scriptओ.. गंगा, तुम बहती हो क्यूं? | o ganga why you flow | Patrika News

ओ.. गंगा, तुम बहती हो क्यूं?

Published: Mar 27, 2017 12:33:00 pm

Submitted by:

गंगा हजारों साल से बह रही है। कहते हैं जो गंगा नहा लेता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं। हम गंगा किनारे नहीं रहते पर कभी-कभी अपने बूढ़ों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने जाते हैं और पाप भी धो आते हैं।

गंगा देवव्रत की मां थी। देवव्रत के बूढ़े पिता को एक मछुआारिन से प्रेम हो गया। मछुआरिन के बाप ने देवव्रत के राजा पिता के सामने शर्त रखी कि वह अपनी जवान पुत्री का विवाह उससे तभी करेगा जब वह वचन दे कि उसकी बेटी के गर्भ से होने वाला पुत्र ही राजा बनेगा। 
बाप पसोपेश में फंस गया। पर पुत्र देवव्रत ने मछुआरे को वचन दिया कि न तो वह राजा बनेगा और न ही कभी ब्याह करेगा ताकि उसकी औलादें भी कभी राजगद्दी के लिए ‘क्लेम’ न करें। जी सही समझे देवव्रत यानी जिसे हम कौरव-पांडवों के पड़दादा भीष्म पितामह के नाम से जानते हैं। 
ऐसी सैकड़ों कथाएं गंगा के कछार में फैली हुई हैं। गंगा हजारों साल से बह रही है। कहते हैं जो गंगा नहा लेता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं। हम गंगा किनारे नहीं रहते पर कभी-कभी अपने बूढ़ों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने जाते हैं और पाप भी धो आते हैं। 
प्राय: गंगा शांत भाव से बहती है, जब क्रुद्ध होती है तो हाहाकार मचा देती है। उससे नुकसान गरीबों का ही होता है। पहुंच वालों के घरों तक गंगा पहुंच ही नहीं पाती। न जाने क्यों हमें लगने लगा कि गंगा और इस देश की जनता में बेहद साम्यता है। 
जैसे गंगा पापियों के पाप धोते-धोते महामैली हो गई वैसे ही देश की अवाम भी नेताओं के कारनामों को लादे-लादे विक्षिप्त सी हो गई लगती है। अपना विवेक ही भूल गई। ऐसे फैसले कर लेती है जो उसी पर भारी पड़ते हैं। 
क्या अब गंगा को प्रदूषण से और जनता को दूषित राजनीति के प्रपंचों से मुक्त करने का वक्त नहीं आ गया? लेकिन समझ नहीं आता कि इस कार्य को करेगा करेगा कौन? जिस तरह गंगा किनारे रहने वालों को गंगा की रत्ती भर भी परवाह नहीं उसी तरह देशवासी भी इस लोकतंत्र से उदासीन होते जा रहे हैं। 
आज हमें असम के महान गायक भूपेन हजारिका का गीत याद आ रहा है- विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार, नि:शब्द सदा, ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूं?

व्यंग्य राही की कलम से 

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो