अपनी विशिष्ट शैली में उन्होंने सटीक तौर पर सुदृढ़ता और प्रशासनिक दक्षता के साथ इस चुनौती को पूरा किया। समय कम था और जवाबदेही बहुत बड़ी थी। लेकिन, इसे अंजाम देने वाली शख्सियत साधारण नहीं। सरदार पटेल इस बात के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे कि वह किसी भी सूरत में अपने राष्ट्र को झुकने नहीं देंगे। उन्होंने और उनकी टीम ने एक-एक करके सभी रियासतों से बातचीत की और उन्हें ‘आजाद भारत’ का अभिन्न हिस्सा बनाना सुनिश्चित किया। उनकी कार्यशैली की बदौलत ही आधुनिक भारत का वर्तमान एकीकृत मानचित्र हम देख पा रहे हैं।
कहा जाता है कि वीपी मेनन ने देश आजाद होने पर सरकारी सेवा से अवकाश लेने की इच्छा व्यक्त की। इस पर सरदार पटेल ने उनसे कहा कि यह समय आराम करने का नहीं है। फिर वीपी मेनन विदेश विभाग के सचिव बनाए गए। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में लिखा कि किस तरह सरदार पटेल ने इस मुहिम में अग्रणी भूमिका निभाई और किस प्रकार पूरी टीम को प्रेरणा दी। उन्होंने लिखा, ‘सरदार पटेल के लिए सबसे पहले भारत की जनता के हित थे, जिस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता था।’
हमने 15 अगस्त, 1947 को नए भारत के उदय का उत्सव मनाया, लेकिन राष्ट्र निर्माण का कार्य अधूरा था। स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में उन्होंने प्रशासनिक ढांचा बनाने का काम शुरू किया जो आज भी जारी है। सरदार पटेल निष्ठा और ईमानदारी के पर्याय रहे। भारत के किसानों की उनमें प्रगाढ़ आस्था थी। वह किसान पुत्र थे, जिन्होंने बारदोली सत्याग्रह के दौरान अगली कतार से नेतृत्व किया। श्रमिक वर्ग उनमें आशा की किरण देखता था। व्यापारियों और उद्योगपतियों ने भी आर्थिक और औद्योगिक विकास को लेकर उनकी दूरदर्शिता पर भरोसा किया।
उनके राजनीतिक मित्र भी उन पर भरोसा करते थे। आचार्य कृपलानी का कहना था कि जब कभी वह किसी दुविधा में होते थे और यदि बापू का मार्गदर्शन नहीं मिल पाता था तो वह सरदार पटेल का रुख करते थे। 1947 में जब राजनीतिक समझौते के बारे में विचार-विमर्श चरम पर था, तब सरोजिनी नायडू ने उन्हें ‘संकल्प शक्ति वाले गतिशील व्यक्ति’ की संज्ञा दी। उनके शब्दों और उनकी कार्यप्रणाली पर सभी को पूरा विश्वास था। जाति, धर्म, आयु से ऊपर उठकर सभी लोग सरदार पटेल का सम्मान करते थे।
इस वर्ष सरदार पटेल की जयंती और अधिक विशेष है। 130 करोड़ भारतीयों के आशीर्वाद से आज ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन किया जा रहा है। नर्मदा के तट पर स्थापित यह स्टेच्यू दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। धरती पुत्र सरदार पटेल हमारा सिर गर्व से ऊंचा करने के साथ हमें दृढ़ता प्रदान करेंगे, हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें प्रेरणा देते रहेंगे।
मैं उन सभी को बधाई देना चाहता हूं, जिन्होंने सरदार पटेल की इस विशाल प्रतिमा को हकीकत में बदलने के लिए दिन-रात काम किया। आज 31 अक्टूबर, 2013 का वह दिन याद आता है, जब हमने इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना की आधारशिला रखी थी। रेकॉर्ड समय में तैयार हुई इस वृहद परियोजना पर हर भारतीय को गर्व होना चाहिए। यह हमारे दिलों की एकता और हमारी मातृभूमि की भौगोलिक एकजुटता का प्रतीक है।
सरदार पटेल ने भारत को छोटे क्षेत्रों अथवा राज्यों में विभाजित होने से बचाया और राष्ट्रीय ढांचे में सबसे कमजोर हिस्सों को जोड़ा। आज हम 130 करोड़ भारतीय उस नए भारत का निर्माण करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं जो मजबूत, समृद्ध और समग्र होगा। प्रत्येक फैसला यह सुनिश्चित करके किया जा रहा है कि भ्रष्टाचार अथवा पक्षपात दरकिनार हो और विकास का लाभ समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक पहुंचे, जैसा कि सरदार पटेल चाहते थे।
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