मिट्टी की सेहत से जुड़ी हमारी सेहत, अपनानी होंगी अनुकूल कृषि पद्धतियां
जयपुरPublished: Dec 05, 2022 08:45:54 pm
21वीं सदी की शुरुआत से ही वैश्विक स्तर पर औद्योगिक रसायनों का उत्पादन दोगुना होकर करीब 2.3 बिलियन टन हो गया है और 2030 तक 85 प्रतिशत तक बढऩे की संभावना है। इसलिए अगर उत्पादन एवं उपभोग के तरीकों में बदलाव नहीं किया गया, वास्तविक स्थायी प्रबंधन के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं अपनाई गई तो मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण त्रासदी के स्तर तक बढऩे की आशंका है।


शैलेंद्र यशवंत
पर्यावरणीय विषयों के स्तम्भकार और सामाजिक कार्यकर्ता
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आज विश्व मृदा दिवस है और संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन का अभियान ‘मृदा: जहां से खाद्यान्न शुरू होता है’ समाजों को प्रोत्साहित कर रहा है कि मृदा स्वास्थ्य सुधारें। दरअसल, जब सरकारें और पर्यावरण कार्यकर्ता पर्यावरण गुणवत्ता की बात करते हैं, उनका आशय मुख्यत: हवा और पानी की गुणवत्ता से होता है, वे मृदा गुणवत्ता और मृदा स्वास्थ्य के बारे में कम ही बात करते हैं। यहां तक कि ‘क्लाइमेट चेंज’ वाक्यांश का हिंदी अनुवाद भी ‘जलवायु परिवर्तन’ ही है। लेकिन हम सब यह भलीभांति जानते हैं कि चिंता का विषय जल, वायु व मिट्टी का परिवर्तन है।