script“सैकड़ों खरगोशों से भी एक घोड़ा नहीं बनता” | "Not even a horse is made of hundreds of rabbits" | Patrika News

“सैकड़ों खरगोशों से भी एक घोड़ा नहीं बनता”

locationनई दिल्लीPublished: Mar 05, 2021 07:37:24 am

– पुलिस जांच में लापरवाही और साक्ष्यों की कमी की वजह से न जाने कितने अपराधी बच निकलते हैं।

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“सैकड़ों खरगोशों से भी एक घोड़ा नहीं बनता”

कालजयी रूसी उपन्यासकार फ्योदोर देस्तोवस्की ने लिखा है, ‘सैकड़ों खरगोशों को मिलाकर भी आप एक घोड़ा नहीं बना सकते।’ पिछले दिनों बाबू और इमरान नामक दो व्यक्तियों की जमानत पर सुनवाई करते हुए दिल्ली की एक अदालत ने देस्तोवस्की की इस पंक्ति को याद किया। भारत में अपराध-न्याय प्रक्रिया की खामियों को उजागर करने के लिए पुलिस पर की गई यह एक टिप्पणी काफी है। पुलिस जब किसी को फंसाना चाहती है, तो तमाम ऊल-जलूल आरोप लगाकर उसे बड़े से बड़ा अपराधी बना देती है और जब किसी को बचाना चाहती है, तो जैसे-तैसे भी रास्ता निकाल ही लेती है। हालांकि, यह भी सच है कि हर मामले में पुलिस की चल नहीं पाती और अदालत में अक्सर दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जाता है। फिर भी कई ऐसे मामले अदालती पैमाने को भी धता बताने में कामयाब हो जाते हैं। अपेक्षाकृत बेहतर मानी जाने वाली दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों के संदर्भ में इन दोनों पर हत्या की कोशिश का आरोप लगाया था।

अदालत में प्रस्तुत साक्ष्यों को देखने के बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा, ‘आरोप है कि इन्होंने गोली चलाई जो राहुल को लगी, पर राहुल कहां है? पुलिस ने आज तक राहुल को नहीं देखा, फिर किसने बताया कि किसने गोली चलाई और किसे गोली लगी?’ पुलिस जांच में हम अक्सर ऐसी कमियां पाते हैं। कभी-कभी जान-बूझकर भी जांच में ऐसे तथ्यों को नजरअंदाज किया जाता है, ताकि अदालत में मामला टिक नहीं पाए, तो कई बार हड़बड़ी में ऐसे आरोप लगा दिए जाते हैं, जिन्हें साबित करना ही मुश्किल हो जाए। पुलिस जांच में लापरवाही और साक्ष्यों की कमी की वजह से न जाने कितने अपराधी बचनिकलते हैं।

ऐसी घटनाएं अपराध-न्याय की प्रक्रिया पर सवाल बनकर चुभती रहती हैं। ऐसा ही एक अन्य मामला यूपी के भदोही जिले का भी सामने आया है, जिसमें चार लोगों को अपहरण का दोषी मानते हुए सजा सुना दी गई। वे तीन साल की सजा काट भी चुके हैं। उन पर हत्या की नीयत से अपहरण का आरोप लगाया गया था। अब 12 साल के बाद यह खुलासा हुआ कि अपहृत व्यक्ति इस बीच छिप-छिप कर घर आता रहा। हाल ही में टूलकिट प्रकरण में जिस तरह एक पर्यावरण कार्यकर्ता के खिलाफ पेश सबूतों को अदालत ने खारिज किया, उससे भी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि भले ही दिल्ली की एक अदालत ने सैकड़ों खरगोशों को मिलाकर घोड़ा बनाने की पुलिस की कहानी पर भरोसा नहीं किया हो, पर कई मामलों में पुलिस ऐसा करने में सफल हो जाती है।

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