scriptअब वक्त हर दिन पालना रिपोर्ट लेने का | Now is the time to take a cradle report every day | Patrika News

अब वक्त हर दिन पालना रिपोर्ट लेने का

locationनई दिल्लीPublished: Apr 23, 2021 07:16:46 am

देश में तीन लाख से ज्यादा नए संक्रमित सामने आए और इक्कीस सौ से अधिक जान गंवा बैठे।
अब तो आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों के उच्च न्यायालय के साथ स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी मैदान में उतर आया है।

अब वक्त हर दिन पालना रिपोर्ट लेने का

अब वक्त हर दिन पालना रिपोर्ट लेने का

देश में कोरोना के हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। केन्द्र से लेकर तमाम राज्यों की सरकारें खूब प्रयास करती नजर आ रही हैं। अब तो आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों के उच्च न्यायालय के साथ स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी मैदान में उतर आया है। अभी तक का परिणाम यही है कि देश में कोरोना से संक्रमित रोगी और इससे मरने वालों की संख्या हर दिन बढ़ती ही जा रही है। गुरुवार को भी देश में तीन लाख से ज्यादा नए संक्रमित सामने आए और इक्कीस सौ से अधिक जान गंवा बैठे।

देश की राजधानी दिल्ली से लेकर मुंबई, लखनऊ, भोपाल, अहमदाबाद, रायपुर, जयपुर, रांची और कोलकाता, कितनों के नाम लें, सब शहर और राज्य एक लाइन में लगे नजर आ रहे हैं। पलंग से लेकर ऑक्सीजन और इंजेक्शन से लेकर दवा और टीके सबके लिए, हर तरफ हाहाकार मचा है। कहीं टीके लुट रहे हैं, तो कहीं इंजेक्शन। मरकज, कुम्भ, महाकुम्भ और सबसे बड़े चुनावों में उलझे देश के कर्णधारों के पास महामारी से निपटने की योजना बनाने का वक्त ही नहीं है। सब आरोप- प्रत्यारोपों में उलझे हैं। न्यायपालिका मैदान में आती है, तो सरकारें उसके अधिकारों पर सवाल उठाने लगती हैं। दो दिन पहले ही जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के पांच बड़े शहरों में लॉकडाउन के निर्देश दिए, तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।

सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य की मान ली। यही स्थिति मुम्बई, गुजरात, दिल्ली, कोलकाता और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालयों की है। जब सड़कों पर मरीजों की रेलमपेल हो, अस्पतालों में भर्ती की ही नहीं, श्मशानों में अंतिम संस्कार के लिए भी लाइनें लगी हों, तब न्यायाधीशों का विचलित होना स्वाभाविक है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक ने सही ही कहा कि जो हालात हैं, उनमें हम मूकदर्शक नहीं रह सकते। इन्हीं सब याचिकाओं पर न्यायालय तथा सरकारों में टकराव को देखते हुए शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने आगे बढ़कर मामला अपने पास ले लिया। न्यायालय ने सही ही कहा है कि देश में कोरोना के हालात ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ जैसे हैं। देशवासियों की उम्मीद की आखिरी किरण न्यायालय और न्यायाधीश ही हैं। उसने केन्द्र सरकार से चौबीस घंटे में इस महामारी से पार पाने की कार्ययोजना मांग कर सही शुरुआत की है। अब वक्त और समय देने का नहीं, तुरंत ठोस निर्देश देकर उनकी हर दिन पालना रिपोर्ट लेने का है।

राज्यों के उच्च न्यायालय भी सर्वोच्च न्यायालय के आंख, नाक, कान हैं। लंदन में बैठे हरीश साल्वे भले सुनी सुनाई बात करें, लेकिन उनके पास तो आंखों देखी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय का यह हस्तक्षेप कोरोना की लड़ाई में ‘रामबाण’ साबित होगा।

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