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भारत-यूएस संबंधों का नया पड़ाव

locationजयपुरPublished: Mar 14, 2019 09:04:51 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

पाक और चीन को लेकर भारत के नजरिए और भारत के हित में नतीजों को ढालने में अमरीका की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए गोखले-पोम्पिओ वार्ता ‘स्वाभाविक सहयोगियों’ के बीच बढ़ती घनिष्ठता का प्रतीक रही है।

India-US relations

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मनिष सि. दाभाडे, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार

हाल ही भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने अमरीका में वहां के विदेश सचिव माइक पोम्पिओ के साथ महत्वपूर्ण मुलाकात की। गोखले ने अमरीका के तीन दिवसीय दौरे पर ‘विदेश कार्यालय परामर्श एवं सामरिक सुरक्षा संवाद’ में भारतीय राजदूत हर्षवर्धन शृंगला के साथ भारतीय प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व किया। यह मुलाकात दो वजहों से काफी अहम मानी जा रही है। एक द्ग इसका पुलवामा हमले और बालाकोट स्ट्राइक के कुछ दिनों बाद ही होना, और दूसरी द्ग मौजूदा हालात, मुद्दों और दिशा के बीच अमरीका-भारत के भावी द्विपक्षीय संबंध।

पाक स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की ओर से भारत में किए गए पुलवामा आतंकी हमले और जवाब में भारत की बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पहली बार अमरीका ने पाकिस्तान और उसके द्वारा पोषित आतंकवाद के खिलाफ भारतीय नीति का सार्वजनिक तौर पर बड़ा स्पष्ट, व्यापक और पुरजोर समर्थन किया। पुलवामा हमले पर त्वरित प्रतिक्रिया स्वरूप सार्वजनिक तौर पर इसकी निंदा करने के बाद अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जॉन बोल्टन ने अपने भारतीय समकक्ष अजित डोभाल के साथ फोन पर बातचीत के दौरान आत्मरक्षा के लिए की गई भारतीय कार्रवाई को उचित ठहराया। बोल्टन ने हाल ही एक ट्वीट के जरिए यह जानकारी भी दी कि उन्होंने पाकिस्तानी विदेश मंत्री के साथ फोन पर बात कर पाकिस्तान में सक्रिय जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकी गुटों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था।

कुछ खबरों की मानें तो भारतीय वायुसेना के पायलट अभिनंदन वर्धमान की रिहाई में पाकिस्तान पर अमरीकी दबाव की बड़ी भूमिका रही। गोखले ने इस अवसर पर भारत का समर्थन करने के लिए अमरीका का आभार व्यक्त किया और इस मुद्दे पर ताजा घटनाक्रम से अवगत करवाया। अमरीका में भारतीय दूतावास ने इस ओर ध्यान दिलाया कि भारत व अमरीका के बीच समझौते के तहत स्पष्ट है कि ‘पाकिस्तान को अपने यहां पनप रहा आतंकी ढांचा ढहाना होगा और आतंकी गुटों को पनाह देना बंद करना होगा। वे इस बात पर भी सहमत हैं कि किसी भी सूरत में आतंक का साथ देने वाले ही आतंकी घटनाओं के लिए जिम्मेदार होंगे।’

इस अवसर पर भारत-अमरीका ने संयुक्त रूप से उस प्रस्ताव का कूटनीतिक समर्थन करने का निर्णय भी किया, जिसके तहत अमरीका, यूके और फ्रांस, जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के माध्यम से विश्व के प्रतिबंधित आतंकवादियों की सूची में लाना चाहते हैं। तीन बार से चीन इस प्रस्ताव को मंजूरी की राह में अड़चन बना हुआ है।

गोखले ने भारतीय आत्मरक्षात्मक कदम के तौर पर की गई एयर स्ट्राइक के जवाब में भारत के खिलाफ पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई में उन एफ-16 विमानों के इस्तेमाल का मुद्दा भी उठाया, जो उसने अमरीका से हासिल किए थे। अफगानिस्तान को लेकर बदलते परिदृश्य में यह मुद्दा उठाना खास महत्व रखता है, क्योंकि अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी के ट्रंप के एलान के बाद आशंका जताई जा रही थी, जो संभवत: गलत थी, कि अफगान समस्या के हल में पाक के सहयोग की बढ़ती दरकार कहीं अमरीका को भारत के वर्तमान आतंक विरोधी रुख का खुलकर समर्थन करने से न रोक दे।

व्यापक तौर पर देखा जाए तो गोखले-पोम्पिओ वार्ता से यही संदेश मिलता है कि भारत-अमरीका के बीच बहुत ही घनिष्ठ, प्रगाढ़ और सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्थागत सामरिक साझेदारी कायम हो चुकी है। वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास के अनुसार, ‘यह द्विपक्षीय वार्ताएं आमतौर पर होने वाले उच्च स्तरीय संवाद ही हैं, जिनके तहत द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की गई, विदेश नीति और सुरक्षा संबंधी मसलों पर विचार-विमर्श हुआ और साझा हितों के मुद्दों पर आपसी समन्वय पर बातचीत हुई। ये मुद्दे थे द्ग भारत-अमरीका 2+2 वार्ता, अफगानिस्तान और सबसे अहम व चुनौतीपूर्ण हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में व्याप्त ‘चीन समस्या’। घरेलू राजनीति और दोनों देशों के नेतृत्व से इतर गोखले-पोम्पिओ वार्ता में दोनों देशों के विदेश नीति संस्थानों की सुदृढ़ता और परस्पर हित की दिशा में जरूरी योगदान पर भी बल दिया गया।

वार्ता में एक और अहम बिंदु पर फोकस किया गया द्ग द्विपक्षीय व्यापार। गत सप्ताह ट्रंप ने घोषणा की थी कि अमरीका, भारत के साथ विशेष व्यापार समझौता (सामान्य प्राथमिकता तंत्र यानी जीएसपी) रदद् करने जा रहा है, जिसके तहत भारत से अमरीका को होने वाला 5.6 अरब डॉलर का निर्यात शुल्क मुक्त था, क्योंकि भारत ने अमरीका को ऐसा आश्वासन नहीं दिया है कि वह उसे भारतीय बाजारों में निर्बाध और आसान पहुंच बनाने देगा। हालांकि भारत और अमरीकी सरकारों को इस बाबत अधिसूचना के 60 दिन की अवधि और उसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति का सार्वजनिक वक्तव्य जारी होने तक यह फैसला प्रभावी नहीं होगा, फिर भी अवसर का सदुपयोग करते हुए गोखले ने कहा, ‘पिछले तीन सालों में व्यापार घाटे में उल्लेखनीय कमी आई है और भारत वार्ता के जरिए व्यापार मसलों पर सार्थक और परस्पर स्वीकार्य प्रस्ताव पर बातचीत के लिए तैयार है।’ वार्ता में ईरान पर प्रतिबंध के मसले पर भी विचार-विमर्श किया गया। चूंकि नवंबर 2018 से भारत के नाम को ‘सिग्निफिकेंट रिडक्शन एग्जम्पशंस’ सूची में रखा गया है, इसलिए ईरान से तेल आयात में कमी करने का भारत को और समय मिल गया है।

कहा जा सकता है कि पाक और चीन को लेकर भारत के नजरिए और भारत के हित में नतीजों को ढालने में अमरीका की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए गोखले-पोम्पिओ वार्ता ‘स्वाभाविक सहयोगियों’ के बीच बढ़ती घनिष्टता का प्रतीक रही है।

(लेखक, जेएनयू, नई दिल्ली के सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, ऑर्गेनाइजेशन एंड डिसार्ममेंट विभाग में अध्यापन।)

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