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यह दूसरी बात है कि अंग्रेजों ने कूटनीतिक तौर पर अपनी वापसी में भी सफलता अर्जित की। ईस्ट इंडिया कंपनी के समय उन्होंने जिस तरह समाज को हिंदू और मुसलमान में बांट कर बंगाल से दिल्ली तक भारत पर कब्जा किया था, उन्हीं तौर तरीकों से भारत को विभाजित किया। साथ ही विभाजन से उपजी समस्याओं के मुहाने पर भारत को छोड़ दिया। इस आलोक में नेताजी के योगदान का मूल्यांकन अभी शेष है। सवाल यह भी है कि 1947 के बाद के भारत में नेताजी की भूमिका बनी रही होती, तो आज का भारत कैसा होता।
आजाद भारत का जो सपना सुभाष बाबू ने देखा था, उस पर तो थोड़ी भी चर्चा नहीं हुई। दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे भारतवासियों का आह्वान करते हुए नेताजी ने कहा था, ‘मातृभूमि की मुक्ति हमारा कर्तव्य है। इसलिए हम अपनी स्वतंत्रता के मूल्य का भुगतान अपने रक्त से करेंगे। अपने बलिदान और परिश्रम से जो हम स्वतंत्रता जीतेंगे, उस स्वतंत्रता को हम अपनी शक्ति के साथ संरक्षित करने में सक्षम भी होंगे।’