स्वायत्त पर्वत परिषद का मान: लद्दाख के कश्मीर में उपेक्षित होने के दर्द से उभरे आंदोलनों के कारण 90 के दशक में यहां लद्दाख स्वायत्त पर्वत परिषद का गठन हुआ। बाद में स्वायत्त पर्वत परिषद लेह और करगिल के रूप में सामने आई। जैसे शेष भारत में जिला परिषदों का काम है वैसे ही यहां स्वायत्त परिषद है। यद्यपि यह परिषद अपेक्षाकृत सजग है। 2019 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट में भी दोनों स्वायत्त पर्वत परिषदों का मान रखा गया है। चुनी हुई परिषद के पास पहले के तमाम अधिकारों के साथ नया उत्साह भी जुड़ा है।
लद्दाख के पहले उप-राज्यपाल राधाकृष्ण माथुर का कहना है कि जो चुनौतियां और मुद्दे सामने आ रहे हैं उन्हें सकारात्मक रूप से हल किया जा रहा है। लेह परिषद के चेयरमैन एडवोकेट ताल्सी और करगिल परिषद के चेयरमैन फिरोज अहमद खान एक स्वर में कहते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख विकास के नए मापदंड बनाएगा। ऐसा लगता है कि लद्दाख का देह लेह में है तो दिल करगिल में है।
उपेक्षा का दौर अब खत्म: जम्मू-कश्मीर राज्य के अंतर्गत रहे लद्दाख के लोगों की सबसे बड़ी शिकायत थी विकास में उपेक्षा। स्वायत्त पर्वत परिषद के सबसे युवा अध्यक्ष रह चुके लद्दाख के मौजूदा सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल का कहना है कि सात दशकों तक उपेक्षा का दौर अब खत्म हो चुका है। राज्य का 60 प्रतिशत क्षेत्रफल होने के बावजूद बजट में हिस्सा 10 प्रतिशत से भी कम रहता था। विकास के नाम पर सेना के इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा कुछ भी नहीं हो पाया। स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य प्रबंधों के नाम पर लद्दाख में मामूली काम ही हुए। घाटी के विवादों के बीच लद्दाख की आवाज सदा से नक्कारखाने में तूती की तरह ही रही। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 से लद्दाख देश का नवां केंद्र शासित प्रदेश बन गया। अब अलग पहचान से क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें परवान पर हैं। अलग मेडिकल कॉलेज, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, खेल की सुविधाओं का आगाज हुआ है। इसके साथ वैश्विक बाजार में यहां के हस्तनिर्मित उत्पादों की पहुंच का रास्ता खुल गया है। शांतिपूर्ण लद्दाख का भारत की पर्यटन राजधानी होना तय है। यूरोप के तमाम पर्यटन स्थलों से भी सुंदर नजारे लद्दाख में हैं। यह तस्वीर सबके सामने आना बाकी है।
भारत के संकल्प का साक्षी लद्दाख : 1,66,698 वर्ग किलोमीटर में फैले लद्दाख के 59,146 वर्ग किमी क्षेत्र पर हमारा नियंत्रण है जबकि शेष पर चीन, पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। भारत के उस संकल्प का प्रतीक भी लद्दाख है, जिसमें पाकिस्तान और चीन की हथियाई भूमि को वापस लेना शामिल है। भारत पर हुए पहले हमले का सामना लद्दाख ने किया था। यहां के लोगों ने भारत की सेना को सहयोग किया और कबायलियों को खदेड़ा गया। करगिल युद्ध में भी पाकिस्तान की सेना को मुंह की खानी पड़ी। आज भी लद्दाख के लोगों को चीन-पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाली जमीन वापस लेने का विश्वास है। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध मोर्चों पर स्थानीय नागरिकों का यह शौर्य संकल्प महत्त्वपूर्ण है।
लोकसभा अध्यक्ष की पहल : लद्दाख में लोकतंत्र की जड़ों को पल्लवित करने का एक अनूठा प्रयास अभी देखा गया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने चार दिन तक लद्दाख में रहकर पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर ग्रामीणों से संवाद किया। संवाद का सार यह रहा कि लद्दाख बदल रहा है और भारत के विकास में बढ़कर योगदान देने को संकल्पित है।
करिश्माई नेता थे बकुला : कुशुक बकुला लद्दाख के करिश्माई नेता थे। भारत पर पाकिस्तानी कबायलियों के हमले के समय उनके नेतृत्व में आमजन उठ खड़ा हुआ था। दो-दो बार सांसद और विधायक बने पद्म पुरस्कार प्राप्त बकुला मंगोलिया में भारत के राजदूत भी रहे। बकुला लद्दाख के हितों के लिए सदा मुखर रहे।