विपरीत परिस्थितियां बदल कर सशक्त हो सकते हैं संगठन
लचीले गुणों वाला लीडर अपने संसाधनों, दक्षताओं, और मनोवैज्ञानिक पूंजी की अन्य लाभकारी संपत्तियों जैसे आशा, आत्म-प्रभावकारिता और आशावाद को आकर्षित करके बाधाओं पर विजय प्राप्त करता है- और साथ ही अपनी, अपने अधीनस्थों की और अपने संगठन की समग्र समृद्धि और प्रगति सुनिश्चित करता है।
Published: June 27, 2022 08:21:33 pm
प्रो. हिमांशु राय
निदेशक,
आइआइएम इंदौर एक ओर जहां 'डिसरप्शन ' यानी विघटन विश्वभर के संगठनों के लिए नई सर्वव्यापी वास्तविकता बन गया है, वहीं एडेप्टेबिलिटी' यानी अनुकूलनशीलता और 'रेसिलिएंस ' यानी लचीलापन या तन्यकता जैसी अवधारणाएं भी प्रचिलित हुई हैं- अर्थात कठिन या चुनौतीपूर्ण स्थितियों को स्वीकार कर अपने अनुभवों से सीखने का गुण। ये अब उन गुणों के रूप में प्रमुख हैं जो लीडरों और प्रबंधकों को अपने संगठनों को निरंतर समृद्धि की और ले जाने में सहायक होते हैं।
तन्यक गुण वाले लीडर ऐसी प्रथाओं और तंत्रों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो उनके संगठनों और कर्मचारियों को हानि या विरोधों से शीघ्र उबरने में सक्षम बना सकते हैं और पुन: शुरुआत कर नए सिरे से योजना बना कर, कदम उठा सकते हैं। इसके बाद अपने पैरों पर फिर से खड़े हो सकते हैं। तो प्रश्न यह है, कि क्या एक लीडर अपने संगठन और कर्मचारियों को पतन के बाद मजबूत और सशक्त बनाने के लिए कुछ कर सकता है? और अगर कोई संगठन हानि के बाद पुन: मजबूती से उभरता है, तो क्या भविष्य की चुनौतियों को संगठन को और भी सुदृढ़ करने के अवसरों के रूप में देखा और अपनाया जा सकता है? क्या इसका मौलिक दृष्टिकोण से कोई सम्बन्ध है?
एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक और लेखक, हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सकारात्मक मनोविज्ञान के शोधकर्ता और व्याख्याता, तल बेन-शहर के अनुसार,'केवल दो तरह के लोग हैं जो दर्दनाक भावनाओं का अनुभव नहीं करते हैं। पहले प्रकार के मनोरोगी हैं; दूसरे प्रकार के वे जो मर चुके हैं। ' शहर के मनोविज्ञान के पाठ्यक्रम हार्वर्ड विश्वविद्यालय के इतिहास में सबसे लोकप्रिय माने जाते हैं। उनका तर्क है कि यह धारणा गलत है कि एक सुखी जीवन जीने के लिए निरंतर आनंद का अनुभव करना आवश्यक है। एक सार्थक और सुखी जीवन जीने का एक बेहतर तरीका लगातार दर्द, परिवर्तन और अनिश्चितता से बचते हुए खुशी का निरंतर पीछा करना नहीं है। सार्थकता तो कठिन, मुश्किल और विरोधी भावनाओं को स्वीकार करना और यहां तक कि उनका स्वागत करना है। जो कुछ भी जीवन आपको प्रदान करता है उसे संभालने की क्षमता को सकारात्मक मनोविज्ञान में 'लचीलापन/तन्यकता ' कहा जाता है। बेशक, चुनौतियां हमें निराश कर सकती हैं, कुछ समय के लिए स्थिर भी कर सकती हैं और हानि भी पहुंचा सकती हैं। विपरीत समस्याओं में ही तन्यकता फायदेमंद सिद्ध होती है, क्योंकि एक लचीला व्यक्ति उन समस्याओं का सामना करने के बाद पहले से कहीं अधिक मजबूत और अधिक दृढ़ता से काम करता है। इसी प्रकार, लचीले गुणों वाला लीडर अपने संसाधनों, दक्षताओं, और मनोवैज्ञानिक पूंजी की अन्य लाभकारी संपत्तियों जैसे आशा, आत्म-प्रभावकारिता और आशावाद को आकर्षित करके बाधाओं पर विजय प्राप्त करता है- और साथ ही अपनी, अपने अधीनस्थों की और अपने संगठन की समग्र समृद्धि और प्रगति सुनिश्चित करता है।

विपरीत परिस्थितियां बदल कर सशक्त हो सकते हैं संगठन
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