हुई ये घटनाएं सामान्य नहीं हैं। बल्कि ये ऐसे हादसे हैं जिनकी अनसुनी कई बड़े सामाजिक अवसादों को जन्म देते हैं।
यहां एक अहम सवाल यह है कि इस किस्म की किसी हेल्पलाइन का उद्देश्य आखिर क्या होता है। क्या कोई हेल्पलाइन मदद की किसी अपील पर तभी ध्यान देगी, जब उसे पूरा मामला तफसील से बताया जाएगा। क्या संकेत समझकर वह अपनी ओर से कोई पहल नहीं कर सकती। ‘एमपावर’ और हालिया अतीत के चाइल्ड हेल्पलाइन के प्रकरणों से यह समझा जा सकता है कि हेल्पलाइन चलाने वालों को किस किस्म की ट्रेनिंग की जरूरत है। उन पर काम करने वाले कर्मचारियों को संवेदनशील होने और यह समझने की जरूरत है कि हेल्पलाइन पर आई कोई खामोश कॉल भी मदद की कारुणिक पुकार होती है। जहां तक पुलिस विभाग से जुड़ी हेल्पलाइनों का मामला है तो पुलिस कंट्रोल रूम को इसके निर्देश होते हैं कि ऐसी कॉल्स रिसीव करने वाले पुलिसकर्मी दूसरी तरफ मौजूद व्यक्ति को खुलकर अपनी बात कहने का हौसला दें, जो बच्चा या वयस्क कोई भी हो सकता है। बच्चे कई बार अजीब स्थितियों से घिरे होते हैं, वे अनाथ हो सकते हैं या जीवन निर्वाह के लिए किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर हो सकते हैं जो हो सकता है कि इसके लिए उनका उत्पीड़न करता हो। बच्चों में भी खासकर लड़कियों की यातना की तो कोई सीमा ही नहीं है।
इन सारे हालात में कोई भी बच्चा या उसकी पीड़ा से द्रवित होकर कोई वयस्क जोखिम लेते हुए ही पुलिस से संपर्क साधता है। पर ऐन वक्त पर अगर वह कॉल करने के बावजूद अपना दुख कह नहीं पाता है तो इसका अर्थ यही है कि उसकी पीड़ा समझने का कोई प्रयास नहीं किया गया। क्या यह बात हेल्पलाइन पर मौजूद लोगों को बताने की जरूरत है कि किसी भी उत्पीड़न के खिलाफ पहला चीत्कार अक्सर मौन की भाषा में फूटता है। खामोश कॉल्स के रूप में हो सकता है कि कोई बच्चा खुद को उत्पीड़न और अत्याचार से बचाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन उसे अनसुना करके क्या एक और अपराध नहीं किया जाता है। निस्संदेह ये सारी आशंकाएं फाउंडेशन के अपने शोध और समाज की अपनी समझ पर आधारित हैं, लेकिन आज की दुनिया में हम बच्चों और महिलाओं के साथ जैसे घृणित हादसे होते देख रहे हैं उनके मद्देनजर इन आशंकाओं को खारिज करना आसान नहीं है। हेल्पलाइन पर आने वाली मदद की गुहारों की अनदेखी का किस्सा इतना बड़ा है कि कोई न कोई पीड़ित हर रोज यह बताते मिल जाएगा कि उसने वक्त रहते पुलिस से मदद मांगने का जतन किया लेकिन या तो उसकी गुहार अनसुनी कर दी गई या फिर वक्त पर मदद नहीं पहुंचाई गई। पुलिस के सौ नंबर के अलावा महिला हेल्पलाइनों के बारे में भी कई महिलाओं की शिकायत रही है कि इस पर दर्ज कराई गई शिकायत पर जल्द कार्रवाई नहीं होती, हालांकि सरकारें इसका दावा जरूर करती है।
मदद के कई रूप हैं, लेकिन इनकी शुरुआत अक्सर इस संबंध में लगाई गई पीड़ित की गुहार या पुकार से होती है। इस पुकार का एक आधुनिक रूप टेलीफोन की हेल्पलाइन या सेवाओं के टोल-फ्री नंबर हैं। अरसे से देश की जनता पुलिस, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस बुलाने के लिए 100, 101 और 102 – इन हेल्पलाइन नंबरों से परिचित रही है। हाल के वर्षों में मदद और सेवा उपलब्ध कराने के दर्जनों नंबर वजूद में आए हैं, लेकिन पिछले साल इनका एक साझा नंबर 112 भी उपलब्ध करा दिया गया है। वैसे तो हमारा वास्ता ज्यादातर ऐसे नंबरों से पड़ता है जो उपभोक्ता शिकायतों के लिए बैंकिंग, रेलवे से लेकर तमाम तरह के उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की ओर से कस्टमर केयर वाले टोल-फ्री नंबर हैं। लेकिन इन्हीं के बीच कुछ हेल्पलाइनें और उनके ऐसे नंबर होते हैं जो मुसीबत में फंसे लोगों की मदद के लिए सरकार या स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से कायम किए जाते हैं। ऐसे ज्यादातर नंबरों और हेल्पलाइनों की भूमिका संकटमोचक की होती है। खास तौर से महिलाओं और बच्चों को शोषण से बचाने वाले, आत्महत्या का विचार आने पर कोई राह सुझाने वाले और इसी तरह की कोई सामाजिक मदद पहुंचाने वाले हेल्पलाइन नंबरों की उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर इन हेल्पलाइन नंबरों पर काम करने वाली मशीनरी सरकारी चाल से अपनी ड्यूटी निभाने तक ही सिमट जाए तो सच में उन हेल्पलाइन वर्करों को भी एक हेल्पलाइन की जरूरत है जो यह बताए कि पीड़ित की खामोश पुकार को अनसुना करने का एक मतलब उसे जानते-बूझते हुए मौत के कुएं में धकेलना है।