आज भ्रष्टाचार ने रिश्वत को तिलभर का कर दिया। जितना सख्त कानून, उतना ही बड़ा भ्रष्टाचार। नियम भी सारे लूटने के लिए, व्यवहार में बस दादागिरी। मुझे नहीं मालूम हमारे स्व. वायसराय आ जाएं तो अपने शासन की मोहर लगाना स्वीकार करेंगे। आपके सामने इस कोरोना काल के कितने उदाहरण हैं। बैंक ऋणों पर ब्याज माफ करने को तैयार नहीं हैं। आप सरकारी विभागों से भुगतान लेने जाओ-बरसों लग जाते हैं। क्या वे कभी अपने उधार पर ब्याज देते हैं? मांग कर तो देखो। आपसे लेन-देन भी बन्द कर देंगे। और भुगतान के लिए भी न्यायालयों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। बरस लग जाएंगे। मूल का ब्याज ही मूल से कई गुणा हो जाएगा। आपने एडवांस टैक्स भर दिया वो अलग। यह सब इसलिए कि सरकार में बैठा व्यक्ति आपको अपने समकक्ष ही नहीं, पराया मानकर बात करता है। उसके दिल में दर्द ही नहीं है। कभी किसी के कहलवाने का असर हो जाए भले ही। ऊपर वालों के लिए तो कोई व्यक्ति यांत्रिक से आगे होता ही नहीं है।
सरकार के सारे कानून सरकार के पक्ष में बनते हैं। जनता के पक्ष में क्यों नहीं बनते! आज उद्योगों ने बिजली का उपभोग नहीं किया, किन्तु फिक्स चार्ज देना पड़ेगा। आप ट्रांसपोर्ट, स्कूल या किसी भी सेवा को देखें, सरकार अपने अधिकार छोडऩे को तैयार ही नहीं। क्या सरकार जनता की, जनता के लिए नहीं है? रिफण्ड के मामलों को देख लें। जमा कराने में देरी तो एक-एक दिन का ब्याज और रिफण्ड महीनों नहीं मिले तो ब्याज क्यों नहीं? क्योंकि जनता पराई है। इसका धन एकतरफा कानूनों से लूटना है, बस। आज स्थिति यह हो गई कि हर विभाग के निरीक्षक धन लेकर गैर-कानूनी कार्य करने को स्वयं उकसाते हैं। चाहे अतिक्रमण हो या खाद्य सामग्री। दण्ड इतने बड़े हो गए कि जुर्माना भरने से अच्छा है कुछ रोकड़ा देकर निपटा लें। ट्रैफिक में तो कदम-कदम पर देख सकते हैं।
अब एक नया ट्रैण्ड चल पड़ा है। रिश्वत और दलाली कम पडऩे लगी है। हर व्यक्ति की निजी महत्वाकांक्षा महत्वपूर्ण होती जा रही है। अब तक धन को सरकारी खजाने में जाने से रोका जाता था, अब खजाने में जाने के बाद निकलवाया जाने लगा है। रिफण्ड वालों को पूछ कर देख लो। आप दलाली देने को तैयार हैं तो आपके हिसाब में भी रिफण्ड निकालकर लौटा दिया जाएगा। जब हमारे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं कि भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया कि पार पाना मुश्किल है। इसका एक ही कारण है कि कानून जनता के पक्ष को ध्यान में रखकर नहीं बन रहे। आज तो मैं किसी की मदद करना चाहूं तो कैसा भी अनुबन्ध करके ऐसा कर सकता हूं। बिना माल खरीदे भी भुगतान करूं तो मंत्री रोक नहीं पाएगा। जैसे सरकारी बिल बनते हैं-बिजली पानी के। श्रमिकों को रोजगार नहीं। बेरोजगारी इसलिए भी है कि भर्तियां वर्षों से बन्द हैं। संविदा से काम चलाओ। अफसरों की भर्तियां तो बन्द नहीं हैं। उनकी बढ़ती हुई संख्या और कर्मचारियों की घटती संख्या अफसरशाही की मानसिकता का प्रमाण ही तो है।
आज देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। इसका कारण कानूनों की आक्रामकता है। विदेशीकरण है। राजनेताओं को भी मतदाताओं के साथ जीने में भागीदारी दिखानी चाहिए। आज तो कानूनों का निर्माण पूरी तरह अंग्रेजीदां अधिकारियों के हाथ में है। कानून का देशवासी की समझ से कोई लेना देना नहीं है। तब देश समृद्ध भी नहीं होगा और आजादी का अनुभव भी नहीं करेगा।