खैर! कोरोना ने दो बड़े वरदान भी दे डाले। परिवारों का पुनर्गठन, सौहार्द का दरिया पैदा कर दिया। और समय से पहले हमको विश्व के विकासशील देशों की श्रेणी से निकालकर विकसित देशों में शामिल कर दिया। किसने सोचा था, दो-तीन माह पूर्व-कि हमारी दैनिक चर्या में आमूल-चूल परिवर्तन आ जाएगा। पहली बार देश में अनावश्यक वस्तुओं की खरीद पर अंकुश लगा। खाने-पीने-सोने के प्राकृतिक नियम लागू हो गए। हर क्षेत्र में मर्यादा बढ़ी दिखाई पड़ती है। घर के कार्यों में छोटे-बड़े सब की भागीदारी बढ़ी है।
नई तकनीक तो मानव जीवन पर हावी हो गई। टीवी, मोबाइल फोन, जूम जैसी तकनीक के सहारे गोष्ठियां आदि तो आम बात हो गई। दो महीनों में, बिना किसी प्रशिक्षण के, सारे कार्यालय घरों से संचालित हो गए। कहीं कोई गुणवत्ता में अथवा समय सीमा को लेकर दिक्कत नहीं आई। हम अचानक आधुनिक हो गए।
वर्क-फ्रॉम-होम के कई अन्य लाभ भी दिखाई दिए। कार्य की स्वतंत्रता सबसे बड़ा सुख। घर पर रहने का सुख, गाड़ी या अन्य वाहन का कोई खर्च नहीं, जिसके कारण पर्यावरण की शुद्धि में योगदान मिला। जीवन का समग्र विकास शुरू हुआ। दूसरी ओर कार्यालयों में सन्नाटा। हजारों-हजार की संख्या में भवन उपलब्ध हो गए। आज एक अवसर है जब राज्यों एवं केंद्र सरकार को यह निर्णय कर लेना चाहिए कि कोरोना रहे, ना रहे, तीस प्रतिशत कर्मचारी तो घर से ही कार्य करेंगे। निजी क्षेत्र में भी।
आज देश में आबादी के दबाव के कारण बड़ी जमीनें भी नहीं मिल रही, कॉलेजों और अस्पतालों जैसे कार्यों के लिए। तीस प्रतिशत का नियम लागू होते ही सरकारों के तो बड़े भवन खाली हो जाएंगे। किराए के मकान लेने ही नहीं पड़ेंगे। यातायात में भी बड़ा फर्क पड़ेगा। सरकारों को नई योजनाओं के लिए स्थान उपलब्ध होंगे। बड़े स्कूलों-कॉलेजों में शिक्षा भी तो ऑन-लाइन हो गई है। सरकारों को इनके लिए भी परिसर बनाने की जरूरत नहीं होगी। आज हम 4-जी तकनीक पर हैं। कुछ ही समय में 5-जी आने को है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी देहली पर ही खड़ी है। कार्यालय जाने और नहीं जाने के अर्थ ही बदल जाएंगे। आज हम नहीं भी करें, तो बाद में मजबूर होकर करना तो पड़ेगा। चूंकि आज सभी कार्य कर ही रहे हैं, बिना किसी प्रशिक्षण खर्च के। समय को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय भी अभी कर डालना चाहिए। जो कर देगा, वही फायदे में रहेगा।