जयपुर के पुनर्निर्माण पर विचार करने वाले विशेषज्ञों के ध्यान में कुछ बातें आना जरूरी है। यद्यपि सभी उन बातों को जानते होंगे परन्तु कई बार पुरानी बातें ध्यान से निकल जाती हैं, अत: उनका स्मरण कराना उचित होगा। जयपुर में पुराने शहर के बाहर कोई भी बसावट करने से पूर्व यह ध्यान में रखना जरूरी है कि शहर की पुरानी बसावट का आधार क्या रहा है। जयपुर की पुरानी बसावट का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य उसके स्थान का चुनाव है। जिस स्थान पर पुराना शहर बसा हुआ है। वह आसपास के सभी भूभागों से ऊंचा है और इतना ऊंचा है कि कितना भी पानी बरसने पर शहर में पानी नहीं भर सकता है। पुरानी आबादी की ऊंचाई उसके पानी के निकास में सहायक सिद्ध हुई है और शहर को बसाने वालों ने इस स्थान को चुनते समय इसी बात को खास तौर पर ध्यान में रखा है।…
यह एक अवसर है जबकि जयपुर का कायाकल्प किया जा सकता है। इस काम में हमें जयपुर के जाने माने और पुराने वास्तुकारों का भी सहयोग प्राप्त करना चाहिये।… यह काम देखने में बहुत बड़ा लगता है, परन्तु अव्यावहारिक नहीं है।… इस तरह की वृहद योजना को पूरा करना कठिन नहीं होगा, परन्तु वह संकल्प के बिना कदापि नहीं होगी। सरकार को इस काम में कुछ मुस्तैदी दिखानी होगी और दलगत राजनीति से इस योजना को निष्ठापूर्वक मुक्त रखना होगा।…
आज भी प्रासंगिक हैं सुझाव –
जयपुर में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद जब सरकारी स्तर पर पुनर्निर्माण योजनाएं तैयार होने लगीं, उस वक्त कुलिश जी ने 4 अगस्त 1981 को पत्रिका में संपादकीय पेज पर लिखे उक्त आलेख में जो बिन्दु उठा ए, उन पर हुक्मरानों को आज भी चिंतन करने की जरूरत है। सैटेलाइट कस्बे बनाने और बाढ़ से बचाव की बातें तो खूब हुईं, लेकिन इन्हें अमलीजामा पहनाने की परवाह किसी ने नहीं की।
(लेख के कुछ अंश)