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रेल पटरियों की हो फेंसिंग

locationजयपुरPublished: Oct 24, 2018 07:21:20 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

रेलवे सुरक्षा की जब बात की जाती है, तो सारा ध्यान रेल के डिब्बे में बैठे यात्री पर केन्द्रित कर दिया जाता है। अब रेलवे ट्रैक के आस-पास जनजीवन की सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा।

railway track

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एनएस बिस्सा, टिप्पणीकार

भारतीय रेलवे विश्व का दूसरा बड़ा और एशिया का सबसे बड़ा नेटवर्क माना जाता है। यह भी एक तथ्य है कि रेलवे के पास सबसे अधिक संपत्तियां एवं कार्मिक हैं। रेलवे की वेबसाइट पर उपलब्ध विजन डॉक्यूमेंट तथा कार्ययोजना में यों तो सुरक्षा को लेकर अगले पांच साल में एक लाख सत्ताईस हजार करोड़ रुपए का प्रावधान है। चिंता की बात यह है कि अमृतसर में हुए रेल हादसे जैसी दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए कोई बजट और योजना नहीं है।

विगत छह दशकों में रेलवे नेटवर्क का काफी विस्तार हुआ है। खेतों-आबादी के बीच में से गुजरती रेलगाड़ी देश के विकास की लाइफलाइन कहलाती है लेकिन कटु सत्य यह भी है कि बिना फेंसिंग के यानी अधिकांशत: चारों तरफ से खुली रेलवे लाइन इंसानों एवं जानवरों के लिए मौत का सबब बनती जा रही है।

इसका आज तक कोई आकलन नहीं किया गया कि ग्रामीण तथा शहरी इलाकों में खुली रेल लाइन के कारण कितने इंसान व पशु रोज मारे जाते हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब तेज गति से आती हुई रेल के सामने आकर अथवा ट्रैक पर लेट कर आत्महत्या करने की घटनाएं न होती हों। बिना फेंसिंग वाली रेल लाइनों की वजह से हादसों की तादाद कम नहीं होती। मोटे तौर पर एक लाख किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र में फैली रेल लाइनों में केवल जंक्शन और मुख्य स्टेशनों पर ही दोनों तरफ फेंसिंग की हुई है। शेष लाइनें आज भी हादसों को न्योता देती हैं।

इसे विडम्बना ही कहेंगे कि आजादी के सत्तर साल बाद भी किसी भी सरकार का इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया। आज देश के लगभग सभी प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों की फेंसिंग की हुई है। इस कारण इन मार्गों पर जहां एक ओर वाहनों की गति में इजाफा हुआ है, वहीं दुर्घटनाओं में भी कमी आई है। अब सवाल यह उठता है कि रेल मंत्रालय ने खुली रेलवे लाइन की फेंसिंग के बारे में कार्ययोजना बनाकर उसे अब तक लागू क्यों नहीं किया? यह बात भी सही है कि इसके लिए भारी धनराशि की आवश्यकता होगी। चरणबद्ध रूप से यह कार्य करना होगा। अब तक की सरकारें भी यदि दृढ़ इच्छाशक्ति से इस तरफ काम करतीं, तो अमृतसर जैसे हादसे नहीं होते।

रेलवे सुरक्षा की जब बात की जाती है तो सारा ध्यान रेल के डिब्बे में बैठे यात्री पर केन्द्रित कर दिया जाता है। अब रेलवे ट्रैक के आस-पास जनजीवन की सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा।

(राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व सदस्य। समसामयिक विषयों पर लेखन।)

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