भले ही मुंबई में अक्टूबर 2020 में हुए ब्लैकआउट को लेकर सरकार ने स्पष्ट किया हो कि इसकी वजह साइबर अटैक नहीं, बल्कि मानवीय भूल थी, इसके बावजूद सावधानी जरूरी है। चीनी हैकर्स की इन करतूतों से समझा जा सकता है कि साइबर हमले किस तरह से ‘वैश्विक उद्योग’ बनते जा रहे हैं। इसलिए न केवल भारत, बल्कि दुनिया के तमाम देशों को साइबर सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत रहना होगा। ऐसा लग रहा है कि दुनिया में अब वह देश ज्यादा ताकतवर समझा जाएगा, जिसके पास ‘साइबर शक्ति’ ज्यादा होगी। यानी ऐसी ताकत, जो किसी भी देश के सुरक्षा तंत्र तक में सेंध लगा सके। कोरोना
वैक्सीन से संबंधी जानकारी चुराने के मकसद से चीनी हैकिंग गु्रप स्टोन पांडा की सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटैक के आइटी और सप्लाई लाइन सॉफ्टवेयर में सेंध लगाने की कोशिश भी बताती है कि चीन अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा। यह बात सही है कि हैकर्स कहीं भी पावर सप्लाई, कम्युनिकेशन व बैंकिंग सिस्टम तक को बाधित कर सकते हैं। अब तक समूची दुनिया को ऐसे साइबर हमलों से सैकड़ों बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है। इसलिए यह सवाल भी खूब उठता है कि इंटरनेट की शक्ति का लाभ उठाने के साथ-साथ ऑनलाइन सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।
इंटरनेट का आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल सबसे बड़ा संकट है। इसलिए दुनिया के तमाम देशों को चाहिए कि वे इससे निपटने के लिए अपने कानूनी प्रावधानों में भी सख्ती लाएं। दुनिया के दूसरे देशों से साइबर स्पेस में जो अवांछित जानकारी फैलाई जा रही है, उसे रोकने का प्रयास करें। साइबर स्पेस के तमाम खतरों को देखते हुए हमें इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि साइबर सुरक्षा को लेकर जो प्रयास भारत में किए जाने थे, वे नहीं हो पाए। चीन इस मामले में कहीं आगे है। इसीलिए साइबर अटैक कर चुनौती देना उसकी फितरत में है। हमें चीन ही नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी कोने से रची जाने वाली साइबर अटैक की साजिशों को लेकर सचेत रहते हुए डेटा सुरक्षा पर काम करना होगा।