प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 25 जून को स्मार्ट सिटी परियोजना का उद्घाटन करने जा रहे हैं। शहरों पर बढ़ते बोझ को नियंत्रित करने के इरादे से शुरू की जा रही यह महत्वाकांक्षी तो है ही, समय की जरूरत भी। अपने कार्यकाल में हर सरकारें नई-नई योजनाएं-परियोजनाएं लाती हैं। इनमें कुछ सफल होती हैं तो कुछ घिसट-घिसट कर दम तोड़ देती हैं।धूम-धड़ाके के साथ शुरू की गई योजनाएं खानापूर्ति बन कर रह जाती हैं। केन्द्र में मोदी सरकार एक साल पूरा कर चुकी है। इन उपलब्घियों का जश्न भी मनाया गया। एक साल में सरकार ने क्या किया अथवा कितना कर सकती थी, ये बहस का विषय हो सकता है लेकिन सवाल उससे आगे का है। जो योजनाएं शुरू हुई उनका हाल क्या है? प्रधानमंत्री ने जयप्रकाश नारायण की जयंती पर पिछले साल अक्टूबर में सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की थी। इसके तहत हर सांसद को अपने क्षेत्र में एक-एक गांव गोद लेकर उसे आदर्श ग्राम में बदलना था। जानकर ताज्जुब होता है कि आठ महीने बाद भी 108 सांसदों ने अब तक गांव गोद ही नहीं लिए। इनमें भाजपा के सांसद भी शामिल हैं। जिन सांसदों ने गांव गोद लिए भी हैं उनमें अधिकांश ने ऎसे गांवों को प्राथमिकता दी है जो पहले से ही विकसित हैं। ऎसी योजनाओं को क्या माना जाए? प्रधानमंत्री ने पिछले साल महात्मा गांधी जयंती पर “स्वच्छ भारत अभियान” की शुरूआत भी की थी। प्रधानमंत्री की पहल पर मंत्री से लेकर सांसद और अधिकारी से लेकर खिलाड़ी और उद्योगपति तक उतर पड़े सड़कों पर झाड़ू लेकर। महीने भर तक लगा मानो न सिर्फ वष्ाोü से जमी गंदगी के ढेरों से देश को निजात मिल जाएगी बल्कि हर नागरिक भविष्य में गंदगी फैलाने से भी परहेज करेगा। दूर जाने की जरूरत नहीं देश की राजधानी दिल्ली में दर्जनों जगह अभियान की पोल खुलती नजर आई। ऎसे अभियानों और योजनाओं का क्या मतलब जो सिर्फ दिखावे के लिए या यूं कहें कि वाहवाही लूटने के लिए चलाए जाते हों। आज से 44 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने “गरीबी हटाओ” का नारा दिया था। उस समय मीडिया इतना प्रभावी नहीं था। मीडिया के नाम पर सिर्फ अखबार हुआ करते थे या सरकारी रेडियो।नारा चलने लगा तो लगता था देश से गरीबी छू-मंतर हो जाएगी। चार दशक बाद आज नारा तो लोग भूल गए लेकिन गरीबी हटने की बजाए और बढ़ी है। आजादी के इतने सालों में देश ने अनेक योजनाएं, परियोजनाएं, नारे और अभियान देखे हैं। कुछ कागजों तक सिमटे रहे तो कुछ चुनावी राजनीति के इर्द-गिर्द घिसटते रहे। इसलिए बेहतर यही होगा कि योजनाएं और अभियान भले कम बनें लेकिन जितने भी बनें अपने अंजाम तक जरूर पहुंचे।