scriptPatrika Opinion : फिर जहाज पर आना जहाज के पक्षी का | options for the post of president in Congress are limited. | Patrika News

Patrika Opinion : फिर जहाज पर आना जहाज के पक्षी का

locationनई दिल्लीPublished: Oct 18, 2021 08:24:01 am

Submitted by:

Patrika Desk

कांग्रेस के पास या तो विकल्प ही सीमित हैं या वह परिवार-मोह से मुक्त नहीं होना चाहती। पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में कांग्रेस की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेकर राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तभी से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रही हैं।

Patrika Opinion : फिर जहाज पर आना जहाज के पक्षी का

Patrika Opinion : फिर जहाज पर आना जहाज के पक्षी का

कांग्रेस की हालत कुछ साल से जहाज के उस पक्षी जैसी हो गई है, जिसके लिए उड़ान के विकल्प सीमित होते हैं। वह उडऩा चाहता है, लेकिन संक्षिप्त उड़ान के बाद फिर जहाज पर लौट आता है। पूर्णकालिक अध्यक्ष के मुद्दे पर कांग्रेस में भी चर्चा घूम-फिरकर गांधी परिवार पर टिक जाती है। शनिवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में यही परम्परा दोहराई गई। जिन पार्टी नेताओं के लगातार आग्रह के बावजूद राहुल गांधी ने कभी अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया था, बैठक में उन्हीं नेताओं ने फिर आग्रह किया और वह फैसले पर पुनर्विचार के लिए तैयार हो गए। पार्टी के दिग्गज नेताओं की कवायद से फिर साफ हो गया कि नेतृत्व के मामले में कांग्रेस के पास या तो विकल्प ही सीमित हैं या वह परिवार-मोह से मुक्त नहीं होना चाहती।

पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में कांग्रेस की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेकर राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तभी से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। कांग्रेस के जी-23 नेताओं का समूह पूर्णकालिक अध्यक्ष के मुद्दे पर पार्टी आलाकमान पर निशाना साधता रहा है। शनिवार की बैठक में सोनिया गांधी ने इस समूह को नसीहत दी कि उन्हें ही पूर्णकालिक अध्यक्ष माना जाए। इस नसीहत में चेतावनी और जिद के साथ उनके पुत्र राहुल गांधी के पार्टी के अध्यक्ष पद तक पहुंचने के लिए सर्वसम्मत और सुगम राह नहीं निकल पाने की विवशता भी महसूस होती है। कांग्रेस नेतृत्व असमंजस, भ्रम व अनिश्चितता से इस कदर घिर चुका है कि न उसे आगे का रास्ता सूझ रहा है, न ही रणनीति। पूर्णकालिक अध्यक्ष के बगैर पार्टी में अंदरूनी समस्याओं के मामले में ‘जहां हाथ रख दो, वहीं दर्द’ वाला आलम है।

कांग्रेस शासित राज्यों में पार्टी के असंतुष्टों ने नींद उड़ा रखी है। पंजाब में अमरिंदर सिंह की विदाई के बाद भी प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू कब किस बात पर ‘ईंट से ईंट बजाना’ शुरू कर देंगे या कोप भवन में चले जाएंगे, कांग्रेस आलाकमान भी नहीं जानता। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के समीकरण नहीं सुलझ पा रहे हैं, तो छत्तीसगढ़ में टी.एस. सिंहदेव ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। उधर, महाराष्ट्र में प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के बयान आए दिन आलाकमान के माथे के बल बढ़ा देते हैं। दरअसल, जब तक कांग्रेस केंद्रीय स्तर की समस्याओं को हल नहीं करेगी, राज्यों में संगठन का संकट दूर होने के आसार नजर नहीं आते। राजनीतिक पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह नहीं चलाया जा सकता। कांग्रेस नेतृत्व जितनी जल्दी इसे समझेगा, पार्टी के लिए उतना ही बेहतर होगा।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो