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दुश्मन नहीं विरोधी

Published: Sep 17, 2015 05:08:00 am

खुलासा इस बात का भी होना चाहिए कि प्रधानमंत्री कार्यालय एवं मंत्रियों के कार्यालयों में उनसे मिलने के क्या नियम हैं? क्या ऎसे लोग भी हैं जिन्हें नियम तोड़कर मिलने की छूट दी जाती है

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केन्द्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर डाक टिकट छापने बंद कर दिए हैं। सरकार अब दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया पर डाक टिकट जारी करेगी! सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की हवाई अaों पर तलाशी से छूट भी खत्म करने का फैसला किया है। आम आदमी को लगता है कि सरकार बदली है तो ये सब तो होना ही था! आम आदमी को राजनीतिक बदले की भावना का ख्याल इसलिए आता है क्योंकि आजादी के इतने सालों बाद भी हम ऎसी नीति तैयार नहीं कर सके जिससे साफ हो सके कि किसके नाम डाक टिकट जारी होंगे? हवाई अaों पर तलाशी से छूट का अधिकारी कौन होगा? किस राजनेता के नाम पर सरकारी योजनाओं का नाम होगा?

“भारत रत्न” का हकदार कौन होगा? ऎसी नीति बनी होती तो सरकार बदलने के साथ न डाक टिकट छापने बंद करने पड़ते और न किसी की तलाशी लेने के आदेश जारी करने पड़ते। जो काम अब तक नहीं हो सका, क्या आगे नहीं हो सकता? हर हाल में होना चाहिए। सरकार को सभी दलों को विश्वास में लेते हुए ऎसी पारदर्शी नीति तैयार करनी चाहिए जिस पर भविष्य में कोई विवाद पैदा न होने पाए! भले इसमें साल दो साल लग जाएं लेकिन हर हाल में अंजाम तक पहंुचाना चाहिए। चुनाव जीतने और सत्ता के लिए खुलकर राजनीति पर किसी को कोई आपत्ति नहीं लेकिन देश के महापुरूषों के सम्मान को राजनीति के तराजू में तोलने के प्रयास शोभा नहीं देते। इस देश को आगे ले जाने का काम अकेले कोई नेता या राजनीतिक दल कर ही नहीं सकता! देश आगे बढ़ेगा तो सभी के सहयोग से।

रॉबर्ट वाड्रा की तलाशी लेने के फैसले पर आरोप-प्रत्यारोप लग सकते हैं लेकिन कितने लोगों को यह छूट अभी दी जा रही है इसका खुलासा भी होना चाहिए। खुलासा इस बात का भी होना चाहिए कि प्रधानमंत्री कार्यालय एवं मंत्रियों के कार्यालयों में उनसे मिलने के क्या नियम हैं? क्या ऎसे लोग भी हैं जिन्हें नियम तोड़कर मिलने की छूट दी जाती है। राजनेताओं को मिलने वाली सुरक्षा को लेकर भी इसी तरह की पारदर्शी नीति बननी चाहिए।

सरकारें बदलने का मतलब बदले की राजनीति से नहीं लिया जाना चाहिए। सरकारें पहले भी आती-जाती रहीं हैं, आगे भी बदलती रहेंगी लेकिन कोशिश दूसरे की लकीर को छोटा करने की बजाय अपनी लकीर बड़ी खींचने की होनी चाहिए। राजनीति में एक-दूसरे को दुश्मन की तरह नहीं बल्कि विरोधी की तरह देखा जाए। लोकतंत्र तभी मजबूत हो पाएगा।

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