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क्रियान्विति तय हो

एनजीटी और राज्य सरकारों के मध्य गतिरोध का खमियाजा पूरा एनसीआर भुगत रहा है। एनजीटी अपने निर्देशों की पालना में विफल मालूम पड़ती है।

Dec 10, 2017 / 03:54 pm

सुनील शर्मा

pollution in delhi

भारत में एक बात तो आम है। केन्द्र हो या राज्य सरकारें, ट्रिब्यूनल हो या आयोग। सभी फैसले और दिशानिर्देश तो जारी करते हैं लेकिन उनके क्रियान्वयन की ओर किसी का ध्यान नहीं रहता। ताजे दो उदाहरण देश के सामने हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बुधवार को दिल्ली, हरियाणा और पंजाब सरकारों को कहा है कि वह खतरनाक स्तर तक पहुंचे वायु प्रदूषण से निपटने के लिए विस्तृत कार्य योजना गुरुवार तक पेश करें।
इससे पूर्व ४ दिसम्बर और २८ नवम्बर को भी एनजीटी ने दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब और राजस्थान की सरकारों को कार्ययोजना पेश नहीं करने को लेकर फटकार लगाई थी। हालांकि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने जो कार्ययोजना पेश की थी उसमें ऑड-इवन योजना एनजीटी ने सशर्त लागू करने को कहा था। केजरीवाल सरकार को उसमें राजनीति दिखी और उसने ऑड-इवन योजना का प्रस्ताव ही वापस ले लिया।
साफ है एनजीटी और राज्य सरकारों के मध्य गतिरोध का खमियाजा पूरा एनसीआर भुगत रहा है। एनजीटी अपने दिशानिर्देशों की पालना में विफल मालूम पड़ती है। एक माह से ज्यादा का समय हो गया है। दिल्लीवासियों को अभी तक स्मॉग से राहत नहीं मिल पाई है। आगे भी कितने दिन ऐसी स्थिति बनी रहेगी, कोई नहीं जानता। प्रदूषण नियंत्रण की बातें सिर्फ कागजी रह गई हैं। धरातल पर कुछ नहीं हो रहा।
दूसरा फैसला बुधवार को केरल सरकार ने किया। वहां मदिरापान की न्यूनतम आयु २१ वर्ष से बढ़ाकर २३ साल करने का फैसला किया गया है। यानी अब २३ साल से कम आयु के स्त्री-पुरुष ना तो मदिरा खरीद सकेंगे और ना ही उसका सेवन कर पाएंगे। क्या यह संभव है? फैसले में इसे लागू करने की कोई विस्तृत कार्ययोजना नहीं है। अब क्या आधार कार्ड देखकर शराब बेची या पिलाई जाएगी?
पूरे देश में मादक पदार्थों के सेवन और बिक्री का एक कानून लागू है। लेकिन वह कहां तक प्रभावी साबित हो रहा है सब जानते हैं। ऐसे अव्यवहारिक कदमों को उठाने से सरकारों को हर हाल में बचना चाहिए। कोई भी फैसला लागू करने से पहले उसकी प्रभावी क्रियान्विति तय की जानी चाहिए। वरना फैसलों का असर जमीन पर तो दिखता नहीं, सिर्फ कागजों में सिमटकर रह जाता है।

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