(‘द रूम वेयर इट हैपंड: ए वाइट हाउस मेम्वर’ के लेखक। डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे।)
अमरीका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन के शपथ ग्रहण करने वाला दिन मेरे लिए आश्चर्यजनक रहा। बाइडन के शपथ लेने के तुरंत बाद चीन ने कड़ा कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में अहम पदों पर रहे और विश्वासपात्र 28 अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध का सामना करने वालों में मैं भी हूं। इन अधिकारियों पर चीन-अमरीका के संबंधों को खराब करने और चीन की सम्प्रभुता का उल्लंघन करने का आरोप है। चीन का बाइडन प्रशासन को लेकर यह एक संकेत है कि अगर यूएस, बीजिंग के इशारों और इच्छाओं पर नहीं चलता है तो हालात कैसे होंगे। राष्ट्रपति बाइडन के पास अब राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शृंखला के संबंध में चीन-अमरीका संबंधों को लेकर रणनीतिक रूप से सोचने का एक अवसर है।
1989 में जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश ने अमरीका-सोवियत संघ के संबंधों की बराबरी के आधार पर समीक्षा की थी। शुरुआत में बहुत संदेह हुआ और समय नष्ट करने के नाम पर इसकी आलोचना की गई। फिर भी बुश ने इसे सही पाया। पूर्वी यूरोप के लिए उनकी अशांत प्रतिक्रिया से वारसा संधि में गिरावट आई और बोरिस येल्तसिन को उनके समर्थन के चलते 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ। खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला और यह कुछ भरोसेमंद लोगों के चलते संभव हुआ। रणनीतिक योजना की जरूरत को पूरा करना आवश्यक नहीं है, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति के बाद कुछ साधारण चीजों पर भी विचार करने की जरूरत है। मीडिया आमतौर पर अप्रिय फैसलों पर फोकस करता है लेकिन मूल सवाल यह कि उनके उत्तराधिकारी रणनीतिक रूप से कैसा सोचेंगे और कैसा काम करेंगे। ट्रंप ने ठीक से नहीं सोचा। उन्होंने अपने सामने रखे रणनीतिक दस्तावेजों को भी नहीं पढ़ा। उन्होंने अराजक फैसले लिए और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ व्यापार युद्ध छिड़ गया।
चीन के नीतिगत उद्देश्यों के बारे में संक्षिप्त वैचारिक टिप्पणियां अपर्याप्त हैं लेकिन कई प्रमुख मार्कर भी हैं। सत्तर के दशक के आखिर में डेंग जियाओपिंग ने रुढि़वादी माक्र्सवाद से नाता तोड़ा था और देश में आर्थिक सुधारों की नींव रखी थी। अमरीका की चीन नीति आश्वस्त हो गई कि आर्थिक सुधारों से घरेलू आजादी में वृद्धि होगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन शांतिपूर्ण विकास में जिम्मेदार साझीदार होगा। दोनों ही अनुमान गलत निकले जैसा कि मनोनीत राज्य सचिव एंटनी ब्लिंकेन ने स्वीकार भी किया है। हमें यह जानने की जरूरत है कि क्या बाइडन अपने निष्कर्षों को साझा करते हैं और समय के साथ चलते हैं क्योंकि नजर रखने वाले बहुत हैं। उदाहरण के लिए, चीन को लम्बे समय तक केवल सामान्य व्यापारिक साझीदार की तरह नहीं देखा जा सकता है। ट्रंप यथासम्भव कोशिश कर उसे पिछड़ा हुआ बताते थे। वह प्राय: यूरोपीय संघ को चीन की तरह बताते थे। इससे हालात बदतर ही हुए। यूरोपीय संघ प्राय: यूएस के व्यापारिक वार्ताकारों के साथ सौदेबाजी से बाहर ही रहा है, यह चिंता का मुद्दा रहा है। चीन न केवल व्यापारिक फायदे
लेना चाहता है बल्कि इंडो-पैसिफिक और फिर वैश्विक स्तर पर आधिपत्य भी चाहता है। यह ईयू की तुलना में गम्भीर खतरे का कारण है। चीन द्वारा बौद्धिक सम्पदा की चोरी ही अकेले राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सर्वोपरि खतरा है, न कि एक स्पष्ट व्यापार मुद्दा। इसी तरह पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में चीनी सेना की आक्रामकता, ताइवान तक सेना की घुसपैठ, पूरी सैन्य क्षमताओं के साथ ज्यादातर हिस्सों पर दावा जताना और विशाल निर्माण चीन की विस्तारवादी नीति को
दर्शाते हैं। इतना ही नहीं, दूरसंचार कम्पनी हुवावेई की मुख्य वित्त अधिकारी मेंग वानझोउ की गिरफ्तारी पर चीन ने इसे कनाडा की राजनीतिक चाल बता दिया। अमरीका में मेंग पर बैंक धोखाधड़ी का आरोप था और उसे 2018 में वेंकूवर से यूएस सरकार के अनुरोध पर गिफ्तार किया गया था। ये सभी कार्य किसी भी राष्ट्र के शांतिपूर्ण होने को मिथ्या साबित करते हैं। इस तरह के चीन के उकसावे को देखते हुए डेमोक्रेट्स की रक्षा बजट में कमी की मांग शायद ही पूरी हो पाए। जरूरत तो रक्षा बजट को बढ़ाने की है और यह सिर्फ चीन के कारण नहीं।
बीजिंग के खतरे की प्रकृति को समझना भी महत्त्वपूर्ण है। यह केवल वैचारिक अथवा शीतयुद्ध का संघर्ष नहीं है। चीन माक्र्सवादी सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहा है। हालांकि उसकी घरेलू नीतियों में आकर्षक बनाने के लिए कुछ नहीं है। शी न केवल उइगरों और अन्य गैर-हान अल्पसंख्यकों को कुचल रहे हैं बल्कि धार्मिक आजादी को भी समाप्त कर रहे हैं। हांगकांग के लोकतंत्र समर्थकों का भी वे कठोरता से दमन कर रहे हैं। अमरीकी, नागरिक-सैन्य गठजोड़ को स्वीकार नहीं करते हैं जैसा कि बीजिंग अपने नागरिकों की निष्ठा को मापता है। यह साम्यवाद नहीं, बल्कि अधिनायकवाद है, तानाशाही है। अंतिम रूप से, यूएस की चीन को लेकर रणनीति के बारे में रणनीतिक बहस होनी चाहिए।
वॉशिंगटन पोस्ट