scriptचीन की खीज़ को समझने की जरुरत | Need to understand China's anger | Patrika News

चीन की खीज़ को समझने की जरुरत

locationनई दिल्लीPublished: Jun 18, 2020 04:41:00 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

दरअसल चीन हमें मजबूत होता देखना ही नहीं चाहता है। वह हमेशा भारत विरोधी षडयंत्रों में आगे रहता है। स्वार्थी नीतियों को जानते-समझते भी विश्व समुदाय ने इसकी अनदेखी की।

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कोरोना महामारी से उभरा यह विश्व संकट क्या दुनियां में विश्व- महाशक्ति यों के लिए नए शक्ति संतुलन बनाने के दबाव बढ़ा रहा है? उभरते नए विश्व परिदृश्य में क्या एक बहु-ध्रुवीय दुनिया के संकेत मिल रहे है? या दुनियाँ फिर अमेरिकी अम्ब्रेला या चीनी छत्रछाया में जीने को ही अभिशप्त होगी? यह सोचना जितना जल्दबाजी है उतना ही जरुरी भी। क्योंकि विश्व का बड़ा हिस्सा जिस ढ़ंग से महामारी के इस संकट के दौरान उपेक्षित रहा और दुनियां से कटा रहा। वह छदम् वैश्वीकरण की पोल खोलता है। महामारी से उपजी स्थितियाँ किसी युद्ध की विभीषिका से कम नहीं है। कूटनीतिक शंकाएं सही साबित हुई तो यह महामारी महायुद्ध के रुप में दर्ज होगी। दुनियां देर-सबेर इस संकट से तो उभर जायेगी। पर इसके बाद दुनियां में नए शक्ति ध्रुवों के संघर्ष तेज होगें। ऐसे संकेत अभी से मिलने लगे है। दुनियां के बाजार और सरकारें इसे एक अवसर में बदलने की हर संभव कोशिश करेगें।

चीन एक श्रूड किस्म का स्वार्थी मुल्क दुनियां के नक्शे पर मजबूत स्थिति में है। बावजूद सब कुछ जानते-समझते हुए भी विश्व समुदाय ने निरन्तर उसे मजबूत होने दिया। जो शनैःशनै इतना ताकतवर बन गया कि आज सम्पूर्ण विश्व के लिए सरदर्द बन चुका है। भारत के प्रति तो कभी भी उसने एक पड़ोसी वाली सोच रखी ही नहीं। उसकी विस्तारवादी मानसिकता दुनियां के लिए खतरा है। भारत पाकिस्तान से परेशान नहीं है यह तो एक बहाना है। भारत को डिस्टर्ब रखना चीन के जीन में है। हमारी सीमाओं पर जहां भी कुछ भी होता है वह हमेशा वाया पाकिस्तान होता दिखता है। जबकि असल में वह सब चीनी चाल का हिस्सा होता है। चीन भारत का पड़ोसी है और अघोषित रुप से पुश्तैनी दुश्मन है। चीन का ट्रंप के सत्ता संभालते ही आार्थिक नुकसान शुरु हो गया था। वहीं भारत डोनाल्ड ट्रंप को बार-बार भारत यात्रा पर आमत्रित कर जो यातनाएं चीन को दे रहा था वे उसके लिए असहनीय बन गई। उधर कोरोना कूटनीति में भारत चीन को बेवजह अपनी बढ़त बनाता लग आ रहा था। वहीं चीन इस कूटनीतिक परिदृश्य पर तमाम मेहनत के बावजूद चूक गया था। इन सारे मिले-जुले तनावों ने चीन की खीज़ को इतना बढ़ा दिया कि उसने भारतीय सीमा पर अपना संयम खो दिया। परिणाम निरीह भारतीय बहादुर सैनिकों की निर्मम हत्या कर दी। भारत का अमेरिका को खुलेआम-सरेआाम गले लगाना चीन को बरदाश्त नहीं हुआ। भारत का अमेरिका के समर्थन में जी-7 देशों के संगठन में शामिल होना ही उसको नागवार गुजरा। हालाकि रुस अमेरिका के इस कुटनीतिक अभियान का शिकार होने से बच गया और उसने शामिल होने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। भारत का इस अमेरिकी समर्थन से कद तो बढ़ा पर पड़ौस में तनाव भी बढ़ा। साथ ही चीन भारत के साथ यह अभद्रता कर दुनियां के अन्य देशों को संदेश देना चाहता है कि इस समर्थन में जो जायेगा उसे चीनी कोप-भाजन का शिकार होना पड़ सकता है। साथ ही दक्षिण एशिया में हमारे पहले से ही छिटके पड़ोसियों को वह बता देना चाहता है कि चीन कुछ भी कर सकता है। अमेरिका द्वारा जी-7 का विस्तार चीन अपने लिए चुनौती मान रहा है। चीनी मीडिया ने इस मसले पर भारत को सत्ता का भूखा देश कहा है। दरअसल चीन हमें मजबूत होता देखना ही नहीं चाहता है। वह हमेशा भारत विरोधी षडयंत्रों में आगे रहता है।

चीनी मीड़िया में यह खबरे भी खूब सुर्खियां पा रही है कि भारत में ऐसे संगठन सक्रिय हैं जो चीनी माल के लिए बहिष्कार के अभियान छेड़े हुए है और भारतीय सरकार इस दिशा में कार्यवाही के लिए अक्षम है। एशिया में चीन की बढ़ती ताकत को देख भारत ऐसा दुष्प्रचार कर रहा है। भारत चीन से हमेशा मित्रवत व्यवहार करता रहा फिर भी चीन उसे हमें दुश्मन मानता है और हमारे प्रति घृणा रखता है। उसकी यह खीझ अक्सर भारत-चीन सीमाओं पर दिखती भी रहती है। परिणामतः बार-बार दोनों राष्टृं के बीच तनाव उपजते रहते है। चीन का बार-बार यह धमकाने वाला अंदाज कि भारत अमेरिका-चीन के विवाद से दूर रहे वरना परिणाम अच्छे नहीं होगें। कोरोना महामारी से उभरे विश्व परिदृश्य में जिस तरह के तनाव उभरे और उनके चलते कूटनीति अभियान छिड़े, उससे विश्व नए शीत युद्ध में प्रवेश करता दिख रहा है। कोरोना कुटनीति में चीन भी अमेरिका को जवाब देने की भरपूर कोशिशें जारी रखे हुए है। पूरी दुनियां में महामारी से उभरे कोरोना संकट के समय में मेडिकल सहायता के बहाने चीन ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की हर संभव कोशिश की। चीन ने अपने यहां संक्रमण को रोकने के गैर-वाजिब तौर-तरीके तक अपनाए। टैक्नोलॉजी के नाजायज प्रयोग तक किए। चीनियों के साथ क्रूरतम् ढंग के बर्ताव किए।
संक्रमण पर नियंत्रण पाकर फिर निकला दुनिया में अपनी धाक जमाने। चीन ने चिकित्सा सुविधाओं से लैस होकर भारत, अमेरिका जैसे बड़े राष्टों से लेकर यूरोप के तमाम छोटे-बड़े मुल्कों तक में कोरोना टेस्टिंग किट और जरुरी उपकरणों की सप्लाई जोर-शोर से की। फिर भी कूटनीतिक बढ़त बनाने में असफल रहा।

हमें अपने स्वतंत्र वजूद के साथ वैश्विक परिदृश्य पर अपने गुटनिरपेक्ष कूटनीति दर्शन को सुदृढ़ बनाने की जरुरत है। जो हमें पहचान भी दिलायेगा और वैश्विक संतुलन में हमारे महान अवदान का आधार भी बनेगा। यही एक सम्मानीय रास्ता है जो हमें चीन का चाटुकार बनने से भी बचा सकता है और अमेरिका का बगल-बच्चा बनने से भी छुटकारा दिला सकता है। कोरोन संकट के समय में तो यह और भी स्पष्ट रुप से उभर कर सामने आया है कि दुनियां न चीनी मॉडल से एक सभ्य दुनियां बन सकती है और न ही अमेरिकी मॉडल से। आज विश्व किसी सकारात्मक विकल्प की खोज में नयी वैश्विक साझेदारी का तलबगार है।
भारत को समय की इस मांग को पहचानकर विश्व मानवता के कल्याणार्थ अपनी नयी भूमिका में अपने जैसे राष्टृं का वैश्विक संगठन मजबूत करने की दिशा में दुनियां को बहुध्रुवीय बनाएं रखने का उद्यम निरन्तर करते रहना होगा। यही भारत जैसे जिम्मेदार देश की बदलती मौजूदा विश्व व्यवस्था में महती भूमिका बनती है और इसे से हमारी पहचान भी बनेगी। भारत दुनियां का विशालतम् राष्टृ है जो लोकतांत्रिक परम्परा का पुराना वाहक है। हमें न चीन की चाकरी करना शोभा देता है और न हीं अमेरिकी मूल्य हमारी विरासत का विस्तार कर सकते है।
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