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कोरोना से बढ़ेगा एनपीए का संकट

locationनई दिल्लीPublished: Jul 22, 2020 05:17:02 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

बिना पर्याप्त पूंजी के कमजोर बैंकों के लिये आगामी महीनों में ऋण देना और वसूली करना संभव नहीं होगा।बैंकों का हालिया समेकन भी इस बीमारी का इलाज करने में असमर्थ है।

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सतीश सिंह, एसबीआई की पत्रिका आर्थिक दर्पण के संपादक

वैसे तो कोरोना वायरस की वजह से सभी क्षेत्रों का बुरा हाल है, लेकिन बैंकिंग क्षेत्र का हाल आगामी महीनों मेंज्यादा बुरा होने वाला है। इसकी पुष्टि बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से 3 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को पुनर्गठित (रिस्ट्रक्चरिंग) करने की माँग से होती है। मोटे तौर पर ये कर्ज होटल, विमानन और रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों को कोरोना वायरस की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। इन क्षेत्रों के ऋण खातों को पुनर्गठित करने की जरुरत इसलिए हैं, क्योंकि पुनर्गठन के बाद कंपनियों को बहुत सारी राहतें दी जाती हैं, जिससे कुछ समय के लिये पुनर्गठित खाते गैर निष्पादित आस्ति (एनपीए) होने से बच जाते हैं और मिले हुए अतिरिक्त समय में कंपनियों को अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करने का मौका मिलता है।
अमूमन, कंपनियों की माली हालात जब बहुत ज्यादा ख़राब हो जाती है तो वे बैंकों से ऋण खातों को पुनर्गठित करने के लिये कहते हैं।‌चूँकि, इस विकल्प का चुनाव बैंकों के लिये भी मुफीद होता है, इसलिये, वे भारतीय रिजर्व बैंक से नकदी की किल्लत झेलने वाली कंपनियों के खातों को पुनर्गठित करने का आग्रह करते हैं।दरअसल, कंपनी के दिवालिया होने पर कंपनी से बैंक जितनी वसूली कर सकते हैं, उससे कहीं अधिक पैसे बैंक को ऋण खातों के पुनर्गठन से मिलने की उम्मीद होती है।‌ आमतौर पर ऋण का ब्याज दर कम करके या किस्तों के भुगतान की अवधि में इजाफा करके ऋण खातों का पुनर्गठन किया जाता हैैै। इस प्रक्रिया के तहत ऋण के बदले कंपनी के शेयरों की भी अदला-बदली की जाती है। इसका यह मतलब हुआ कि कंपनी के शेयरों के बदले बैंक, कंपनी का कुछ या पूरा कर्ज माफ़ कर सकते हैं। ऋण खातों के पुनर्गठन के तहत कंपनी बैंक को बांड का कुछ हिस्सा देने के लिये भी राजी हो सकते हैं। कंपनी, बैंक से ब्याज या पूंजी का कुछ हिस्सा माफ करने के लिए भी आग्रह कर सकती है।
अप्रैल, 2020 के अंत तक बैंकों का होटल क्षेत्र पर 45,862 करोड़ रूपये, विमानन क्षेत्र पर 30,000 करोड़ रूपये और रियल एस्टेट क्षेत्र पर 2.3 लाख करोड़ रूपये बकाया था। एक अनुमान के अनुसार इन क्षेत्रों की स्थिति सामान्य होने में 6 महीनों से 1 साल तक का समय लग सकता है। इधर, रेटिंग एजेंसी इक्रा के मुताबिक खस्ताहाल विमानन क्षेत्र को अपने अस्तित्व को बचाने के लिये आगामी 3 सालों में लगभग 35000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी। होटल क्षेत्र में कई होटल कर्ज में डूबे हैं. व्यावसायिक परिसंपत्ति और किराये के कारोबार में भी लगभग 25 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट आने के कयास लगाये जा रहे हैं. ऐसे में इन क्षेत्रों से जुड़े ऋण खातों को पुनर्गठित करना बहुत ही जरुरी है.
कोरोना महामारी की वजह से खुदरा ऋणों के किस्त एवं ब्याज की अदायगी को बैंकों ने अगस्त, 2020 तक के लिये टाल दिया है और एनपीए में तुरत-फुरत में उछाल नहीं आये के लिये इस स्थगन को बढाकर दिसंबर 2020 तक करने की बात कही जा रही है. उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को खुदरा ऋणों की क़िस्त और ब्याज को सिर्फ टालने का निर्देश दिया है न कि माफ़ करने का। अगर कर्जदार मोराटोरियम का फ़ायदा लेना चाहते हैं तो उन्हें बाद में बैंकों के क़िस्त एवं ब्याज दोनों को चुकाना होगा। साथ ही, टाली गई अवधि के क़िस्त एवं ब्याज पर चक्रवृधि ब्याज भी देना होगा।याद रहे, इन उपायों से सभी ऋण खातों को एनपीए होने से नहीं बचाया जा सकता है.
मोराटोरियम अवधि समाप्त होने के बाद बड़ी संख्या में कार, गृह और व्यक्तिगत ऋण एनपीए में तब्दील हो सकते हैं।‌ऐसे में एनपीए से उपजे समस्याओं के निवारण के लिये सरकार को बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की आवश्यकता होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का भी कहना है कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनर्पूंजीकरण समय की मांग है. बिना पर्याप्त पूँजी के कमजोर बैंकों के लिये आगामी महीनों में ऋण देना और वसूली करना संभव नहीं होगा।‌बैंकों का हालिया समेकन भी इस बीमारी का इलाज करने में असमर्थ है।
भारतीय स्टेट बैंक, केनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक एवं बैंक ऑफ बड़ौदा पूंजी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।‌ स्टेट बैंक को 20,000 करोड़ रुपये तक पूँजी जुटाने की मंजूरी मिली है और पंजाब नेशनल बैंक 7,000 करोड़ रुपये तक की पूँजी जुटाने के लिए शेयरधारकों से मंजूरी लेने वाला है।इनके अलावा दूसरे बैंक पूँजी के लिये सरकार पर निर्भर हैं। वैसे, अभी तक पुनर्पूंजीकरण के बहुत अच्छे परिणाम नहीं निकले हैं. सरकार ने संचयी तौर पर वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2020 के दौरान बैंकों में लगभग 43 अरब डॉलर की पूंजी डाली है। फिर भी, इस पूंजी निवेश से बैंकों के पूँजी आधार में कोई अर्थपूर्ण सुधार नहीं हो पाया, क्योंकि बैंकों का नुकसान निवेशित पूंजी से दो से तीन गुना ज्यादा था। बैंकों में डाली गई पूंजी का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा पिछले दो सालों में डाली गई, जिसमें से अधिकांश का उपयोग पूंजीगत कमी की भरपाई के लिए किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार तो कोरोना महामारी की वजह से भारतीय बैंकों को 10 प्रतिशत का भारित औसत (डब्ल्यूए) सामान्य इक्विटी टियर-1 (सीईटी1) अनुपात को पूरा करने के लिए जरूरी पूंजी में लगभग 15 अरब डॉलर की कमी आ गई है और यह आशंका जताई जा रही है कि अगर अर्थव्यवस्था में सुधार होने में देरी होती है तो वित्त वर्ष 2022 में यह अंतर बढ़कर लगभग 58 अरब डॉलर हो जाएगाा।. फिच का यह भी कहना है कि एनपीए बढ़ने से सरकारी बैंकों को पूंजी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि, फिच ने बड़े निजी बैंकों की स्थिति सरकारी बैंकों से बेहतर रहने का अनुमान लगाया है।
इसमें दो राय नहीं है कि धीरे-धीरे देश की अर्थव्यवस्था में आ रहे संकुचन की गति धीमी हो रही है, लेकिन आर्थिक गतिविधियां अभी भी कोरोना महामारी के आगमन के पहले के स्तर से काफी कम हैं और सुधार की गति बहुत ही ज्यादा सुस्त है, क्योंकि कोरोना वायरस का फैलाव निरंतर बढ़ रहा है और देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय स्तर पर फिर से तालाबंदी की गई है, जिसका असर खपत पर तो पड़ ही रहा है साथ ही साथ यह आपूर्ति श्रृंखला और उत्पादन को भी प्रभावित कर रहा है, जिससे कारोबारियों और आमलोगों के लिये मुश्किलें बढ़ रही हैं और ऋण की अदायगी की संभावना क्रमशः क्षीण होती चली जा रही हैैै।।
तालाबंदी की वजह से करोड़ों लोगों की नौकरियाँ जा चुकी हैं। स्व-रोजगार करने वाले कामगार भी 3 महीनों से अधिक समय से घर में बैठे हैं। नौकरी करने वाले हों या कारोबार करने वाले, लगभग सभी ने बैंकों से कर्ज ले रखा है और वर्तमान में वे बेरोजगार हैं। आगामी महीनों में भी उन्हें रोजगार मिलने की संभावना न्यून है, क्योंकि तालाबंदी को खोलने के बाद भी सभी क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां शुरू में लंबा समय लगने का अनुमान है। हालाँकि, प्रवासी मजदूरों को फिर से काम पर वापस बुलाने की कवायद शुरू कर दी गई है, लेकिन बहुत सारे प्रवासी मजदूर कोरोना की डर की वजह से काम पर लौटने के लिये तैयार नहीं हैं.
बैंकिंग क्षेत्र को अर्थव्यवस्था की रीढ की हड्डी माना जाता है, लेकिन आज यह क्षेत्र एनपीए की समस्या से जूझ रहा है. दिसंबर, 2019 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कहा गया था कि सितंबर 2020 तक भारतीय अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों का एनपीए कुल कर्ज के 9.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच सकता है. इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 2020 में 53 देशी-विदेशी बैंकों की पूंजी पर्याप्तता अनुपात कम होकर 14.1 प्रतिशत हो जायेगी, जो सितंबर 2019 में 14.9 प्रतिशत थी. अब कोरोना महामारी के कारण एनपीए की समस्या बद से बदतर हो रही है, जिससे अर्थव्यवस्था के और भी डावांडोल होने की आशंका है, क्योंकि एनपीए के लिये प्रावधान करने से बैंकों का मुनाफा कम होगा और उन्हें पूँजी की कमी का सामना करना पड़ेगा, जिससे जरुरतमंदों को ऋण देने में परेशानी होगी।
सभी क्षेत्रों को खोलने के बाद कारोबारी, कुटीर उद्योग, छोटे व मझौले उद्योग एवं बड़े उद्योगों को फिर से काम-काज शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत होगी. सरकार ने 20 लाख करोड़ रूपये के पैकेज की घोषणा की है, जिसकी एक बड़ी राशि जरुरतमंदों को ऋण के रूप में दी जानी है. ऐसे में अगर बैंकों को पूँजी की समस्या का सामना करना पड़ा तो आर्थिक गतिविधियों को शुरू करना मुमकिन नहीं हो सकेगा. अस्तु, मौजूदा स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक को आने वाले महीनों में बड़ी संख्या में कोर्पोरेट्स और खुदरा ऋणों को एनपीए होने से बचाने के लिये उपाय करने होंगे।
इस आलोक में होटल, विमानन और रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़े ऋण खातों के पुनर्गठन के प्रस्ताव को मानना मुफीद साबित हो सकता है। साथ ही, कर्जदारों को भी ईमानदारी से ऋण चुकाना होगा अर्थात जो कर्ज चुकाने में सक्षम हैं, उन्हें कर्ज चुकाने से गुरेज नहीं करना होगा, ताकि मोराटोरियम अवधि की समाप्ति के बाद बैंकों के एनपीए में भारी इजाफा नहीं हो.

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