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निजी स्कूलों की मनमानी पर लगे लगाम

Published: Jan 16, 2015 11:35:00 am

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दिल्ली में गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों की नर्सरी में प्रवेश को लेकर मनमानी पर लगाम लगाने के…

दिल्ली में गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों की नर्सरी में प्रवेश को लेकर मनमानी पर लगाम लगाने के लिए वहां उप-राज्यपाल ने जो नया आदेश दिया है, वह स्वागतयोग्य है। यह आदेश बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए दिया गया है। यह आदेश शिक्षा के बाजारीकरण को रोकने की दिशा में फलदायी रहेगा और इसका प्रभाव पड़ेगा। दूसरी बात, यह आदेश शिक्षा के अधिकार की भावना के अनुरूप दिया गया है, जो कि सबसे अहम है। इसे लागू करने के बाद इसकी सफलता और असफलता का भी आकलन हो जाएगा।

इस आदेश में शिक्षा के अधिकार के हिसाब से सिर्फ नेबरहुड (पड़ोस) ज्यादा मायने रखता है। मेरी राय में सिब्लिंग (सहोदर भाई या बहन) और एलुमिनाई (भूतपूर्व छात्र) के बच्चों को अंक देना ठीक नहीं है। एलुमिनाई को कोटा देना तो वंशवाद को ही बढ़ाएगा। इस आदेश में 05 फीसद लड़कियों का कोटा भी अप्रासंगिक है। इसका क्या मतलब है, यह साफ नहीं है।

पहले छात्र की स्कूल से दूरी स्कूल द्वारा ही निर्धारित की जाती थी, लेकिन कुछेक स्कूल ही इसकी व्यावहारिकता को अपनाते थे। मैनेजमेंट कोटा अभी तक दिल्ली के स्कूलों में अपनाया जाता था, जो कि बिलुकल गलत था। दिल्ली में एक निजी स्कूल 3-15 करोड़ रूपए हर साल इस कोटे से कमा लेता है। इस आदेश के बाद निजी स्कूल संचालकों में बौखलाहट मचना लाकामी है। कुल मिलाकर हमें पहली बार एक एकीकृत आदेश देखने को मिला है, जो बच्चों के हक में है। हां, कुछेक खामियों को आगे दुरूस्त कर लिया जाएगा, तो बेहतर रहेगा।

शिक्षा के बाजारीकरण को यह आदेश तोड़ने में मदद करेगा। निजी स्कूलों को अब अपने अधिकार याद आ रहे हैं, वे बच्चों के अधिकारों का खयाल किए बगैर बिजनेस कर रहे हैं, उस पर कभी ध्यान नहीं जाता। निजी स्कूल स्वायत्तता की बात करके आम लोगों को लूटें, तो वो तो सरासर गलत ही कहा जाएगा। हमें लड़ने की जरूरत ही इसलिए पड़ी, क्योंकि ज्यादा पैसे देने वालों को ही प्रवेश मिलता था। निजी स्कूल कभी बच्चे का इंटरव्यू, तो कभी अभिभावकों की परीक्षा जैसे कदम उठाते हैं। हमारे देश में शिक्षा ही एक ऎसा क्षेत्र है, जिसका कानूनी तौर पर व्यावसायिकरण नहीं कर सकते।

अब दिल्ली के बाहर भी ऎसे आदेश या दिशानिर्देशों को सभी राज्यों में अपनाया जाना चाहिए। खुद सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में एक आदेश में कहा था कि शिक्षा “चाइल्ड सेंट्रिक” ही होनी चाहिए। लेकिन बच्चों का तो कहीं हित ही नहीं देखा जाता। यही बड़ी विडम्बना है। नए आदेश में अच्छी बात यह है कि 06 किमी. के दायरे में रहने वाले बच्चों को 70 नम्बर मिलेंगे, जो कि फायदेमंद रहेगा और थोड़ी समानता भी होगी। कुल मिलाकर प्रवेश स्तर पर दिल्ली में लागू हुए नए दिशा-निर्देश देश के लिए एक मजबूत संदेश का काम करेंगे।

निजी स्कूलों की मनमानियां
केजी के बाद बच्चे प्राइमरी में आते है, तो फिर निजी स्कूलों की ओर से डोनेशन ले लिया जाता है, इसकी रसीद भी नहीं काटी जाती। इसी तरीके से मनमानी फीस वृद्धि, इसके अलावा कई कार्यक्रमों के बहाने से भी पैसा छात्रों से वसूला जाता है।

शिक्षकों की योग्ताओं, नियुक्तियों और सेवाशर्तो में मनमानी होती है। असुरक्षित सेवा शर्तो के कारण शिक्षकों का शोषण किया जाता है।

मुनाफा के जरिए और स्कूल खोलकर अपनी चेन बढ़ाते हैं।

पाठ्यक्रम और इसके अलावा पढ़ाई कराने की भी छूट होती है, आजकल उसमें विभिन्न धार्मिक कट्टरवादिता को थोपा जा रहा है, जो संविधान के खिलाफ है। इसे रोका जाना बेहद जरूरी है।

अपना परिणाम अच्छा दिखाने के लिए 10वीं और 12वीं के पहले प्री-बोर्ड परीक्षाओं के जरिए कमजोर छात्रों को रोक लेते हैें, ताकि अच्छे नम्बर लेने वाले बच्चे ही परीक्षा दें।

निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए निजी स्कूल बच्चों को बाध्य करते हैं। उन्हें दुकानें भी बताते हैं। गरीब अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं, तो वहां उनका नुकसान होता है। हालत यह है कि नर्सरी तक के बच्चों को 2 हजार तक की किताबें खरीदनी पड़ती हैं।

केजी-1, केजी-2 के लिए अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत है कि बच्चों के पास किताब नहीं होनी चाहिए। बच्चों की म्यूजिक, डांस, कल्चरल लर्निग ही होनी चाहिए। किताबें तो तीसरी कक्षा तक नहीं हों। उन्हें तस्वीर, चित्रों के जरिए, कार्ड के जरिए अक्षर ज्ञान दीजिए। पर प्री- प्राइमरी स्तर पर स्कूल अंतरराष्र्ट्रीय सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए चलते हैं।

निजी स्कूल छात्रों पर दबाव डालकर खास दुकानों से स्कूल यूनिफॉर्म, जूते, बैग तक बनवाते हैं। शिक्षा को शुद्ध व्यापार बना दिया गया है, सरोकार भाव नहीं रहा।

अभिभावकों को करेगा सशक्त
यह अभिभावकों के सशक्तीकरण की दिशा में उठाया गया कदम है। दिल्ली में लागू शिक्षा अधिनियम के अनुसार उप-राज्यपाल को ये अधिकार प्राप्त थे। हर राज्य के अलग-अगल शिक्षा अधिनियम हैं। इसी पर निर्भर करता है कि ये प्रावधान वहां भी लागू किए जा सकेंगे या नहीं। दिल्ली में प्री-प्राइमरी स्तर पर स्कूलों में एडमिशन के लिए तत्काल प्रभाव से लागू जो नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, उनका क्या असर होगा और पूर्व और वर्तमान की स्थिति में क्या होगा फर्क, बता रहे हैं शिक्षा निदेशालय, नई दिल्ली के निदेशक, अमित सिंगला :

पहले
1. मैनेजमेंट को 20 प्रतिशत सीटों को भरने पर विवेकाधिकार अर्थात कोटा प्राप्त था।
2. शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत 25 प्रतिशत सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आदि के लिए निकाल देने के बाद सिर्फ 55 फीसद सीटें ही खुली प्रतिस्पर्घा के लिए बचती थीं।
3. पहले स्कूलों को खुली सीटें भरने में भी अपने विवेक के इस्तेमाल की काफी छूट थी। हर स्कूल के अपने अलग-अलग मानदण्ड थे।उनमें एकरूपता नहीं थी।

अब
1. निजी स्कूलों में मैनेजमेंट कोटा अब पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है।
2. निजी स्कूलों में अब 75 से 65 प्रतिशत सीटें खुली प्रतिस्पर्घा के अंतर्गत भरी जाएंगी।
3. अब हर निजी स्कूल को एक ही मानदण्ड अपनाना पड़ेगा, इसी के अन्तर्गत उन्हें बच्चों को अपने स्कूलों में प्रवेश देना होगा और इन मानदण्डों की अभिभावकों को पहले से ही जानकारी होने से प्रक्रिया पारदर्शी होगी।

कुछ अन्य दिशा-निर्देश
अल्पसंख्यक वर्ग के स्कूलों के अतिरिक्त अन्य स्कूलों में 25 प्रतिशत सीट आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षित होंगी।
सह-शिक्षा के रूप में चलने वाले स्कूलों में 5 प्रतिशत लड़कियों के कोटे का भी निर्घारण होगा। इसके अलावा सभी सीटें सबके लिए खुली हैं।
5 प्रतिशत स्कूल के कर्मचारियों का कोटा होगा।
अल्पसंख्यक स्कूल, जिनका निर्माण सरकारी जमीनों पर हुआ है, आर्थिक रूप से कमजोर 20 प्रतिशत बच्चों को स्कूल में दाखिला देना होगा। यहां भी 5 प्रतिशत कर्मचारियों का कोटा और सह शिक्षा स्कूल में 5 प्रतिशत छात्राओं के लिए कोटा तय किया जाएगा।
अल्पसंख्यक स्कूलों में भी कोटा का निर्घारण दूसरे स्कूलों की तरह ही किया जाएगा।
यदि किसी कारण से स्कूल में सीटों की संख्या बच जाती है, तो वे ड्रॉ के जरिए भरी जाएंगी।
सैनिक स्कूल, अर्घसैनिक स्कूल, केंद्रीय सेवा और ऑल इंडिया सर्विस स्कूलों में भी ये दिशा-निर्देश लागू करने पड़ेंगे।
ऎसे स्कूलों में 5 प्रतिशत कर्मचारियों का और 5 प्रतिशत सह शिक्षा पर लड़कियों का कोटा निर्घारित होगा।
ऎसे स्कूलों में कर्मचारियों के लिए सीटों का आरक्षण होगा, बचे सीटों का निर्घारण सामान्य नियम के अनुसार ही होगा।

अशोक अग्रवाल
अध्यक्ष, ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन
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