scriptपड़ोसियों से परेशानी | Pak-China: Problem from Neighborhoods | Patrika News

पड़ोसियों से परेशानी

locationजयपुरPublished: Mar 18, 2019 01:08:39 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

दुश्मन के दुश्मन को दोस्त समझने की नीति पर अमल बदस्तूर जारी है, लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि गलत का बचाव करने वाला भी कभी उसकी जद में आ सकता है।

china india relations

china india relations

संयुक्त राष्ट्र की उपयोगिता पर बार-बार इसीलिए सवाल उठते रहे हैं कि यह संगठन सिर्फ ताकतवर देशों की सुनता है। ताजा मिसाल के रूप में हम देख सकते हैं कि किस तरह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चीन के तकनीकी पेच के कारण पाकिस्तान की पनाह में पल रहे कुख्यात आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित नहीं कर पा रहा है, जबकि इसके अन्य सभी सदस्य ऐसा चाहते हैं। फ्रांस और ब्रिटेन ने तो मसूद के खिलाफ प्रस्ताव ही पेश किया था और जर्मनी का समर्थन था। अमरीका भी चाहता था कि मसूद का नाम अंतराष्ट्रीय आतंकी सूची में दर्ज किया जाए। लेकिन, चीन के चौथी बार समय मांग लेने से सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव फिर फंस गया। जैश और इसके सरगना के खिलाफ भारत में आतंकी करतूतों को अंजाम देने के पर्याप्त सबूत हैं। सबसे बड़ा सबूत तो यही है कि यह संगठन अनेक बार स्वयं अपनी हरकतों को स्वीकार कर चुका है। पुलवामा हमले के बाद भी जैश ने आगे बढ़कर जिम्मेदारी ली थी। भारत इससे संबंधित सारे सबूत अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से साझा कर चुका है। जब उन सबूतों से अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी आश्वस्त हो गए तो चीन को भला क्यों दिक्कत होनी चाहिए?

दरअसल तथ्यों की जांच का तो बहाना है, चीन नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया में भारत का दबदबा बढ़े। इसलिए भारतीय हितों को सुरक्षित करने वाले हर मौके पर वह भारत के दुश्मनों की तरफदारी करने के रास्ते खोज लेता है। दुश्मन के दुश्मन को दोस्त समझने की पुरानी नीति को कारगर मानने का सिलसिला समय और देश के अनुसार बदस्तूर जारी है। ऐसा करते समय राजनीति यह भूल जाती है कि गलत का बचाव करने वाला भी कभी उसकी जद में आ सकता है। अमरीका और तालिबान से बेहतर इसे कौन समझ सकता है। चीन जितनी जल्दी यह समझ सके, उसके लिए भी बेहतर होगा। चीन का वरदहस्त हासिल होने के कारण ही पाकिस्तान की हरकतें भी बेखौफ होती जा रही हैं। आशंकाओं के अनुरूप ही आतंक भड़काने में पाकिस्तान अपनी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर रहा है। अब तक हम यह मानते थे कि अपनी सीमा में रहकर पाकिस्तान आतंकियों को हर तरह की मदद दे रहा है।

चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय एजेंसियों एनआइए और ईडी के हाथ लगे सबूतों से पता चलता है कि दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग ने आतंकियों तक धन पहुंचाने का रास्ता बनाया था। जांच एजेंसियों को किसी अंतिम नतीजे तक पहुंचने में भले ही समय लगे, लेकिन उच्चायोग की कार्यप्रणाली को लेकर जो शंका जताई जा रही है, उसके बाद भी इसका यहां खुला रहना अचंभित करने वाला है। दूतावास दो देशों के बीच संबंध बेहतर करने के लिए होते हैं न कि बिगाडऩे के लिए। इससे ज्यादा अचंभित करने वाला सवाल यह है द्ग हमारा सुरक्षातंत्र इतना कमजोर कैसे रह सकता है कि दुश्मनों के मंसूबों के अंजाम तक पहुंचने के बाद ही हरकत में आता है? पुलवामा हो या उरी, हमलों के बाद ही एजेंसियां क्यों जागती हैं। अब भले ही सुरक्षा एजेंसियों ने यह पता लगा लिया हो कि उच्चायोग से आतंकियों को मदद मिलती रही है, उसके खिलाफ कार्रवाई के अतिरिक्त, तंत्र की खामियों पर नए सिरे से विचार करने की भी आवश्यकता है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो