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आजादी की रक्षा के लिए शक्ति का महत्त्व समझाया था नेताजी ने

locationनई दिल्लीPublished: Jan 22, 2022 01:26:23 pm

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Patrika Desk

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने एक बातचीत में कहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की वजह से ब्रिटिश शासन सैनिकों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुका था। सैनिकों की ब्रिटिश शासन के प्रति वफादारी लगभग समाप्त हो गई थी। यही कारण था कि अंग्रेज जल्दी से जल्दी भारत छोड़ देना चाहते थे। एटली का यह कथन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की भूमिका और उनके प्रभाव को दर्शाने के लिए पर्याप्त है।

Netaji had explained the importance of power to protect freedom

Netaji had explained the importance of power to protect freedom

प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल
कुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही है। महात्मा गांधी के शब्दों में याद करें, तो एक अनन्य देशभक्त के रूप में नेताजी हर भारतवासी के मन मानस में जीवित हैं। इस अवसर पर एक और बात को याद करना चाहूंगा। 1956 में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली जब कोलकाता आए थे, तो पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जस्टिस पी.बी. चक्रवर्ती ने उनसे लंबी बातचीत की थी। उस लंबी बातचीत में एक सवाल यह भी था कि वह कौन सा बड़ा कारण था कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को सफलतापूर्वक दबा देने के बाद भी अंग्रेजों ने भारत को आजादी देना स्वीकार कर लिया। इसके जवाब में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की वजह से ब्रिटिश शासन सैनिकों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो चुका था। सैनिकों की ब्रिटिश शासन के प्रति वफादारी लगभग समाप्त हो गई थी। यही कारण था कि अंग्रेज जल्दी से जल्दी भारत छोड़ देना चाहते थे।
यह कार्य एक-डेढ़ वर्ष में सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया। एटली का यह कथन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की भूमिका और उनके प्रभाव को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। जापान, सिंगापुर, रंगून और अंडमान में आजाद हिंद सरकार की स्थापना और कब्जे के बाद यह स्वाभाविक था कि ब्रिटिश हुकूमत को सुरक्षित और सम्मानजनक रूप से भारत से बाहर निकलने का रास्ता खोजना पड़ा।

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यह दूसरी बात है कि अंग्रेजों ने कूटनीतिक तौर पर अपनी वापसी में भी सफलता अर्जित की। ईस्ट इंडिया कंपनी के समय उन्होंने जिस तरह समाज को हिंदू और मुसलमान में बांट कर बंगाल से दिल्ली तक भारत पर कब्जा किया था, उन्हीं तौर तरीकों से भारत को विभाजित किया। साथ ही विभाजन से उपजी समस्याओं के मुहाने पर भारत को छोड़ दिया। इस आलोक में नेताजी के योगदान का मूल्यांकन अभी शेष है। सवाल यह भी है कि 1947 के बाद के भारत में नेताजी की भूमिका बनी रही होती, तो आज का भारत कैसा होता।
27 अप्रेल, 1947 को आजाद हिंद फौज के सैनिकों को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था- ‘सुभाष बाबू तो मेरे पुत्र के समान थे। उनके और मेरे विचारों में भले ही अंतर रहा हो, लेकिन उनकी कार्यशक्ति और देशप्रेम के लिए मेरा सिर उनके सामने झुकता है।’ इसमें कोई शक नहीं कि सुभाष बाबू के योगदान और आजाद हिंद फौज की भूमिका पर इतिहासकारों के द्वारा जो काम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। सुभाष बाबू से जुड़े हुए दस्तोवेज अभिलेखागारों और संग्रहालयों में सीलबंद पड़े रहे।
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आजाद भारत का जो सपना सुभाष बाबू ने देखा था, उस पर तो थोड़ी भी चर्चा नहीं हुई। दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे भारतवासियों का आह्वान करते हुए नेताजी ने कहा था, ‘मातृभूमि की मुक्ति हमारा कर्तव्य है। इसलिए हम अपनी स्वतंत्रता के मूल्य का भुगतान अपने रक्त से करेंगे। अपने बलिदान और परिश्रम से जो हम स्वतंत्रता जीतेंगे, उस स्वतंत्रता को हम अपनी शक्ति के साथ संरक्षित करने में सक्षम भी होंगे।’

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