अगर बर्बाद होने वाला खाना इन तक पहुंचता, तो इन्हें बचाया जा सकता था। भारत में अन्न के अनादर को पाप माना जाता है। यहां भी घरों के साथ-साथ शादी और पार्टियों के मौके पर भारी मात्रा में भोजन धड़ल्ले से कूड़ेदान के हवाले किया जाता है। सम्पन्न वर्ग के लिए भोजन की बर्बादी भी गोया फैशन बन गई है। इस हद तक संवेदनहीनता किसी न किसी रूप में हमारे सामाजिक ढांचे को कमजोर कर रही है। स्वस्थ समाज में हर तरह की फिजूलखर्ची पर अंकुश जरूरी है, लेकिन दिखावे की अंधी होड़ से हालात लगातार गंभीर हो रहे हैं। शादी समारोह और पार्टियों में व्यंजनों की गिनती हैसियत का प्रतीक बन गई है।
भूख के मुकाबले व्यंजन ज्यादा होंगे, तो यह हिसाब लगाना मुश्किल नहीं है कि इनमें से कितने पेट में और कितने कूड़ेदान में जाएंगे। देश में हर साल 25.1 करोड़ टन से ज्यादा खाद्यान्न का उत्पादन होता है। फिर भी हर चौथा भारतीय भूखा सोता है। बाकी दुनिया का भी यही हाल है। कुछ साल पहले वल्र्ड फूड ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया का हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है। अगर भोजन की बर्बादी रोकी जाए, तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है।
भारत में भोजन की बर्बादी के मुद्दे पर चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में चिंता जताई थी। भोजन और किराना उत्पादों के दान को बढ़ावा देने के लिए कई देशों में कानून बनाए जा चुके हैं। इस दिशा में फ्रांस ने बड़ी पहल करते हुए अपने तमाम सुपरमार्केट में ऐसे फलों, सब्जियों और खाद्य पदार्थों को नष्ट करने पर रोक लगा दी थी, जो बिक नहीं पाए हों। इससे वहां ऐसे पदार्थों के निशुल्क वितरण का चलन बढ़ा। पाकिस्तान में कानून है कि शादी या दूसरे समारोह में एक से ज्यादा मुख्य व्यंजन नहीं परोसा जा सकता। भारत में भी शादियों में फिजूलखर्ची पर रोक के लिए 2006 से विवाह समारोह अधिनियम लागू है। इसका सख्ती से पालन किया जाए, तो खाने की बर्बादी को काफी हद तक रोका जा सकता है। सबसे बड़ी जरूरत जनता को जागरूक करने की है। सभ्य समाज में अन्न का अनादर हर कीमत पर रोका जाना चाहिए।