उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन ने इसी माह के आरंभ में सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी कांग्रेस की बैठक में बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि परमाणु निरस्त्रीकरण बाइडन प्रशासन के लिए उनकी प्राथमिकताओं में नहीं है। इसके विपरीत किम ने हथियारों के आधुनिकीकरण के लिए अति महत्वाकांक्षी एजेण्डा रखा, जिसमें हाइपरसोनिक मिसाइल, ठोस ईंधन वाली इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम), मानव रहित एरियल व्हीकल्स, परमाणु-चालित पनडुब्बी जो बैलिस्टिक मिसाइलों और सामरिक परमाणु हथियारों को लॉन्च करने में सक्षम है, शामिल हैं। किम ने यह भी कहा कि वह लगभग 10,000 मील तक सटीक लक्ष्य वाली आइसीबीएम का विकास करना चाहते हैं, जो संयुक्त राज्य अमरीका को भी अपनी जद में ले लेगी। यदि किम अपनी योजना पर पहले अमल करना शुरू कर देते हैं तो बाइडन भी जल्द ही खुद को मिसाइल उकसावे से जूझते हुए पाएंगे-जैसा कि तब हुआ था जब वह उपराष्ट्रपति थे। उत्तर कोरिया ने बराक ओबामा के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद काफी कम समय में एक रॉकेट लॉन्च और परमाणु अस्त्र परीक्षण किया था।
अब समय अलग है। कोरोना संकट के चलते उत्तर कोरिया ने खुद को दुनिया से अलग कर लिया है और इसके चलते अर्थव्यवस्था बदतर हो गई है। धमकी के मूल में यही वजह हो सकती है, क्योंकि देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य का ढांचा खस्ताहाल है। सामान्यत: चीन और दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया की मदद को आगे आते हैं, लेकिन एक ओर दक्षिण कोरिया में अप्रेल से पहले वैक्सीन की संभावना नजर नहीं आ रही, तो दूसरी ओर चीन की अपनी समस्याएं हैं। वहां नए वैरियंट का फैलाव है और उसकी वैक्सीन कूटनीति अफ्रीका और दक्षिण अमरीकी देशों पर केन्द्रित है। सवाल उठता है कि क्या उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था एक साल या अधिक समय तक दुनिया से अलग-थलग रहकर बची रह सकती है। उत्तर कोरिया देश में निजी बाजारों पर नियंत्रण कर ऐसी कोशिश कर सकता है। पार्टी कांग्रेस का सुझाव है कि कड़ी मेहनत करने वाले उत्तर कोरियाई नागरिकों को काले बाजार के माध्यम से हासिल डॉलर, यूरो, रेनमिनबी सरकार को सौंपने के लिए मजबूर किया जा सकता है। ये सभी आशंकाएं अराजकता पैदा होने के संकेत दे रही हैं, जो निश्चित ही नए अमरीकी प्रशासन के लिए चुनौती साबित हो सकती है।
साभार: द वॉशिंगटन पोस्ट