भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा खुलासे से केन्द्र सरकार की नोटबंदी पर विफलता खुलकर सामने आ गई है। गौरतलब है कि सरकार नोटबंदी के निर्णय को अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताती रही है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। नोटबंदी के पीछे इरादा तो अच्छा था लेकिन इसकी बड़ी कीमत देश की जनता को चुकानी पड़ी। नोटबंदी लागू करने का एक महत्वपूर्ण कारण काले धन को सिस्टम में लाना बताया गया था।
हैरत की बात है कि काला धन रखने वालों ने अपने काले धन को नोटबंदी के दौरान येन-केन प्रकारेण समायोजित कर लिया। हालांकि काले धन की मात्रा का कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है। काले धन के बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है कि कितना काला धन बाहर है। नोटबंदी की समीक्षा में यह सामने आया है कि बाजार में चलन में रहे पांच सौ और एक हजार के ९९ प्रतिशत नोट रिजर्व बैंक में जमा हो चुके हैं। साफ है कि नोटबंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग हुए जिनका न तो कोई बैंक खाता था और न ही उनके पास नकदी जमा करने का अन्य कोई साधन।
इसमें सबसे ज्यादा तकलीफों का सामना दैनिक मजदूरी कर पेट भरने वाले श्रमिकों को करना पड़ा। एक तो उन्हें अपने काम-धंधे छोडक़र बैंकों की लम्बी-लम्बी लाइनों में लगना पड़ा, वहीं दूसरी ओर इस दौरान बाजार में नकदी की कमी से उनके रोजगार भी छिन गए। दैनंदिन जरूरतों के लिए भी छुट्टे रुपयों की कमी का सामना करना पड़ा। छोटे कारोबारियों को तो आज तक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। रहा सवाल सरकार के इस दावे का कि नोटबंदी से करदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इस बारे में मेरा मानना है कि आजकल हर वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता आ गई है। साथ ही डिजिटलाइजेशन के दौर में वित्तीय लेन-देन के पुराने तरीके चलन से बाहर होते जा रहे हैं। वहीं हर बड़े लेन-देन में पेनकार्ड की अनिवार्यता ने भी करदाताओं की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार के गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू करने के फैसले ने भी कई छोटे और मध्यम व्यापारियों को कर सीमा के दायरे में ला दिया है। सिर्फ नोटबंदी को श्रेय देना ठीक नहीं होगा। नोटबंदी का फैसला सरकार का बहुत ही अतार्किक फैसला था। इससे न केवल ईमानदारी से जीवन जी रहे आम आदमी पर *****र पड़ा वरन इसने देश की अर्थव्यवस्था को भी काफी पीछे धकेल दिया। नोटबंदी के दीर्घावधि *****र के चलते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर ७ प्रतिशत से घटकर ५.७ प्रतिशत पर आ गई है। निश्चित रूप से किसी भी सूरत में नहीं कहा जा सकता कि आर्थिक रूप से नोटबंदी सफल रही।