scriptराज्यसभा मनोनयन: चेहरा नहीं काबिलियत से हो मनोनयन | Nomination to Rajya Sabha should done on merit basis, not by just seeing faces | Patrika News

राज्यसभा मनोनयन: चेहरा नहीं काबिलियत से हो मनोनयन

Published: Apr 26, 2016 11:51:00 pm

संविधान में इसकी व्यवस्था की गई थी कि कला, संस्कृति, साहित्य, समाजसेवा
आदि क्षेत्रों में कार्यरत ऐसी हस्तियों को राज्यसभा में मनोनीत किया जाएगा
जो चुनावी प्रक्रिया के जरिए सदन तक नहीं पहुंच पाते। 

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एच. के. दुआ वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य
संविधान में इसकी व्यवस्था की गई थी कि कला, संस्कृति, साहित्य, समाजसेवा आदि क्षेत्रों में कार्यरत ऐसी हस्तियों को राज्यसभा में मनोनीत किया जाएगा जो चुनावी प्रक्रिया के जरिए सदन तक नहीं पहुंच पाते। मकसद साफ था कि ऐसी प्रतिभाओं के विचारों से सदन लाभांवित हो तथा उनके अनुभवों का देश हित में इस्तेमाल किया जा सके। शुरू के सालों में यह मनोनयन राष्ट्रपति ही करते थे लेकिन इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में यह व्यवस्था और शुरू कर दी गई किे राज्यसभा के लिए मनोनयन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह से करेंगे।

मनोनयन के दौरान इसको भी ध्यान में रखा जाना था कि देश के सभी हिस्सों से सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। यह एक अच्छी परिपाटी थी लेकिन पिछले सालों में ये मनोनयन राजनीतिक आधार पर या चेहरे देखकर किए जाने लगे हैं। हमने यह भी देखा है कि खेल व सिने जगत की हस्तियों के नाम पर पिछले सालों में कुछ मनोनयन ऐसे भी हुए जिन्होंने सदन में रुचि ही नहीं ली।

परिपाटी अच्छी थी
कुछ तो महज फोटो खिंचवाने के लिए ही सदन में आए। भला ऐसे मनोनयन से देश को क्या फायदा होने वाला है? यह बात भी सच है कि इस सदन में श्याम बेनेगल, लता मंगेशकर, स्वामीनाथन व जावेद अख्तर सरीखी हस्तियों की वजह से सदन का गौरव ही बढ़ा है। एक तरह से इन प्रतिभाओं को देश ने सम्मानित भी किया है। लेकिन राजनीतिक संतुलन बनाने के इरादे से होते जा रहे मनोनयन से मूल भावना खत्म होने लगी है। ऐसा इंदिरा गांधी, नरसिम्हाराव और दूसरे अन्य प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में भी हुआ है।


मैं इसे सही परिपाटी नहीं मानता। वैसे तो राज्यसभा में मनोनीत किए जाने वाले सदस्य एक तरह से स्वतंत्र होते हैं अर्थात उनका किसी राजनीतिक दल से वास्ता नहीं होता। लेकिन एक प्रावधान यह भी किया हुआ है कि ऐसे मनोनीत सदस्य मनोनयन के छह माह के भीतर किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ले सकते हैं। पूर्व में ऐसा हुआ भी है जब मनोनीत सदस्यों ने राजनीतिक दल की सदस्यता हासिल कर ली।

राजनीतिक दलों के अपने हित और मजबूरियां हो सकती है। लेकिन राजनीतिक आस्था रखने वालों को कतई इस तरह से मनोनीत नहीं किया जाना चाहिए। इससे मनोनयन की मूल भावना प्रभावित होती है। राजनीतिक दल कोई भी हो यदि उसे किसी राजनीतिक व्यक्ति को सदन में लाना है तो इसके लिए चुनाव प्रक्रिया तो है ही। मेरी राय में मनोनयन के जरिए उन्हीं लोगों को सदन में लाना चाहिए जिनके विचारों की देश को आवश्यकता हो।

हालांकि अभी मनोनीत व्यक्तियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने का प्रावधान नहीं है लेकिन ऐसे लोगों को यदि यह मौका देने का भी संवैधानिक प्रावधान किया जाए तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे भी मनोनीत सदस्यों को राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग को छोड़कर वे सभी अधिकार हासिल होते हैं जो एक निर्वाचित सदस्य को होते हैं।

इसमें संदेह नहीं कि अभी जिनका मनोनयन किया गया है वे अपने क्षेत्र में विशिष्टता हासिल किए हुए हैं। लेकिन एक बार जो किसी राजनीतिक दल से जुड़ गया हो उसे राज्यसभा में इस रास्ते से लाना तो उचित नहीं कहा जाएगा। इसके साथ यह भी ध्यान देना होगा कि कहीं मनोनीत किए गए किसी सदस्य की किसी राजनीतिक विचारधारा में आस्था तो नहीं है। तब ही सही मायने में सही लोगों के अनुभवों का फायदा सदन को और देश को मिल सकेगा।
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